बुज़दिली को माचोमैन बनाने वाले रवीश वामपंथी वैचारिक दरिद्रता के आख़िरी ब्रांड एम्बेसडर हैं

प्रधानमंत्री मोदी और रवीश आमने-सामने

और आज फाइनली अपने दीपक चौरसिया जी को भी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का इंटरव्यू मिल गया, वह भी उनके घर में घुसकर। मोदी जी तो ‘लव’ हैं, वह तो हमेशा बढ़िया लगते हैं, लेकिन चौरसिया जी को मैं सन 1999 से देख रहा हूँ, आज भी उनकी दाढ़ी और बाल उसी करीने से कटे हैं, जैसे विजय चौक की झाड़ियाँ, आज भी वे उतने ही गुटखा खोर लगते हैं, जितना वे प्रमोद महाजन के जमाने में थे। सवाल-जवाब तो खैर मैं नहीं सुनता, क्योंकि मोदी पर ट्रस्ट है कि बंदा अगर निपट झूठ भी बोलेगा तो तब भी वह ‘खानदान’ के सत्तर साल के सच पर भारी पड़ेगा।

वहीं आज रवीश कुमार को राहुल गाँधी के साथ, जेठ की दुपहरिया में खुले आसमान के नीचे इंटरव्यू करते हुए देखा तो ख्याल आ गया कि यह बंदा इश्क में फलाना-ढिमकाना हो जाना लिखता है, लेकिन असल जिन्दगी में बेइन्तिहाँ नफरत और कुंठा ढोता है। जो चेहरे से टपकती है।

शम्भूनाथ शुक्ला सरीखे और फेसबुक के टॉप फैनों ने इनमें इतनी हवा भर दी है, कि इनकी आत्मा इधर से उधर ठोकरें खाती फिर रही है, भरी जवानी में इनका चैन-वैन सब उजड़ गया है।

इनके साथ वाले पत्रकारों ने इस दौरान कई चैनल बदले, चैनल खोल लिए, राज्य सभा पहुँच गए, कई मंत्री बन गए और कई तो रिटायर भी हो गए। लेकिन रवीश 25 साल से प्रनॉय रॉय की ‘गोदी’ में ही बैठे हुए हैं। इतना कमजर्फ और बुजदिल इंसान बीते सौ सालों में शायद ही कोई हुआ हो। जिनकी सरकारी नौकरियाँ होती हैं, उनके भी ट्रान्सफर होते हैं, जिनकी मंत्रालय की नौकरियां होती हैं, उनके कमरे तो भी बदल जाते हैं, लेकिन आपकी जिन्दगी में कुछ नहीं बदला। आप में हिम्मत नहीं हुई NDTV नामक टापू से बाहर देखने की।

और अपनी इस बुजदिली को आपने ‘मैचो मैन’ का जामा पहना दिया, जो इतना ताकतवर है कि सीधे भारत के प्रधानमंत्री मोदी से सवाल-जवाब करता है। जो खुद अपने आप में एक संस्था बन गया है, जो एक पैरेलल लोकपाल है। जो रेलवे नौकरी की अभ्यर्थियों से लेकर सफाई कर्मियों तक का यूनियन लीडर और उनका खैरख्वाह है, जो ममता बनर्जी की तरह मोदी को देश का प्रधानमंत्री ही नहीं मानता।

खैर आपकी शान में क्या कहा जाए, शब्द बौने लगते हैं आपके चेहरे पर पसरी ‘मनहूसियत’ के आगे। बहरहाल आज जब आपको राहुल गांधी के आगे बड़ी बेतरतीब सी हालत में देखा तो लगा कि ऐसी क्रांतियाँ चूल्हें में चलीं जाएँ लेकिन इंसान को सलीके से, अच्छे कपडे पहनकर रहना चाहिए। अगर सुफेद बालों में डाई सूट नहीं करती है तो जेल लगाकर कंघी तो की जा सकती है न! या फिर आपने कसम खा ली है कि देश में वामपंथी दरिद्रता के आख़िरी ब्रांड एम्बेसडर आप ही बनेंगे!

खैर आज का इंटरव्यू, वह भी राहुल गांधी के साथ, क्या निकल कर आ सकता है! पानी को मथने से हो सकता है कुछ मिनरल निकल आएँ लेकिन राहुल में से तो शून्य के झाग ही निकलेंगे। और इसलिए इतनी कवायद के बाद रवीश के पास एक अदद हेडलाइन तक नहीं है। वहीं मोदी जी अब तक जिन दर्जनों पत्रकारों को इंटरव्यू दे चुके हैं, वे फूल के कुप्पा बने घूम रहे हैं, उनके चेहरे की लाली उनकी खुशी और उनकी उपलब्धि बयान कर रही है।

वहीं रवीश आज राहुल गाँधी का इंटरव्यू करने के बाद भी डल लगे, उन्होंने कई बार राहुल गाँधी से बीच-बीच में प्राइम टाइम वाली हँसी ठिठोली भी की, लेकिन यह सब राहुल के पल्ले नहीं पड़ता, वे उतना ही बोलते, हँसते, चिल्लाते और चीखते हैं, जितना उन्हें सुबह CWC के गिद्धराज जटायु के हमउम्र कांग्रेसी ब्रीफ करते हैं।

इससे ज्यादा सुर्खियाँ और दुआएँ तो रवीश ने महागठबंधन की रैली के मंच पर मायावाती के विशालकाय सफ़ेद सोफे के पीछे अनुशासित बसपाई कार्यकर्ता की तरह एक्ट करके हासिल कर ली थी। लगता है इन दिनों भाई का बैड लक ही खराब चल रहा है।