जामिया हिंसा: याचिकाकर्ताओं के बचाव में इंदिरा जयसिंह की दलील- पत्थर और बोतलें नहीं होतीं हथियार

जामिया हिंसा (छात्र साभार-एशियानेट न्यूज़ )

दिल्ली हाई कोर्ट पिछले साल दिसंबर माह में दिल्ली स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया और उसके आसपास हुई हिंसा से संबंधित याचिकाओं के एक बैच पर सुनवाई कर रही है। इस दौरान कुछ याचिकाओं का प्रतिनिधित्व सलमान खुर्शीद और इंदिरा जयसिंह ने किया। एक छात्र के बचाव में दलील देते हुए इंदिरा जयसिंह ने तर्क दिया है कि पत्थर और बोतलें हथियार नहीं होती हैं।

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सुनवाई के दौरान जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के छात्र वैभव मिश्रा का पक्ष रखते हुए एक दलील में वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि जामिया के छात्रों के साथ पुलिस के बर्ताव की स्वतंत्र जाँच होनी चाहिए।

इंदिरा जयसिंह ने पुलिस की भूमिका पर आरोप लगाते हुए कहा कि ऐसा प्रतीत होता है, मानो पुलिस ने ‘कट-पेस्ट’ कर के आरोप लगाए हैं। उन्होंने याचिकाकर्ता छात्रों के बचाव में कहा कि उकसावे के बावजूद, पुलिस को केवल न्यूनतम संभव बल का ही उपयोग करना चाहिए था। उन्होंने तर्क देते हुए कहा कि फिर भी पुलिस ‘सिद्धांत का उल्लंघन’ करते हुए कैम्पस में घुस गई थी।

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जयसिंह ने कहा कि पुलिस के इस व्यवहार के कारण ही माहौल तनावपूर्ण हुआ और बड़ा विषय अब यह है कि पुलिस भविष्य में भी इस प्रकार का आचारण ना करे।

इसके साथ ही इंदिरा जयसिंह ने अदालत में कहा कि यूनिवर्सिटी के छात्र संसद तक मार्च करने के लिए इकट्ठे हुए थे और उनके पास दंगे या उपद्रव करने के सामान मौजूद नहीं थे। अपनी एक दलील में इंदिरा जयसिंह ने कहा कि पत्थर और बोतलें आग बरसाने के हथियार नहीं होते हैं।

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हालाँकि, यदि इंदिरा जयसिंह के इन तर्कों की दिल्ली दंगों की वास्तविकता से तुलना करें तो स्पष्ट पता चलता है कि गत फरवरी माह में पूर्वोत्तर दिल्ली में घटित हिन्दू-विरोधी दंगों में इन्हीं पत्थर और बोतलों से बने पेट्रोल बम का भारी मात्र में उपयोग किया गया।

उपद्रवियों ने हिन्दुओं और पुलिस पर जमकर पत्थरबाजी कीं और उन्हें पेट्रोल बम से भरी बोतलों से निशाना बनाया। दुर्भाग्य से उन बोतलों में पेट्रोल भी था, एसिड भी, और दोनों से ही आग लगाई जाती हैं। ऑपइंडिया ने दिल्ली दंगों की ग्राउंड रिपोर्टिंग में जो जले हुए घर, पार्किंग, स्कूल दुकानें और लोग देखे थे, वो इन्हीं बोतलों का कमाल था।

ऑपइंडिया ने अपनी ग्राउंड रिपोर्ट्स में छतों पर लगाईं हुई वो गुलेलें भी देखीं जिनसे सामने मौजूद हिन्दुओं के घरों पर पत्थर और आग बरसाई गईं थीं। यहाँ भी पेट्रोल बम का इस्तेमाल हुआ था।

वामपंथी मीडिया चाहे तमाम कोशिशें करे, फिर भी IED बम खिलौने और अलार्म क्लॉक नहीं साबित हो सकते हैं। जिस पत्थर और बोतलों के तर्क को अदालत में इन कथित छात्रों के बचाव में इस्तेमाल किया जा रहा है उसी तर्क से यदि देखें तो IED कोई बम नहीं होता लेकिन तकनीकी रूप से वह बम ही होता है।

ठीक इसी तरह से, पत्थर और बोतलें अपने आप में बम नहीं होतीं लेकिन इनका इस्तेमाल दंगों को भड़काने और लोगों को निशाना बनाने के लिए पेट्रोल बम के रूप में खूब हुआ है और इनके जरिए तबाही ही मचाई जाती है, शांतिपूर्ण मार्च नहीं निकाले जाते, यह पिछले कुछ माह में पूरे देश ने देखा है।

अपनी दलीलों में इंदिरा जयसिंह ने दिल्ली पुलिस पर ही गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि पुलिस को कार्रवाई के लिए तैयार रहना चाहिए और उन्हें वर्दी छात्रों पर हमला करने का अधिकार नहीं देती। याचिकाकर्ता की वरिष्ठ वकील ने कहा कि नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान जो कुछ पुलिस ने छात्रों के साथ किया, वह दंगे नहीं बल्कि पुलिस की बर्बरता थी

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गौरतलब है कि दिसंबर, 2019 में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन (NRC) के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों के हिंसक होने पर पुलिस जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के कैंपस में दंगाइयों की तलाश में घुसी थी।

पुलिस ने दावा किया था कि कैंपस के अंदर से उन पर पत्थर फेंके गए थे और हिंसा में शामिल कई लोग कैंपस में घुस गए थे, जिनके पीछे पुलिस अंदर गई थी। पुलिस ने ये भी दावा किया था कि प्रदर्शनकारियों के छात्रों के साथ हिंसा करने के बाद उन्हें कैंपस में आने को कहा गया था।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया