‘EWS में मुस्लिम-सिख-जैन भी, फिर ये सवर्ण आरक्षण कैसे?’: समर्थन करने वालों के सवाल, विरोधी कह रहे – रोज़ के ₹2000 कमाने वाला ब्राह्मण ‘गरीब’ कैसे?

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का निर्णय आने के बाद इसको लेकर बहस हो रही है। एक पक्ष EWS आरक्षण को लेकर सवाल खड़ा कर रहा है तो दूसरा पक्ष इसके समर्थन में तर्क दे रहा है।

EWS आरक्षण आज देश में एक बड़ा मुद्दा है और इसको लेकर दोनों पक्षों की क्या राय है और इसके पीछे उनका क्या तर्क है, इसको समझने का प्रयास करते हैं। हर विषय पर जनता की राय अलग-अलग हो सकती है और इस विषय पर भी है। इसके विरोधियों के तर्क निम्नलिखित हैं-

शरण्या का कहना है, “जिन परिवारों की वार्षिक आय ₹8 लाख तक है, वे ईडब्ल्यूएस आरक्षण का लाभ पाने के पात्र होंगे। स्पष्ट रूप से उच्च जातियों के अहंकार पर आघात करने के लिए इसे बनाया गया है और वे इसके बाद जाति आधारित आरक्षण के बारे में शिकायत करना बंद नहीं करेंगे।”

CPI नेता क्लिफन डी रोजारियो का कहना है, “EWS एक मिथ्या है। यह अगड़ी जातियों के लिए आरक्षण है। इसकी पात्रता का कट-ऑफ वार्षिक आय 8 लाख रुपए यानी लगभग 67,000 रुपए प्रतिमाह है। यह जाति के ऐतिहासिक अन्याय के कारण उत्पीड़ित समुदायों की अपार गरीबी का मजाक बनाता है।”

एक तमिल व्यक्ति का कहना है, “एक दलित अमीर है अगर उसके पास एक घर है, एक दोपहिया वाहन है और प्रति दिन लगभग 300 रुपए कमाता है। लेकिन, एक ब्राह्मण गरीब है, भले ही उसके पास जमीन हो, घर हो, वह लगभग 2000 प्रति दिन कमाता हो। यह EWS का पूरा तर्क है। यह एक घोटाला है।”

सौमित्र पठारे का कहना है, “ईडब्ल्यूएस श्रेणी के लिए आय सीमा इतनी अधिक निर्धारित करके कि इसमें 90-95% सवर्ण शामिल किए गए हैं और इस श्रेणी से दलितों/आदिवासियों/बहुजनों को बाहर कर दिया गया है। यह सवर्णों के लिए आरक्षण है, न कि ईडब्ल्यूएस के लिए।”

ये तर्क EWS आरक्षण के विरोधियों के हैं। वहीं, EWS आरक्षण का समर्थन करने वालों के अपने तर्क हैं। उनका मानना है कि सवर्णों में भी गरीब लोग हैं और सरकार को उनका भी ख्याल करना है। ऐसे में EWS का यह आरक्षण जरूरी और गरीबों के हित में है।

शरद दूबे का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने सामान्य वर्ग के आर्थिक कमजोर लोगों को 10% का आरक्षण देकर अच्छा काम किया है। गरीब किसी भी समाज में हो सकते हैं, सवर्णों में भी हो सकते हैं। इसलिए इसका स्वागत किया जाना चाहिए।

अभिषेक पराशर का कहना है कि जो वर्षों से जो जातिगत आरक्षण का खैरात ले रहे हैं, उन्हें EWS आरक्षण असंवैधानिक लग रहा है। आरक्षण आर्थिक आधार पर ही होना चाहिए, क्योंकि ST/ST/OBC आरक्षण का मलाई इन जातियों के कुछ ऊपर बैठे लोग खा रहे हैं।

रोशन सिंह का कहना है, “EWS आरक्षण के लाभार्थी सिर्फ हिन्दू सवर्ण नहीं हैं और न यह खालिस अल्पाय वर्ग सवर्णों को आरक्षण है। इसके सबसे बड़े लाभार्थी मुस्लिम, सिख, जैन, जैन और अन्य मजहब की जातियाँ भी हैं। EWS को सवर्ण आरक्षण कहना, अज्ञान और मूर्खता है।”

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया