‘यह जमीन अल्लाह की… यहाँ से सभी बुत (मूर्तियाँ) उठवा दी जाएँगी’: अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में लगे नारे-पोस्टर… चुनावी नतीजों के बीच भुला दी गई खबर

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में मुस्लिम छात्रों का प्रदर्शन (फोटो साभार: भास्कर/इंडियन एक्सप्रेस)

उत्तर प्रदेश में स्थित अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU, Aligarh) में मुस्लिम छात्रों ने 6 दिसंबर बाबरी ढाँचे के गिराने की बरसी को काला दिवस के रूप में मनाया और आपत्तिजनक नारे लगाए। इस दौरान छात्रों ने ‘जब अरजे खुदा के काब से, सब बुत उतरवाए जाएँगे’ की तख्तियाँ लेकर ‘मस्जिद वहीं थी, वहीं है और आगे भी वहीं रहेगी’ नारे लगाए।

विश्वविद्यालय के छात्र नेता मोहम्मद फरीद के नेतृत्व में मंगलवार (6 दिसंबर 2022) को बड़ी संख्या में मुस्लिम छात्र कैंटीन में एकजुट हुए और वहाँ से डक प्वाइंट पहुँचे। इस दौरान छात्रों ने कहा, “बाबरी मस्जिद अभी जिंदा है। मस्जिद वहीं थी, वहीं है और इंशाअल्लाह आगे भी वहीं रहेगी।”

प्रदर्शन के दौरान छात्रों ने हाथों में पोस्टर ले रखे थे, जिसमें लिखा था, “जब अरजे खुदा के काब से, सब बुत उतरवाए जाएँगे।” उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद कभी खत्म नहीं हो सकती है और हमेशा वहीं रहेगी। वे अपनी आने वाली नस्लों को बताकर जाएँगे कि बाबरी मस्जिद वहीं है।

इस छात्रों ने नारे लगाए, ‘तेरा-मेरा रिश्ता क्या, ला इलाहा इलल्लाह’। ये वही नारे हैं, जो कश्मीर में कभी आतंकी लगाया करते थे। बता दें कि ‘जब अरजे खुदा के काबे से, सब बुत उतरवाए जाएँगे’ एक विवादित नारा है, जिसका अर्थ है कि ‘एक दिन अल्लाह की इस ज़मीन से सभी बुत यानी मूर्तियाँ उठवा दी जाएँगी और सिर्फ अल्लाह का ही नाम रहेगा।

हिंदू धर्म में मूर्ति पूजा का विशेष स्थान है, जबकि इस्लाम में मूर्ति पूजा यानी बुतपरस्ती को गुनाह माना गया है। इसलिए जब भी इस नारे की चर्चा होती होती है तो इसे हिंदू विरोध के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। इस शायरी को पाकिस्तान के शायर फैज अहमद फैज ने लिखा था। फैज ने इन नज्म को पाकिस्तान के कट्टरपंथी तानाशाह जिया उल हक के जमाने में लिखी थी।

भारत में जब भी देशविरोधी गतिविधियाँ अंजाम दी जाती है, उस समय इस नारे को खूब लगाया जाता है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय बाद बाबरी ढाँचे की जगह राममंदिर निर्माण के बाद भी कट्टरपंथियों का यह कहना है कि ‘वहाँ मस्जिद थी, है और आगे भी रहेगी’ इसी सोच का परिचायक है।

AMU के छात्रों के इस प्रदर्शन को लेकर अलीगढ़ के भाजपा के जिला उपाध्यक्ष गौरव शर्मा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 6 दिसंबर को काला दिवस मनाने पर रोक लगाई है। इसके बाद भी AMU में इसे काला दिवस के रूप में मनाया गया। उन्होंने इस मामले की जाँच की माँग की।

बता दें कि इसी नारे को लेकर दिसंबर 2019 में IIT कानपुर में विवाद हुआ था। एक प्रदर्शन के दौरान इस नारे को लगाया गया था। उस दौरान IIT निदेशक को दी गई शिक़ायत में कहा गया था कि ये पंक्तियाँ “सभी मूर्तियों को नष्ट करने का आह्वान करती हैं” (जैसा कि मूर्ति पूजा इस्लाम में निषिद्ध है) और इस बात पर ज़ोर दिया गया है, “केवल अल्लाह की पूजा होनी चाहिए।

बाद में लिबरल गैंग ने इस पर लीपापोती करने की कोशिश की थी और फैज को नास्तिक और वामपंथी बताकर उनका बचाव किया था। इसको लेकर लोगों ने सवाल उठाए थे कि अगर फैज नास्तिक थे तो मजहब के आधार पर बने पाकिस्तान में वे क्यों चले गए थे। फैज का बचाव करने वालों में बॉलीवुड के स्वघोषित बुद्धिजीवी जावेद अख्तर भी शामिल थे।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया