जब इस्लामी कट्टरपंथियों ने केरल के प्रोफेसर का काट डाला था हाथ, परीक्षा के सवाल में खोज ली थी ‘ईशनिंदा’: पत्नी ने कर ली थी आत्महत्या

केरल के प्रोफेसर पर ईशनिंदा का आरोप लगा उनका हाथ काट दिया गया था

हाल के दिनों में हिंदु समुदाय के खिलाफ इस्लामी हमलों में काफी तेजी देखी गई है। इस बात से अधिकतर लोग वाकिफ हैं कि मुस्लिम कट्टरपंथियों के लिए किसी की जान की कोई कीमत नहीं होती है। मजहब के नाम पर किसी की गर्दन, तो किसी का हाथ काटना उनके बाएँ हाथ का खेल बन गया है। आपको बता दें कि हिंदू ही नहीं, बल्कि ईसाई समुदाय के लोग भी इन इस्लामवादियों से खौफजदा हैं। वर्ष 2010 में आज ही के दिन (4 जुलाई) केरल में ईशनिंदा के आरोप में नजीब समेत 7 कट्टरपंथियों ने प्रोफेसर जोसेफ पर चाकुओं से हमला करके उनका दाहिना हाथ काट दिया था। उन पर यह हमला तब किया गया, जब वे अपने परिवार के साथ चर्च से प्रार्थना करके लौट रहे थे। नजीब एर्नाकुलम जिले के अलुवा का रहने वाला था और कट्टरपंथी इस्लामिक समूह पॉपुलर फ्रंट इंडिया का सदस्य था।

जोसेफ केरल के इदुकी जिले के एक कॉलेज में मलयालम पढ़ाते थे। उन पर आरोप था कि उन्होंने मलयालम भाषा में बीकॉम का पेपर तैयार करते हुए पैगंबर मुहम्मद का नाम लिया, जिससे समुदाय विशेष की मजहबी भावनाएँ आहत हुईं। जबकि जोसेफ का कहना था कि वो पीटी कुंजू मोहम्मद नामक एक लेखक के बारे में लिख रहे थे पर कुछ लोगों ने जानबूझकर मुहम्मद नाम को गलत लिया। हालाँकि इस बीच कई लोगों ने उन पर सवाल उठाए और कॉलेज प्रशासन ने उन्हें नौकरी से भी निकाल दिया था। मजहबी संगठनों के दबाव में कॉलेज प्रशासन के फैसले से उनका जीवन सामान्य नहीं रहा। सामाजिक दबाव और आर्थिक परेशानियों के चलते उनकी पत्नी ने आत्महत्या कर ली थी।

जोसेफ के अनुसार, उनकी पत्नी गहरे सदमें में थी। 19 मार्च 2014 को वह मनोवैज्ञानिक के पास से लौटीं और आत्महत्या कर ली। ये क्षण जोसेफ के लिए और मुश्किल भरा था। उन्हें दुख इस बात का था कि उनकी पत्नी उन्हें दोबारा जॉब करते नहीं देख पाईं जो कि उनकी सबसे बड़ी इच्छा थी। इतना सब कुछ होने के बाद भी उन्होंने फैसला किया कि वे कॉलेज के फैसले के खिलाफ कोई कानूनी कदम नहीं उठाएँगे। यही नहीं उन्होंने हमला करने वाले कट्टरपंथियों को भी माफ कर दिया था।

लेकिन, कोर्ट ने दोषियों पर कार्रवाई जारी रखी और कुछ साल पहले उन्हें प्रोफेसर पर हमला करने का दोषी पाया गया। आरोपितों पर फैसला उस समय आया जब जोसेफ की लिखी एक किताब रिलीज हुई थी। इदुकी जिले में एक छोटे कार्यक्रम में अपनी किताब को रिलीज करने के दौरान जोसेफ ने कहा था, “ये किताब मैंने दाहिने हाथ से लिखी थी, आज मैं आपके सामने इसे बाएँ हाथ से पेश कर रहा हूँ।”

चर्च और ईसाई समुदाय ने भी हमारा समर्थन नहीं किया: टीजे जोसेफ

जोसेफ ने किताब में अपनी आपबीती लिखी थी कि कैसे कट्टरपंथ के कारण हर कोई खतरे में हैं। उन्होंने बताया था कि कैसे कट्टरपंथियों ने उनके साथ जो किया सो किया लेकिन उनके समुदाय के लोगों, चर्च, कॉलेज, दोस्त, पड़ोसियों ने भी उन्हें नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जोसेफ ने कहा था कि वो तीन बार हमले से बच गए, लेकिन चौथी बार हमलावरों ने उनका हाथ काट दिया था।

इसके अलावा जोसेफ ने एक साक्षात्कार में कहा था कि आरोपितों को दंड देने से न्याय नहीं मिलेगा। असल समस्या कट्टरपंथ की है। उन्होंने यह भी बताया था, “थोड़ूपुझा न्यूमैन कॉलेज के प्रिंसिपल और मैनेजमेंट ने शुरुआती समय में मेरा साथ दिया लेकिन समय के साथ उनके मत बदल गए। ये जानने के बावजूद कि मैं निर्दोष हूँ, कॉलेज ने मुझ पर ईशनिंदा का आरोप मढ़ा, मुझे सस्पेंड किया गया और बाद में नौकरी से निकाल दिया गया। चर्च ने मेरे परिवार को बहिष्कृत किया और कोठामंगलम सूबा के 120 चर्चों में मेरे खिलाफ पत्र पढ़े गए कि आखिर मेरे विरुद्ध ऐसा एक्शन क्यों लिया गया है।”

उन्होंने आगे बताया था, “कई ईसाई दोस्तों और परिवारों ने हमारे घर आना छोड़ दिया। उन्हें डर था कि चर्च उनसे नाराज हो जाएगा। मेरे ऊपर हमला करने वालों की आँख पर कट्टरपंथ की पट्टी बंधी थी जिसने मुझे शारीरिक रूप से दुख दिया। लेकिन जो मेरे लोगों ने मेरे साथ किया वो भी और भी ज्यादा भयावह है क्योंकि उससे मेरे परिवार पर प्रभाव पड़ा। कैथोलिक चर्च ने अदालतों द्वारा उन्हें ईशनिंदा के आरोप से मुक्त करने के बाद भी उनके साथ बुरा व्यवहार किया है।” उन्होंने आगे कहा, “चर्च ने इस्लामी कट्टरवाद और मेरे साथ हुए हमले का समर्थन किया, जिसकी वजह से PFI ने मुझ पर हमला किया और मुझे अपने हाथ गँवाने पड़े।”

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया