‘हिजाब अभिव्यक्ति की आज़ादी का हिस्सा, प्राइवेसी का अधिकार’: बुर्का पक्ष पहुँचा सुप्रीम कोर्ट, जमीयत भी कर्नाटक HC के खिलाफ

हिजाब विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी (प्रतीकात्मक चित्र)

जहाँ एक तरफ कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा है कि हिजाब इस्लाम में अनिवार्य प्रथा नहीं है और शैक्षणिक संस्थानों में इस पर प्रतिबंध जारी रहेगा, वहीं दूसरी तरफ बुर्का पक्ष अब सुप्रीम कोर्ट में पहुँच गया है। सुप्रीम कोर्ट में कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की गई है। याचिकाकर्ता एक मुस्लिम छात्र है, जिसने कर्नाटक उच्च न्यायालय में भी याचिका डाली थी। इस्लामी संगठन फैसले का विरोध कर रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका में कहा गया है कि कर्नाटक हाईकोर्ट ये समझने में अक्षम रहा कि हिजाब पहनना ‘प्राइवेसी के अधिकार’ के अंतर्गत आता है, जो संविधान के अनुच्छेद-21 का हिस्सा है। साथ ही इसमें ‘अंतःकरण की आज़ादी’ को भी इसी का एक हिस्सा बताया गया है। साथ ही इस याचिका में हिजाब को ‘अभिव्यक्ति’ के अंतर्गत बताते हुए कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद-19(1)(a) के तहत इसकी सुरक्षा प्रदान की गई है।

कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले ने एक बार फिर से साबित कर दिया है कि धर्मों और इसकी आस्थाओं से ऊपर हमारा संविधान है। वहीं कर्नाटक के उडुपी जिले में बुधवार (16 मार्च, 2022) से सभी शैक्षणिक संस्थान खुल जाएँगे। हालाँकि, इस दौरान किसी उपद्रव से बचने के लिए धारा-144 भी लगाई जाएगी। जुलूस, जश्न और प्रदर्शनों पर 21 मार्च तक प्रतिबंध जारी रहेगा।

इस्लामी संगठन जमीयत-उलेमा-ए-हिन्द ने भी इस फैसले पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि इससे मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा और मजहबी आज़ादी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस फैसले का स्वागत करने की वकालत करते हुए कहा कि छात्र-छात्राओं को स्कूल-कॉलेजों के ड्रेस कोड का पालन करना चाहिए। कर्नाटक कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने कहा कि फैसले के बाद शिक्षा और कानून-व्यवस्था को लेकर चिंता बनी हुई है, जिसे व्यवस्थित रखना राज्य की भाजपा सरकार की जिम्मेदारी है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया