क्या है रैट होल माइनिंग, जिससे मजदूरों को बाहर निकालने के लिए उत्तरकाशी की सुरंग में बनाया जा रहा रास्ता

सुरंग में फँसे मजदूर जल्द ही बाहर आ सकते हैं। (चित्र साभार: India today)

उत्तराखंड के उत्तरकाशी की सिलक्यारा सुरंग में फँसे 41 मजदूरों को जल्द ही बाहर निकाला जा सकता है। सुरंग में मजदूरों को निकालने में सामने आ रही सभी समस्याएँ सुलझ गई हैं और अब तेजी से खुदाई का काम चल रहा है। अब रैट होल माइनिंग का तरीका अपनाया जा रहा है।

इसके लिए रैट होल तकनीक के विशेषज्ञ परसादी लोधी पूरे बचाव अभियान को लीड कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वह रेस्क्यू पाइपों में प्रवेश करेंगे और सुरंग से बाहर निकलने को अवरुद्ध करने वाले शेष मलबे को खोदने के लिए हाथ से काम करने वाले उपकरणों का उपयोग करते हुए रास्ता बनाएँगे। वह पिछले दस साल से दिल्ली और अहमदाबाद में इस तकनीक के जरिए काम कर रहे हैं।

बता दें कि मजदूर 12 नवम्बर 2023 की सुबह से सुरंग के भीतर मलबा आने के कारण फँसे हुए हैं। इन्हें निकालने के लिए मलबे के भीतर से 3 फीट व्यास वाला पाइप डाला जा रहा है। अब पाइप को मशीन की जगह हाथों से खुदाई करके आगे बढ़ाया जा रहा है। इस खुदाई के लिए रैट होल माइनिंग तरीके का उपयोग किया जा रहा है।

जानकारी के अनुसार, अब तक लगभग 51 मीटर खुदाई करके पाइप डाल दिया गया है और बाकी 5-6 मीटर को भी जल्द ही खोद लिया जाएगा। इससे पहले 46 मीटर पर ऑगर मशीन फँस गई थी जो कि 4 दिन बाद काट कर बाहर निकाली जा सकी थी। घटनास्थल पर राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी पहुँचे हैं।

मजदूरों को निकालने के लिए दूसरे विकल्पों पर भी लगातार काम चल रहा है। वहीं पहाड़ी के ऊपर से खुदाई में भी तेजी आई है। सतलुज जल विद्युत् निगम लगातार सीधी ड्रिलिंग कर रहा है। इसके लिए नई मशीन भी पहुँच गई है। जानकारी के अनुसार इस रास्ते से 40 मीटर तक खुदाई हो गई है।

सबसे अधिक उम्मीदें रैट होल माइनिंग तरीके से ही हैं। यहाँ हाथों से खुदाई करके फिर आगे पाइप को टुकड़ों में मजदूरों तक भेजा जा रहा है। सुरंग में रैट माइनिंग के 6 विशेषज्ञ कल ही पहुँच गए थे। अब जल्द से जल्द पाइप अन्दर धकेलने पर काम चालू है। आशा जताई जा रही है कि आज मजदूर बाहर निकल सकते हैं।

क्या होती है रैट होल माइनिंग?

रैट होल माइनिंग संकरे क्षेत्रों में गड्ढे बनाने की प्रक्रिया है। इसके नाम के अनुसार, इसमें चूहे के बिल जैसी सुरंग की खुदाई होती है जो कि मात्र इतनी चौड़ी होती है कि उसमें एक आदमी अन्दर जा सके। इस तरीके का मुख्य उपयोग कोयला निकालने में होता है।

ऐसी जगहों पर जहाँ कोयला जमीन के नीचे काफी छोटी मात्रा में हैं, वहाँ रैट माइनिंग करने वाले एक सीधा और छोटा सा गड्ढा बना कर नीचे खुदाई करते जाते हैं। इसमें आमतौर पर एक व्यक्ति के उतरने और कोयला निकालने के लिए पर्याप्त जगह होता है।

इस तकनीक में एक बार गड्ढे खोदने के बाद, वर्कर कोयले की परतों तक पहुँचने के लिए रस्सियों या बाँस की सीढ़ियों का उपयोग करके उतरते हैं। फिर कोयले को गैंती, फावड़े और टोकरियों जैसे आदिम उपकरणों का उपयोग करके मैन्युअल रूप से निकाला जाता है। ठीक इसी तकनीक का उपयोग करते हुए इस बार सिलक्यारा सुरंग में फँसे मजदूरों को निकालने पर तेजी से काम हो रहा है।

भारत में मेघालय में यह पद्धति अपनाई जाती है। यहाँ कोयले के छोटे-छोटे भंडारों में स्थानीय लोग खनन के लिए ऐसी छोटी सुरंगें बनाते हैं। इस तरह की सुरंगों में कोई सुरक्षा के इंतजाम ना होने के कारण कई बार हादसे भी होते रहे हैं।

हालाँकि, इस तकनीक की कुछ खामियाँ भी हैं जैसे सुरंग में पतला और एक ही रास्ता होने के कारण इनमें बारिश का पानी भर जाता है जिसमें कई बार मजदूर फँस जाते हैं। मेघालय से कई बार ऐसी घटनाएं सामने आई हैं। जिसके बाद राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) ने ऐसी सुरंगों पर 2014 में प्रतिबन्ध लगा दिया था।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया