पीस पार्टी, जमीयत, मिस्बाहुद्दीन समेत अयोध्या मामले में कई याचिकाएँ दायर कर रहा मुस्लिम पक्ष

उच्चतम न्यायालय (फाइल फोटो)

मीडिया खबरों के अनुसार पीस पार्टी की ओर से अयोध्या मामले में पुनर्विचार याचिका दायर की जा चुकी है। पीस पार्टी की 217 पन्ने की याचिका में याचिका में दावा किया गया है कि 1949 तक बाबरी के केंद्रीय गुंबद के नीचे नमाज़ अता होती रहती थी। इसके अलावा 1885 में हिन्दुओं के हिस्से में बाहरी अहाते का राम चबूतरा और मुस्लिमों के कब्जे में आंतरिक हिस्सा होने की बात कही गई है।

गौरतलब है कि 9 नवंबर, 2019 के अपने ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यों वाली संविधान बेंच ने राम जन्मभूमि स्थल का पूरा मालिकाना हक हिन्दुओं दिया था। साथ ही मस्जिद बनाने के लिए अलग से 5 एकड़ ज़मीन देने के निर्देश केंद्र सरकार को दिए थे। इस पीठ की अध्यक्षता तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई ने की थी और इसमें जज जस्टिस अब्दुल नज़ीर भी शामिल थे। पीठ ने अपना फैसला सर्वसम्मति से दिया था।

पीस पार्टी के अलावा 4 अन्य व्यक्तियों द्वारा भी याचिकाएँ दाखिल किए जाने की बात मीडिया में कही जा रही है। न्यूज़ 18 की रिपोर्ट के अनुसार इनके नाम मिस्बाहुद्दीन, मौलाना हस्बुल्लाह, हाजी महबूब और रिज़वान अहमद हैं। न केवल इनकी याचिकाओं को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का समर्थन प्राप्त होने की बात कही जा रही है, बल्कि इनका केस भी सुप्रीम कोर्ट में वकील राजीव धवन ही लड़ेंगे।

राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्ष की पैरोकारी करने वाले वकील राजीव धवन ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के ख़िलाफ़ विवादास्पद बयान दिया था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले में विवादित रहे 2.77 एकड़ समेत पूरी 67 एकड़ भूमि हिन्दुओं को रामलला का मंदिर बनाने के लिए दिए जाने को मुस्लिम पक्ष के साथ अदालत का अन्याय करार दिया था, और साथ ही दावा किया कि हिन्दुओं ने माहौल खराब किया और दूसरा पक्ष शांत रहा। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर भी ऐसे ही आरोप लगाए थे।

बता दें कि अन्य मुस्लिम पक्षकारों में सुन्नी केंद्रीय वक़्फ़ बोर्ड ने मामले में आगे क़ानूनी लड़ाई लड़ने से कदम पीछे खींच लिए हैं। वह फैसले में मिले 5 एकड़ को भी स्वीकार करने या न करने पर भी विचार करेगा। एक अन्य मरहूम पक्षकार हाशिम अंसारी के पुत्र इक़बाल अंसारी ने भी कोई क़ानूनी कदम उठाने से इंकार कर दिया है।

वहीं जमीयत उलेमा हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका में राजिव धवन को अधिवक्ता के पद से हटा दिया गया है। इसे लेकर धवन बहुत ‘तकलीफ़ में’ भी बताए जा रहे हैं। गौरतलब है कि मुकदमा जीतने के लिए राम के अस्तित्व पर सवाल उठाने, औरंगज़ेब को ‘उदारवादी’ शासक बताने जैसे कई पैंतरे धवन ने अदालत में चले थे, जिससे हिन्दू समाज आहत हुआ था।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया