दृष्टि IAS वाले दिव्यकीर्ति सर पढ़ा रहे हिंदू घृणा का पाठ: माता सीता की तुलना कुत्ते के चाटे घी से, शम्बूक वध पर जाति का जहर बोया

भगवान राम पर दिव्यकीर्ति का विवादस्पद बयान (फोटो साभार: TFI Post)

यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी के एसोसिएट प्रोफेसर सोशियोलॉजिस्ट सैल्वाटोर बेबोनेस ने कुछ दिन पहले ही कहा था कि भारत का बुद्धिजीवी वर्ग देश विरोधी है। ये इलिट वर्ग सिर्फ देश विरोधी ही नहीं संस्कृति विरोधी भी है। अगर किसी देश की संस्कृति नष्ट हो जाए तो राष्ट्र स्वयं नष्ट हो जाता है, ऐसा विद्वानों ने कहा है। देश में बुद्धिजीवियों का एक विशेष वर्ग पैदा करने वाले कई कोचिंग संस्थान जातिवाद फैलाकर न सिर्फ समाज को तोड़ने का देश विरोधी काम कर रहे हैं, बल्कि यहाँ की संस्कृति के कण-कण में बसे देवों और महापुरुषों का भी चरित्रहनन कर भस्मासुर की भूमिका निभा रहे हैं।

सोशल मीडिया पर एक आजकल एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें UPSC की तैयारी कराकर देश में IAS, IFS, IPS जैसे नौकरशाह पैदा करने वाले संस्थान का एक शिक्षक गलत संदर्भ देकर भगवान राम और माता सीता के प्रति अभद्र भाषा और झूठ का प्रचार-प्रसार कर रहा है। यह संस्थान कोई और नहीं, बल्कि कुछ दिन पहले भी इन्हीं कारणों से विवादों में आ चुका दृष्टि IAS कोचिंग संस्थान है। ‘दृष्टि द विजन’ (The Drishti Vision) की स्थापना नवंबर 1999 में डॉ. विकास दिव्यकीर्ति (Vikas Divyakirti) और डॉ. तरुणा वर्मा (Taruna Verma) ने की थी। इसके संस्थापक दिव्यकीर्ति झूठ का सहारा लेकर छात्रों के मन में हिंदू विरोध और जातिवादी मानसिकता को उभार रहे हैं।

दिव्यकीर्ति अपनी क्लास में विद्यार्थियों बता रहे हैं कि भगवान राम ने रावण से युद्ध माता सीता के लिए नहीं, बल्कि अपनी कुल के सम्मान की रक्षा करने के लिए किया था। अगर बात यहीं खत्म हो जाती तो भारतीय ज्ञान परंपरा के तहत आने वाले चिंतन-मनन और मीमांसा के आधार पर भारतीय जनमानस उनकी बातों को रोष नहीं जाहिर करता। इससे हजारों कदम आगे बढ़कर और मर्यादा की सीमा को पार करते हुए उन्होंने माता सीता की तुलना ‘कुत्ते द्वारा चाटे हुए घी’ से कर दी। जरा आप भी सुनिए नौकरशाह पैदा करने वाले दिव्यकीर्ति क्या कह रहे हैं।

दिव्यकीर्ति अपने बात में पुरुषोत्तम अग्रवाल के लेख का जिक्र कर रहे हैं। इसके साथ ही वे ये भी बता रहे हैं कि इस लेख में अग्रवाल ने संस्कृत का एक कथन का जिक्र किया है, जो ‘शायद’ वाल्मीकी रामायण का है या उसके ‘नजदीकी’ किसी रचना का है। इसके बाद वे कहते हैं, “जब राम युद्ध जीते रावण से तो सीता मुक्त हुईं। जैसे फिल्मों में नहीं होता है ना कि नायक भागते हुए स्लो मोशन में? ऐसा दृश्य बनना चाहिए था कि नहीं? फाइनली इतने दिनों के बाद, इतना बड़ा युद्ध जीतने के बाद हमलोग मिले हैं। मजाक थोड़े ही ना है? हिंदी फिल्मों में तो नायक-नायिका मिलते हैं। नायिका का पिता हार मान लेता है। फिर देखिए क्या दृश्य बनता है उसके बाद?”

फिर वो आगे कहते हैं, “तो सीता प्रफुल्लित हैं कि मेरे राम ने रावण को नष्ट कर दिया और फाइनली मैं अपने घर जाऊँगी। वो राम के पास आ रही हैं। राम समझ गए कि थोड़ा ज्यादा खुश हो रही है ये तो। तो राम को लता कि थोड़ा ठीक कर दूँ, ज्यादा खुश नहीं होना चाहिए। तो राम ने कहा- रूको सीते! तो सीता रूक गईं। उन्हें लगा कि पहले पूजा-पाठ करना होगा शायद। (हँसते हुए) तो राम ने जो वाक्य बोला है ना बड़ा खराब वाक्य बोला है। मुझे तो बोलते हुए जबान कट के रह जाएगी। पर, बोलना होगा, क्या करें। (इस दौरान कक्षा के सारे विद्यार्थी खूब जोर से ठहाका लगाते हैं।) तो ऐसा वाक्य बोला है- हे सीते, अगर तुम्हें लगता है कि ये युद्ध मैंने तुम्हारे लिए लड़ा है तो तुम्हारी गलतफहमी है। युद्ध तुम्हारे लिए नहीं लड़ा है। युद्ध अपने कुल के सम्मान के लिए लड़ा है। तो रही तुम्हारी बात तो जैसे कुत्ते द्वारा चाटी जाने के बाद घी भोजन योग्य नहीं रहता है, वैसे ही तुम अब मेरे योग्य नहीं हो।”

हालाँकि, भारतीय संस्कृति के नायक भगवान राम के बारे में छात्रों को बताने के बाद उन्होंने इस पर लीपापोती भी कोशिश की और इसका दोष लेखक पर डाल दिया, लेकिन साथ में उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास पर कटाक्ष करने से भी नहीं चूके। उन्होंने कहा, संस्कृत के एक ग्रंथ में राम के मुँह से ये कहलवाया गया है। ये राम नहीं कह रहे, लेखक कह रहे हैं। लेखक लोग अपनी मुँह की बातेें चरित्रों के मुँह से कहलवाते हैं और छवि बनती है चरित्र की। छवि बिगड़ती है उसकी। तुलसीदास से एकदम चुपचाप गोल कर गए इस मामले को। उन्हें बता था कि ये सब नहीं चलेगा, फैमिनिज्म पैदा होने वाला है 300-400 साल बाद और उस समय की महिलाएँ बैंड बजा देेंगी। हालाँकि, फिर बहुत सी ऐसी बातें महिलाओं के कह गए हैं कि बैंड बजाने के लिए पर्याप्त कारण है।”

ये वही दिव्यकीर्ति हैं, जो पढ़ाई और ‘लेखक के मन की बात’ वाली एक लाइन जोड़कर अपने मन की बात छात्रों के मन में भरते रहते हैं और उन्हें उनके मन को पूर्वाग्रह से ग्रसित करने के लिए छोड़ जाते हैं। जब दिव्यकीर्ति जानते हैं कि पुरुषोत्तम अग्रवाल ने जिस संस्कृत ग्रंथ का उल्लेख किया है, वो भगवान राम के संदर्भ में सत्यापित नहीं है। जिस तरह महाभारत के संदर्भ में महर्षि वेद व्यास के लिखित ग्रंथ के अलावा अन्य कोई विश्वसनीय नहीं हो सकता, उसी तरह भगवान राम के संदर्भ में वाल्मीकी रामायण से विश्वसनीय कोई ग्रंथ नहीं है।

महर्षि वाल्मीकी ने रामायण की रचना को ‘युद्ध कांड’ पर ही समाप्त कर दिया है। उसके बाद पाखंडी लेखकों ने तरह-तरह की किताबों लिखीं और अपने हिसाब से भगवान राम के चरित्र को गढ़ा। आज इसे ‘उत्तर कांड’ के रूप में रामायण में देखा जा रहा है, जो कि विश्वसनीय है ही नहीं। वाल्मीकी रामायण के आधार पर सैकड़ों लेखकों ने अपनी हिसाब से लिखा है और चरित्रों की व्याख्या की है, लेकिन इन सब रामायणों को विश्वसनीय नहीं माना जा सकता है और भारतीय समाज वाल्मीकी रामायण के अलावा किसी और रामायण को विश्वसनीय मानता भी नहीं। इसी कारण अन्य रामायण भी कोई है, भारतीय जनमानस जानता तक नहीं।

दिव्यकीर्ति जानते हैं कि इन ग्रंथों की विश्वसनीयता नहीं है, फिर भी अपनी कक्षाओं में इनकी चर्चा करके लोगों को इस अविश्वसनीयता को विश्वसनीयता में बदलने की कोशिश करते हैं और इसके आधार पर अपनी प्रोपेगेंडा भी समझा देते हैं। दिव्यकीर्ति का ऐसा ही एक और वीडियो है, जिसमें वे भगवान राम द्वारा शंबूक वध की चर्चा करते हैं। इसके साथ ही ये भी कहते हैं कि भगवान राम के गुरु वशिष्ठ ने उन्हें शंबूक वध के लिए उकसाया, क्योंकि शंबूक शूद्र थे। इस तरह वे धार्मिक ग्रंथों के झूठे संदर्भ देकर समाज में जातिवाद और जाति आधारित नफरत की बीज बोने का काम कर रहे हैं। इतना ही नहीं सनातन संस्कृति का अपमान करके वे इसकी शाखाएँ बौद्ध, जैन, सिख आदि का भी अपमान कर रहे हैं।

इसी एक इनका एक और वीडियो सामने आया है। इस वीडियो में वे कहते हैं, “वाल्मीकी रामायण में एक प्रसंग आता है। प्रसंग ये है कि राम राजा बन गए हैं और वशिष्ठ उनके राजगुरु हैं। अचानक वशिष्ठ ने राम से कहा कि देखिए राजन हमारे क्षेत्र में कुछ गलत हो रहा है, जिसकी वजह से प्रकोप हो सकता है। तो राम अपने राज्य में देखने निकले कि कहाँ अनैतिक कार्य हो रहा है। घूमते-घूमते अंत में एक व्यक्ति उन्हें मिल गया तपस्या करता हुआ। तो राम ने पूछा कि भाई तुम कौन हो। तो उसने कहा कि मेरा नाम शंबूक है। राम ने पूछा कि किस वर्ण से हो तो उसने बताया कि वह शूद्र जाति से है। बस यही मामला था। राम के राज्य मे एक शूद्र व्यक्ति तपस्या कर रहा है। ये भगवान राम कैसे बर्दाश्त करते। वशिष्ठ जी ने कहा कि ये अनैतिक है। ज्ञान आ वहीं से रहा है सारा। इतना सुनना था कि राम ने उस व्यक्ति की गर्दन धड़ से अलग कर दी।”

धार्मिक संदर्भ को लेकर जिस तरह से दिव्यकीर्ति ने ‘राम के राज्य मे एक शूद्र व्यक्ति तपस्या कर रहा है, ये भगवान राम कैसे बर्दाश्त करते’ और ‘ज्ञान आ वहीं से रहा है सारा’ जैसे अपने विचारों के जरिए उन्होंने साफ तौर पर जातिवाद फैलाने का काम किया है। इसके साथ ही उन्होंने ये भी दर्शाने की कोशिश की कि रामराज्य में शूद्रों का उत्पीड़न होता है। दिव्यकीर्ति जैसे अपनी कक्षाओं में इन बातों का कभी जिक्र नहीं करते कि भगवान राम के सबसे अच्छे दोस्त निषादराज गुह थे, जो तथाकथित शूद्र की श्रेणी में आते हैं। उन्होंने शबरी का कभी जिक्र नहीं किया होगा, जिनके जूठे बेर को भगवान राम प्रेम से खाते रहे। शबरी आदिवासी महिला थीं, लेकिन भगवान राम ने कभी उनके प्रति विद्वेष नहीं दिखाया। सुग्रीव, जामवंत, जटायु जैसे प्रकृति के हर जीव-जंतु को उन्होंने गले लगाया और अपना माना, लेकिन ये तर्क इन जैसे प्रोपेगेंडावादियों की तर्क पर खतरे नहीं उतरते। इन्हें झूठे और अविश्वसनीय किताबों का सहारा लेकर तो सब समाज में तोड़ पैदा करना होता है।

दिव्यकीर्ति का ये दोनों प्रसंग उत्तर कांड के हैं, जो कि असत्यापित है। इतना ही नहीं, भगवान राम क्षत्रिय धर्म के अनुसार निहत्थों पर कभी वार नहीं करते थे। तपस्या करता हुआ शंबुक निहत्था ही होगा। इसलिए ये भी तथ्यात्मक रूप से सही प्रतीत नहीं हो रहा है। दिव्यकीर्ति ने यह जानबूझकर सिर्फ प्रचार पाने के लिए किया है या यह उनका स्वाभाविक गुण है, ये तो वही स्पष्ट रूप से बता सकते हैं, लेकिन इतना तो तय है कि विद्यार्थियों के मन में पूर्वाग्रह पैदा करके ये देश का हित कतई नहीं कर रहे हैं। ये विद्यार्थी कल नौकरशाह बनेंगे, फिर ये संदर्भ मन-मतिष्क का हिस्सा रहेगा और साथ ही छात्र जीवन का पला हुआ पूर्वाग्रह भी। इस असर समाज और कानून-व्यवस्था पर स्पष्ट रूप से परिलक्षित भी होगा। इस बात से पूरी तरह इनकार नहीं किया जा सकता है।

ऐसा नहीं है कि दिव्यकीर्ति ही अकेले इस तरह के काम कर रहे हैं। इस तरह का काम UPSC की तैयारी कराने वाले अन्य कुछ शिक्षक भी करके विवादों में आ चुके हैं। इनमें एक हैं ओझा सर के नाम से मशहूर अवध प्रताप ओझा। हिंदू धर्म पर ऐसे ही एक विवादास्पद मामले में अवध प्रताप ओझा ने कहा था, “बलराम ने एक बार कहा कि यादव लोग तुम को पकड़कर मारने वाले हैं। कृष्ण ने पूछा ‘क्यों’ तो बलराम बोले तुम इनकी बीवियों के साथ नाचते हो तो पीटेंगे नहीं। ये सुन श्रीकृष्ण ने कहा कि तुम टेंशन मत लो हम संभाल लेंगे। इसके बाद एक दिन वृंदावन में बारिश होनी शुरू हुई तो कृष्ण ने जाकर पर्वत उठा लिया। अब सोच कर देखो उंगली पर अगर कोई पर्वत उठा ले तो ये क्या हुआ- शक्ति का प्रदर्शन। तब यादवों ने श्रीकृष्ण को हाथ जोड़ कर कहा कि तुम बीवी के साथ तो नाच ही रहे हो, साली के साथ भी नाचो। हमें कोई टेंशन नहीं।”

हिंदुओं को गाली देने वाले ओझा सर ने तो यहाँ तक कह दिया था कि इस्लाम के आने से पहले दुनिया में अँधेरा था। वे कहते हैं, “इस्लाम जब पैदा हुआ तब पूरी दुनिया में अँधेरा छाया हुआ था। इस्लाम का इतिहास पढ़ो। यूरोप में विच हंट के नाम पर महिलाओं को जलाया जा रहा था। भारत में सती प्रथा थी। चीन में लड़कियों की हत्या की जा रही थी। चारों तरफ अँधेरा था, और अँधेरे के बीच मोहम्मद साहब हाथ में दीया लिए खड़े थे, इस्लाम…प्यार…संदेश। मोहम्मद एक रास्ते से हर रोज जाते थे। वहाँ एक महिला उनके ऊपर कूड़ा डालती थी। अगर कोई हमारे ऊपर कूड़ा डाले तो हम उसे गोली मार देंगे कि हमारे ऊपर किसी ने कूड़ा कैसे फेंका। वाजीराम के टीचर पर कूड़ा कैसे फेंका, इतनी औकात तुम्हारी। एक दिन उस महिला ने कूड़ा नहीं फेंका। मकान के अंदर गए। पूछा मोहतरमा कहाँ है। पता चला वो बीमार हैं। उनका हाल चाल पूछा कि मालिक से दुआ करूँगा आप जल्दी ठीक हो जाएँ।”

इसी तरह विजन IAS की टीचर स्मृति शाह का एक वीडियो सामने आया था, जिसमें वे हिंदू को नीचा दिखाने की कोशिश कर रही थीं। वीडियो में स्मृति शाह कहती हैं, “इस्लाम था बहुत लिबरल। वह समानता के बारे में बात करता था। कोई जाति व्यवस्था भी नहीं थी। अगर इस्लाम पढ़ा होगा तो एक चेरामन जुमा मस्जिद है जिसका मिनिएचर आपके पीएम ने सऊदी किंग को दिया । ये भारत का पहला मस्जिद है जो 7वीं-8वीं शताब्दी में बना। तब इस्लाम आया नहीं था। लेकिन इस्लाम आना शुरू हो गया था। उस समय वह उदारवाद, समानता के बारे में बात कर रहे थे। वह किसी भी तरह की कठोरता और जातिवाद से मुक्त थे। इस्लाम की एक खासियत थी जिसमें वह ईश्वर (अल्लाह) के प्रति पूरे समर्पण को लेकर बात करते थे। वे एक ईश्वर के कॉन्सेप्ट पर बात कर रहे थे।”

जब-जब इन शिक्षकों के बयान या वीडियो सामने आए, तब-तब लोगों में गुस्सा फुट पड़ा, लेकिन कड़ी कार्रवाई ना होने के कारण हिंदुओं को अपमानित करने का काम लगातार जारी है। दिव्यकीर्ति के इस अपमानजनक व्याख्या पर भी लोगों में गुस्सा है। सोशल मीडिया यूजर विकास दिव्यकीर्ति के खिलाफ ट्विटर पर #BanDrishtiIAS का ट्रेंड चला रहे हैं। हालाँकि, संस्थान की ओर से इस पर अभी किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालाँकि, प्रतिक्रिया आ भी जाती है तो भारत की संस्कृति और धर्म का मजाक बनाने का यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहेगा, जब तक कि गलत तथ्यों के आधार पर समाज में विभाजन करने वालों पर कड़ी कार्रवाई नहीं होती।

सुधीर गहलोत: इतिहास प्रेमी