मद्रास उच्च न्यायालय ने गुरुवार (11 जनवरी, 2024) को कहा कि चाइल्ड पॉर्न डाउनलोड करना और इसे प्राइवेट में देखना पॉक्सो एक्ट (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) और IT (सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम) के तहत अपराध नहीं है। मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि पॉर्नोग्राफी के लिए अगर किसी बच्चे का इस्तेमाल किया गया है, तभी पॉक्सो के तहत मामला चलाया जाना चाहिए। ऐसे ही, IT एक्ट के तहत मामला तभी चलेगा जब आरोपित ने कंटेंट बनाया हो, प्रकाशित किया हो और दूसरों को भेजा हो।
न्यायाधीश N आनंद वेंकटेश ने ये फैसला सुनाया। इस दौरान उन्होंने केरल हाईकोर्ट के एक जजमेंट का जिक्र किया, जहाँ इसी तरह का फैसला सुनाया गया है। मामला 28 साल के व्यक्ति से जुड़ा है, जिसके ऊपर चाइल्ड पॉर्न डाउनलोड करने और इसे देखने पर पॉक्सो और आईटी एक्ट पुलिस ने लगाया था। हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपित ने प्राइवेट में ये सब किया, बिना किसी पर कोई प्रभाव डाले हुए। जज ने कहा कि जिस क्षण वो कंटेंट को बाँटने या सार्वजनिक रूप से दिखाने लगता, तब इन एक्ट्स के तहत धाराएँ लगाई जा सकती हैं।
मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि धूम्रपान और शराब पीने की तरह मौजूदा पीढ़ी के लिए पॉर्न देखना भी एक आदत बन गई है। जज ने कहा कि इसके लिए सज़ा सुनना समाधान नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि ‘Gen Z’ इस गंभीर समस्या से जूझ रही है और इसके लिए उन्हें सज़ा देने की बजाए समाज को उन्हें सही सलाह देनी चाहिए, उन्हें शिक्षित करना चाहिए, उनकी काउंसिलिंग करनी चाहिए ताकि वो इस आदत से छुटकारा पाएँ। उन्होंने कहा कि आजकल के किशोर गैजेट्स का इस्तेमाल करते हैं, जहाँ एक बटन टच करने पर चीजें बिना किसी सेंसर के पहुँच रही हैं।
उन्होंने कहा कि बच्चों की मानसिक अवस्था उस समय विकास की अवस्था में होती है, ऐसे में जो अदालत कंटेंट होते हैं उनके प्रति भी वो आकर्षित होते हैं। इसके साथ ही याचिकाकर्ता आरोपित को मद्रास हाईकोर्ट ने काउंसिलिंग अटेंड करने की भी सलाह दी। जज ने कहा कि स्वस्थ और सुखी जीवन के लिए आरोपित को इस आदत से छुटकारा पाना चाहिए। जज ने कहा कि आपराधिक मामला खत्म कर देने कोई मदद नहीं मिलेगी, और याचिकाकर्ता को इस आदत से छुटकारा पाकर खुद की मदद करनी चाहिए।