PM मोदी के बड्डे पर भास्कर में फूल पेज फोटो… प्रिंटिंग-टाइपिंग मशीन को भेजा है लाख लानतें… रवीश अब मत रोइए

रवीश अब मत रोइए, प्लीज... आपको पत्रकारिता का वास्ता!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नफरत पालने वाले ‘बुद्धिजीवियों’ की लिस्ट में शामिल NDTV के ‘पत्रकार’ रवीश कुमार ने एक बार फिर से अपनी इस काबिलियत को दुनिया के सामने प्रदर्शित किया है। इसके लिए मोदी के प्रति घृणा से ओत-प्रोत रवीश जी ने इस बार दैनिक भास्कर को निशाने पर लिया। वही दैनिक भास्कर, जिस पर छापा पड़ने पर रवीश जी ने ‘घाघरा’ उठा कर नाचना शुरू कर दिया था।

उन्होंने दैनिक भास्कर के फ्रंट पेज को अपने फेसबुक वॉल पर शेयर करते हुए लिखा, “छापे के बाद दैनिक भास्कर के अंग्रवाल वरिष्ठों की नज़र में मोदी जी। प्रधानमंत्री जी नहीं, प्रधानमंत्रीश्री लिखा है। आयकर से ही आस्था में बढ़ोत्तरी होती है।” 

ऐसा लगता है कि इस विज्ञापन से रवीश कुमार इतने आहत हो गए कि उन्होंने ‘अग्रवाल’ को ‘अंग्रवाल’ लिख दिया। हालाँकि हमने उसे वैसे ही लिख दिया। वो क्या है न कि इतने बड़े ‘पत्रकार’ हैं तो सही ही लिखा होगा… ऐसा लोगों का कहना है तो हमने भी मान लिया।

और ताज्जुब की बात तो यह है कि इतने बड़े तथाकथित पत्रकार के पास देश-दुनिया के तमाम मुद्दों, परेशानियों, समस्याओं को छोड़कर प्रधानमंत्री मोदी का विज्ञापन देखने और इस पर टिप्पणी करने की फुर्सत है। इसे आप इनकी महानता नहीं तो और क्या कहेंगे। वैसे इसे ही कहा जाता है माइक्रोस्कोप लेकर खोजा गया मुद्दा। दुनिया में कितना गम है। मेरा गम कतई निराला है।

जी हाँ…यह विज्ञापन ही है, जिस पर ‘छेनू कुमार’ इतना बिलबिला रहे हैं। आपका फ्रस्टेशन समझ सकती हूँ रवीश जी, मगर अपने पाठकों को भ्रमित तो मत कीजिए… ये शुभकामना संदेश भास्कर ने अपनी तरफ से नहीं छापा है। ये एक विज्ञापन है, जिसे नीचे लिखे नाम वालों ने दिया है, जैसे आपके प्रशंसक चाहे तो आपके जन्मदिन पर ज़ी न्यूज़ में भी विज्ञापन चलवा सकते हैं… आप तो मीडिया के धंधे से जुड़े है सालों से… खबर और विज्ञापन का भेद भलीभाँति जानते होंगे, मगर आपको अपना एजेंडा भी तो चलाना है न।

रवीश कुमार ने जो फोटो शेयर की है, उसमें भी आप देख सकते हैं कि यह विज्ञापन सरकार ने या अखबार ने नहीं दिया है, बल्कि इसके लिए भुगतान किया गया था। इस विज्ञापन के लिए प्रधानमंत्री के कुछ समर्थनों ने भुगतान किया था। पीएम मोदी की तस्वीर के नीचे दैनिक भास्कर अखबार में इस विज्ञापन के जरिए पीएम को उनके 71वें जन्मदिन पर बधाई देने वालों के नाम देख सकते हैं।

वैसे रवीश जी, आप इतने बड़े पत्रकार हैं तो ये तो पता ही होगा कि पैसे देकर तो कोई भी, किसी भी अखबार, न्यूज चैनल पर विज्ञापन दे सकता है, लेकिन हमेशा मोदी के प्रति घृणा का चश्मा लगाए रहने पर आपको इस सबकी सुध-बुध कहाँ रहती है। दैनिक भास्कर के ब्यूरो चीफ रोहित वत्स ने भी रवीश कुमार के पोस्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि विज्ञापन जैसे आता है, वैसे छापना होता है, ये विज्ञापनदाताओं की इच्छाओं पर निर्भर है, अखबार का क्या कसूर।

दैनिक भास्कर के ब्यूरो चीफ की प्रतिक्रिया

वैसे कसूर तो इसमें रवीश जी का भी नहीं है। अब इनका कॉन्ग्रेस से टिकट पा चुके अपने भाई के लिए प्यार ही इतना गहरा है कि वो जहाँ भी मोदी की तस्वीर या तारीफ देखते हैं, इन्हें सुगबुगाहट होने लगती है। मैं तो कहती हूँ कि आप भी विज्ञापन दे दीजिए, लेकिन आप नहीं दे सकते न, क्योंकि आप ‘गरीब’ हैं और विज्ञापन देने के लिए पैसे की जरूरत होती है, मगर वो कहते हैं न कि ‘नाम ही काफी है’, तो आपकी इतनी जान-पहचान तो होगी ही कि आपके नाम पर ही काम हो जाएगा, वो भी बिना दाम दिए। लेकिन आप तो ठहरे ‘ईमानदार’।

ये सब तो ठीक है, लेकिन एक बात फिर भी समझ में नहीं आ रही कि एनडीटीवी पर घंटों आतंकियों का महिमांडन होता है, वो आस्था कैसे बढ़ी है? पालघर के साधुओं की हत्या को चोरों की हत्या और किसी मुस्लिम के मरने पर HINDUS KILLED MUSLIM जैसे हेडलाइंस में बढ़ोतरी कैसे होती है? आपके भी चैनल को विज्ञापन के लिए पैसा दिया जाता है तो वे भी करते है, भास्कर ने कर दिया तो इसमें आयकर कहाँ से आ गया? अखबार को विज्ञापन में जो लिखकर मिला, उसको छापा है। यह पोस्ट ही आपका पूर्वाग्रह दिखा देता है, जिससे आपकी बहुत सी अच्छी बातें भी महत्वहीन साबित हो जाती हैं। अपने आपको सँभालिए रवीश जी। इतना ज्यादा भी मोदीफोबिया ठीक नहीं।

खैर, जो भी हो, NDTV पर है तो सही ही होगा, सालों का भरोसा है हमारा। फिलहाल तो मैं लाख लानतें भेजती हूँ उस प्रिंटिंग और टाइपिंग मशीन को, जिसने ऐसा छापा। भले ही वह विज्ञापन है, लेकिन है तो मोदी की तारीफ में ही न।

वैसे आपकी दाद देनी पड़ेगी इतनी कुंठा, इतनी नफरत होने के बाद भी आप नौकरी कर ले रहे हैं। तर्कों के तीर अपने तरकश में रखने वाला आदमी इस तरह से कुतर्क करे, तो वाकई में आप मानसिक दिवालिया हो गए हो। सोचने वाली बात है कि विज्ञापन की भाषा और उसमे निहित अर्थ अगर सार्वजनिक रूप से छापने योग्य हो तो वो छप ही जाएगा, इसमें अखबार या उसके मालिक को क्यों घसीटा जाए। आप उस मक्खी की तरह हो जो पूरे सुंदर शरीर को छोड़ कर सिर्फ किसी घाव या फिर गंदी नाली पर ही बैठेगी।

धूर्तता तो ये है कि नीचे विज्ञापनदाताओं का नाम होने के बावजूद आप एजेंडा चला रहे हो। आपकी पत्रकारिता व्यक्तिविशेष के विरोध तक रह गई है। आज एक बार फिर आपकी मानसिकता से यह पता जरूर चल गया है कि आपको सिर्फ मोदी का विरोध करना है चाहे वह कैसे भी हो साम दाम दंड भेद। तो क्या मौलाना मोदी लिखा होता तब आप संतुष्ट होते?

पूरी ज़िंदगी अब मोदी विरोध की राजनीति करके ही पेट पालने का ठाना है क्या? फिलहाल तो बस यही कह सकती हूँ कि रवीश जी बस पागल मत हो जाना, आप भारत के लाखों युवाओं के प्रेरणा हैं। हाँ, समझ सकती हूँ कि दिल में बेचैनी होगी, पेट में भी कुछ-कुछ हो रहा होगा, मुँह से बहुत कुछ निकलने को बेताब होगा, बरनौल की भी जरूरत होगी… अकेले में रो लेना, बस हौसला रखो… सब ठीक हो जाएगा।