जामा मस्जिद के शाही इमाम ने कहा- CAA से मुस्लिमों का लेना-देना नहीं, कौमी ठेकेदारों ने बताया जाहिल

CAA पर जामा मस्जिद के शाही इमाम नहीं कबूल

नागरिकता संशोधन कानून यानी CAA के बहाने देश के कई हिस्सों में समुदाय विशेष की हिंसा के बीच दिल्ली के जामा मस्जिद के शाही मस्जिद सैयद अहमद बुखारी की शांति की अपील उनके ही समुदाय के ठेकेदारों को नहीं भाया। शाही इमामन ने लोगों को CAA का सही मतलब बताते हुए उनसे शांत रहने की अपील की। उन्होंने कहा कि विरोध लोगों का लोकतांत्रिक अधिकार है। कोई उन्हें ऐसा करने से नहीं रोक सकता। लेकिन, यह बेकाबू नहीं होना चाहिए।

सड़कों पर उतरकर हिंसा करने वाले लोगों को समझाने की कोशिश करते हुए उन्होंने कहा कि इस कानून का भारत के मुस्लिमों से कोई सरोकार नहीं है। ये केवल उन तीन इस्लामिक देशों के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए है, जिन्हें उनके मुल्क में प्रताड़ित किया गया है। शाही इमाम ने एनआरसी और सीएए को दो अलग-अलग चीज भी बताया और कहा कि दोनों में फर्क़ हैं। एक सीएए है, जो अब कानून बन गया है और दूसरा एनआरसी है, जिसकी अभी सिर्फ़ घोषणा हुई है, वो कानून नहीं बना है।

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हालाँकि, जामा मस्जिद का शाही इमाम होने के नाते अहमद बुखारी का ये फर्ज था कि वो अपने समुदाय के लोगों को समझाएँ और नए कानून पर उनकी भ्रम की स्थिति को दूर करें। लेकिन जैसे ही उन्होंने ऐसा किया, मजहब के कट्टरपंथी ठेकेदार उन पर टूट पड़े। उनके ख़िलाफ़ बयानबाजी होने लगी। उन्हें जाहिल कहा गया। ‘जमीरफरोश’ करार दिया गया।

सबसे पहले आप समर्थक ‘जनता का रिपोर्टर’ के संपादक रिफत जावेद ने अहमद बुखारी पर सवाल उठाए और उन्हें जाहिल यानी बेवकूफ बताया। रिफत ने लिखा, “इस जाहिल को शाही इमाम का तमगा किसने दे दिया। इन्हें फॉलो कौन करता हैं। ऐसे लोग सच्चे जमीरफरोश होते हैं।”

https://twitter.com/RifatJawaid/status/1207146878023847937?ref_src=twsrc%5Etfw

इसके बाद अहमद बुखारी को समुदाय विशेष के लोगों द्वारा सोशल मीडिया पर ‘सरकारी कठपुतली’ और ‘सरकारी मौलाना’ कहा जाने लगा।

एक सोशल मीडिया यूजर्स ने उन्हें सीएए पर बरगलाने वाला बताया और कुछ ने गुस्से में पूछा कि आखिर ये है ही कौन?

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केवल जनता के बीच में भ्रम दूर करने के कारण लोग उनपर ये इल्जाम लगाने से भी नहीं चूँके कि वो सरकार से पैसे लेते हैं और सरकारी भोंपू हैं।

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बता दें, कि सोशल मीडिया पर अहमद बुखारी की अपील के विरोध में उतरे लोगों के अलावा कई लोग ऐसे हैं जिन्होंने उनके साथ अपनी सहमति दिखाई हैं। उनके इस अपील के कारण लोग उन्हें पढ़ा-लिखा समझदार इमाम कह रहे हैं। लेकिन कुछ उनके बयान पर उन्हें ट्रोल करने से बाज नहीं आ रहे। लोगों का कहना है कि इस इमाम को साल 2004 में आडवाणी 2 करोड़ रुपए में लेकर आए थे और तब इसने भाजपा का समर्थन किया था, इसलिए ऐसे गद्दारों को चप्पल से धोना चाहिए।

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ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया