OBC में घुसा दी 77 मुस्लिम जाति, अब आरक्षण रद्द करने के फैसले को बता रहीं ‘BJP का आदेश’: जानिए क्यों ममता बनर्जी कह रही नहीं मानूँगी हाई कोर्ट का फैसला

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने 2010 के बाद जारी सभी OBC प्रमाण-पत्र रद्द किया, CM ममता बनर्जी मानने को तैयार नहीं

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने 2010 के बाद जारी हुए सभी OBC प्रमाण-पत्र रद्द कर दिए हैं, जिसके बाद मुस्लिमों को ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ में घुसाने की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की साजिशों को गहरा धक्का लगा है। बुधवार (22 मई, 2024) को दिए गए इस आदेश पर TMC सुप्रीमो ने गहरी नाराज़गी जताई है। बता दें कि 2010 में मुस्लिमों के कई समूहों को OBC वर्ग में डाल दिया गया था। 2010 में राज्य में वामपंथी दल CPI(M) की सरकार थी और बुद्धदेव भट्टाचार्जी मुख्यमंत्री थे।

ममता बनर्जी मई 2011 में CM बनी थीं। तब राज्य में सेवाओं एवं पदों पर रिक्तियों के मामले में ये आरक्षण दिया गया था। कलकत्ता हाईकोर्ट ने इसे ख़ारिज करते हुए कहा कि आरक्षण देने का आधार सिर्फ मजहब ही मालूम होता है। हालाँकि, न्यायमूर्ति तपब्रत चक्रवर्ती और राजशेखर मंथा की खंडपीठ ने इस दौरान स्पष्ट किया कि इस फैसले के तहत आरक्षण का लाभ लेकर जो लोग नौकरियों में जा चुके हैं, उन पर कोई असर नहीं पड़ेगा। जो लोग राज्य की चयन प्रक्रिया में सफल हो चुके हैं, उनकी नौकरियों पर कोई इसका कोई असर नहीं पड़ेगा।

साथ ही राज्य की तृणमूल कॉन्ग्रेस सरकार को कलकत्ता हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि ‘पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम, 1993’ के आधार पर OBC में शामिल जातियों की एक नई सूची शामिल की जाए। हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा कि राजनीतिक उद्देश्य से मुस्लिमों के कुछ समूहों को आरक्षण दिया गया, जो लोकतंत्र का अपमान है। हाईकोर्ट ने कहा कि चुनावी वादे को पूरा करने के लिए जल्दबाजी में ये काम किया था गया, इसके लिए सत्ता हासिल होते ही असंवैधानिक तरीका अपनाया गया।

उस दौरान मुस्लिमों के लिए 10% आरक्षण की व्यवस्था की गई थी। कुल 42 नए समुदायों को OBC वर्ग में जोड़ा गया था, जिनमें से 41 मुस्लिम थे। बताया जा रहा है कि 2010 के बाद 5 लाख से भी अधिक लोगों ने अपना OBC सर्टिफिकेट बनवाया। 2010 से पहले जिन 66 जातियों को इसमें जोड़ा गया था, उसमें हाईकोर्ट ने हस्तक्षेप नहीं किया। हाईकोर्ट ने माना कि जो लोग सही में पिछड़ा वर्ग से थे, उन्हें सर्टिफिकेट नहीं मिला। 5 मार्च, 2010 से 11 मई, 2012 तक 42 वर्गों को OBC में जोड़े जाने को न्यायालय ने अवैध बताया।

इस तरह 2010-2024 के बीच जारी किए गए सभी प्रमाण-पत्र रद्द कर दिए गए। अब ये OBC के तहत मिलने वाले सरकारी फायदों का लाभ नहीं उठा सकते हैं। वहीं ममता बनर्जी ने इस फैसले को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है और कहा है कि सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती दी जाएगी। उन्होंने इसे ‘BJP का आदेश’ बताते हुए ‘OBC आरक्षण’ जारी रहेगा। उन्होंने इसे देश में एक कलंकित अध्याय बताते हुए एक दुस्साहस करार दिया। ममता बनर्जी ने कहा कि ये फैसला उनका नहीं, उपेंद्र नाथ बिस्वास का था।

बता दें कि बिहार में चारा घोटाले की जाँच करने वाले पूर्व IPS अधिकारी रहे उपेंद्र नाथ बिस्वास ममता बनर्जी की पहली सरकार में पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री थे। चारा घोटाले की जाँच के समय वो CBI के जॉइंट डायरेक्टर थे। अब हाईकोर्ट के आदेश के बाद OBC की नई सूची बना कर इसे विधानसभा में पेश किया जाएगा। अब TMC सरकार के पास इस मामले में हाईकोर्ट में रिव्यू पेटिशन दाखिल करने या फिर सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनौती देने का विकल्प है।

25 जून को लोकसभा चुनाव 2024 के छठे चरण का मतदान होना है। उससे ठीक पहले ये फैसला आया है। बताया जा रहा है कि कुल 77 मुस्लिम जातियों को मिला OBC का दर्जा रद्द किया गया है, जिनमें से 42 को CPI(M) और 35 को TMC सरकार ने जोड़ा था। पश्चिम बंगाल में एक तिहाई जनसंख्या मुस्लिमों की है, ऐसे में अब विपक्षी दल न्यायालय के इस आदेश का इस्तेमाल मुस्लिम ध्रुवीकरण के लिए कर सकते हैं। अदालत ने स्पष्ट कहा है कि इन समूहों को वोटबैंक की तरह ट्रीट किया गया।

वहीं भाजपा ने इस फैसले का स्वागत किया है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष JP नड्डा ने कहा कि असंवैधानिक तरीके से ममता बनर्जी तुष्टिकरण और मुस्लिम लीग के एजेंडे को आगे बढ़ा रही थीं। उन्होंने कहा कि ‘घमंडिया’ गठबंधन संविधान की धज्जियाँ उड़ाने में लगा है। वहीं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि वोट बैंक के लिए डाका डाल कर मुस्लिमों को आरक्षण दिया। उन्होंने पश्चिम बंगाल की जनता से पूछा कि क्या कोई मुख्यमंत्री उच्च न्यायालय के आदेश को न मानने की बात कर सकती है?

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया