कहानी वैज्ञानिक नाम्बी नारायणन की जिन्हें केरल की राजनीति ने बर्बाद किया

वैज्ञानिक नाम्बी नारायणन को पद्म भूषण दिया जाएगा

बात लगभग 1995 के दौर की है, सत्ता की कुर्सी को लेकर केरल की कॉन्ग्रेस में भीतरी घमासान चल रहा था। उस दौर में मुख्यमंत्री के करुणाकरण के सुपुत्र ने अपने पिता के गुट के कुछ कॉन्ग्रेसी नेताओं का अपमान कर दिया था और विरोधी गुट के ए के एंटनी, इसका फ़ायदा उठाते हुए ख़ुद मुख्यमंत्री बनना चाहते थे। एंटनी के क़रीबी थे ओमन चंडी जो उस समय करुणाकरण के मंत्रालय में वित्त मंत्री थे।

करुणाकरण की ख़ास बात ये थी कि उनकी पुलिस विभाग में ख़ासी पहुँच और बड़ा रसूख था। रमन श्रीवास्तव (आईजी) जैसे अफ़सर उनके क़रीबी हुआ करते थे। पर अफ़सोस, अच्छे से अच्छे लोगों के भी विरोधी तो होते ही हैं और उस समय के एक डीआईजी सीबी मैथ्यूज (जो ओमन चंडी के करीबी थे) की रमन श्रीवास्तव से पटती नहीं थी।

मैथ्यूज को पता था कि रमन श्रीवास्तव के रहते वो डीजीपी नहीं बन सकते। तो करुणाकरण को सिंहासन से उखाड़ फेंकने की योजना बनी। इसी दौर में वहाँ आईबी के एडिशनल डायरेक्टर रतन सहगल थे जिन्हें बाद में सीआईए का एजेंट पाए जाने पर और इसरो के क्रायोजेनिक इंजन प्रोग्राम को बर्बाद करने कि उनकी साज़िशों का भंडाफोड़ होने पर उन्हें आईबी से निकाल बाहर किया गया था। रतन सहगल के सहयोगी थे आर बी श्रीकुमार, जो पहले से एंटनी गुट के क़रीबी थे और करुणाकरण सरकार को गिराने की साज़िश में शामिल भी थे।

मालदीव की मरियम रशीदा इसी वक़्त अपना वीज़ा बढ़वाने सीनियर इंस्पेक्टर विजयन के पास पहुँची। मौक़े का फ़ायदा उठाकर विजयन ने बदले में उनके सामने कुछ अनुचित ‘माँगें’ रखी। फ़लस्वरूप, रशीदा ने विजयन को झिड़का ही नहीं बल्कि आईजी से उनकी शिक़ायत करने की बात भी कह दी।

इतने ढेर सारे नाम सुनने पर शायद आपको आर बी श्रीकुमार का नाम जाना पहचाना-सा लगा होगा? ये वही हैं जिन्होंने बाद में मोदी पर 2002 के दंगों का फ़र्ज़ी आरोप लगाया था। आजकल ये आपको आम आदमी पार्टी की टोपी लगाए दिख जाएँगे। इतने लोगों के साथ आ जाने पर ये तय हो गया था कि मालदीव की कुछ औरतों, एक आईपीएस अफ़सर और कुछ इसरो के वैज्ञानिकों की कीमत पर जाल बुना जा सकता है।

अमेरिका भारत को क्रायोजेनिक तकनीक देने से मना कर चुका था और रूस से भी अब कोई उम्मीद नहीं थी। फिर भी, नाम्बी नारायणन और शशि कुमार इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे। जालसाज़ों को इतना पता था कि इनके ना होने से ये क्रायोजेनिक इंजन का प्रोग्राम डूबेगा और भारत का अन्तरिक्ष और मिसाइल कार्यक्रम कई साल पीछे चला जाएगा।

एक दिन सुबह अचानक ख़बर आनी शुरू हुई कि मालदीव की दो सुंदरियों मरियम रशीदा और फव्जिया हसन ने भारत के दो वैज्ञानिकों को हनी ट्रैप में फँसा लिया है। ज़िस्म और कुछ लाख डॉलर के बदले में इन वैज्ञानिकों ने भारत के क्रायोजेनिक इंजन का प्रोग्राम बेच डाला था!

मलयालम मीडिया से शुरू हुई इस ख़बर को राष्ट्रीय मीडिया में भी जगह मिली। फिर बी ग्रेड की फिल्मों जैसा कथानक लिखने वालों की ख़ोज हुई और मालदीव की औरतों, वैज्ञानिकों और मुख्यमंत्री के क़रीबी कहे जाने वाले बड़े पुलिस अधिकारियों की मसालेदार कहानियाँ गढ़ी गयीं। थोड़े ही दिन में लोगों को भी लगने लगा कि इसरो के इस जासूसी काण्ड में मुख्यमंत्री की भी मिली भगत है। आईजी रमन श्रीवास्तव और करुणाकरण पर शिकंजा कसने लगा।

लगातार अख़बारों में आती ख़बरों के मद्देनजर हाई कोर्ट ने मामले का संज्ञान लिया और ओमन चंडी ने इसी वक़्त इस्तीफ़ा दे दिया। आख़िरकार करुणाकरण को भी इस्तीफ़ा देना पड़ा और एंटनी मुख्यमंत्री बने। उन्हें पता था कि मामला तो कुछ है ही नहीं इसलिए केस सीबीआई को सौंप दिया गया।

नारायणन और शशि कुमार की घनघोर भर्त्सना हुई। ऑटो रिक्शा वाले तक नारायणन की पत्नी को पहचानकर बिठाने से इनकार करने लगे। यहाँ तक कि उनके बच्चों को भी जासूस-गद्दार का बच्चा बताया गया। सीबीआई ने जाँच शुरू की तो पहले ही हफ़्ते में पता चल गया कि शुरूआती सबूत ही फ़र्ज़ी हैं और इसमें कोई मुक़दमा नहीं बनता। फिर भी, मीडिया में वैज्ञानिकों के घर से काफ़ी नगद मिलने की ख़बरें उड़ाई गयी जो कि सीबीआई को कभी मिली ही नहीं थी।

सीबीआई ने अदालत में कहा कि ये केरल पुलिस की काफ़ी सोची समझी साज़िश थी। केरल पुलिस के सीबी मैथ्यूज, विजयन और के के जोशुआ के अलावा आईबी के आर बी श्रीकुमार पर मुक़दमा चलाने की सिफ़ारिश सीबीआई ने कर दी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सभी अभियुक्तों को रिहा किया और केरल सरकार को पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई करने कहा।

सीबी मैथ्यूज को ओमन चंडी ने मुख्यमंत्री बनने पर चीफ़ इनफार्मेशन कमिश्नर बनाया। रतन सहगल भारत के परमाणु कार्यक्रम सम्बन्धी राज सीआईए को बेचते पकड़े गए और वो यूएसए भाग गए। आपको आर बी श्रीकुमार तीस्ता शीतलवाड के बगल में बैठे नजर आ जाएँगे। एंथनी तो भारत के रक्षा मंत्री ही हो गए और उनके बाद इस सरकार की शुरुआत में सेना के पास बीस दिन का गोला-बारूद था। हाँ, दोनों वैज्ञानिक फिर से शोध में नहीं गए और उन्हें क्लर्क वाला काम थमा दिया गया।

आप समझ सकते हैं कि इससे भारत के अन्तरिक्ष और मिसाइल कार्यक्रम का क्या हुआ होगा? शायद वो अंदाज़ा लगाना अब मुश्किल नहीं है।

हाल ही में,  2017 में जब कॉन्ग्रेस अन्तरिक्ष में जाने वाले क्रायोजेनिक इंजन का श्रेय लूट रही थी तो उन्होंने भारत को ये नहीं बताया था कि एक मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए उन्होंने भारत के इस सपने का क्या किया था?

भारत सरकार ने नारायणन को उनके वैज्ञानिक शोध के लिए पद्म सम्मान देने का फ़ैसला किया है। उनके शोध को छोड़ भी दें, तो राजनैतिक षड्यंत्रों से इतनी लम्बी लड़ाई लड़कर जीतने वाले के सम्मान में तालियाँ तो बनती ही हैं!

Anand Kumar: Tread cautiously, here sentiments may get hurt!