रमजान में हिंदू बच्चों के हत्यारे को बचाने निकली RJ सायमा निभा रही मुस्लिम ब्रदरहुड, ‘काफिर’ अजीत अंजुम लेकिन क्यों कर रहा ऐसा?

बदायूँ घटना पर सायमा और अजीत अंजुम की हिपोक्रेसी

उत्तर प्रदेश के बदायूँ में दो मासूम बच्चों की नृशंस हत्या कर दी गई, उनका कसाइयों की तरह गला रेत दिया गया, उनके परिजन रो-रोकर बेहाल हो गए… लेकिन आरजे सायमा और अजीत अंजुम जैसे मीडिया गिरोह के लोग अब भी अपना प्रोपगेंडा चलाने में व्यस्त हैं। वो ये दिखा रहे हैं कि समाज में सिर्फ साजिद ही बच्चों का खून नहीं कर रहा बल्कि पूजा नाम की महिला भी बच्चों को मार रही है। शर्मनाक बात ये है कि इन उदाहरणों को आरजे सायमा और अजीत अंजुम ने बड़ी घृणा के साथ अपने ट्वीट में पेश किया, लेकिन ये घृणा साजिद या पूजा के लिए नहीं दिखाई, बल्कि उन लोगों के लिए दिखाई जो बदायूँ केस में बच्चों के हत्यारे साजिद का नाम उजागर कर रहे हैं।

साजिद का नाम सुन रहीं चुप, पूजा का नाम सुनते एक्टिव

आर जे सायमा बदायूँ वाले केस पर पहले बिलकुल शांत रहीं, न उन्होंने कोई संवेदना प्रकट की, न घटना की निंदा की। लेकिन अगले दिन जैसे ही प्रयागराज वाली घटना आई वो फौरन उसका स्क्रीनशॉट लेकर आ गईं और कहने लगीं, “एक दरिंदे का नाम है साजिद, दूसरी का पूजा। दोनों ने बच्चों की हत्या की। सुबह से नफ़रत के पुजारी मुझे, साजिद की दरंदगी को लेकर ट्रोल कर रहे हैं। अब बेचारे कोशिश कर रहे होंगे कि पूजा को बचा लें। साजिद तो मारा गया। पूजा को भी जल्द पकड़ा जाएगा। क़ानूनी कार्यवाही होगी।मगर ये नफ़रत से भरे लोगों का क्या? ये अपने ही ज़हर से एक दिन घुट के रह जाएँगे। दया आती है इन पर।”

उनके इस ट्वीट को पढ़कर क्या कहीं भी लगता है कि उनको बदायूँ वाली घटना पर दुख है? नहीं, बिलकुल नहीं। इसे पढ़ ऐसा लगता है कि जो लोग उनसे सवाल पूछ रहे थे कि वो साजिद के कृत्य पर बोलें वो उनको जवाब देने के लिए वो प्रयागराज की घटना का सहारा ले रही हैं और हर हाल में साजिद के कृत्य को कमतर दिखाने पर उतारू हैं।

घटनाओं के बीच अंतर क्या है, उसका इनके कोई मतलब नहीं। उनकी आँखें बदायूँ वाली घटना में मौजूद किसी भी तरह के कम्युनल एंगल पर बंद है और प्रयागराज वाली घटना पर ही फोकस कर पा रही हैं। सायमा को न तो बदायूँ के बच्चों की हत्या और न ही प्रयागराज में हुई बच्चों की हत्या से फर्क पड़ रहा है। वह सिर्फ दो तुलनाएँ करके वो संतुष्टि वाला भाव दिखा रही हैं कि चलो हिंदू ने मार दिया है तो बैलेंस करने के लिए उन्हें उदाहरण मिल गया।

खैर, इन दोनों घटनाओं को लेकर लोगों में नाराजगी बराबर है और कोई हिंदू पूजा को बचाने आगे नहीं आने वाला… फिर चाहे मीडिया उसे मानसिक विक्षिप्त बताए, चाहे ये वजह दे कि पूजा को अपनी भाभी नहीं पसंद थीं इसलिए उसने उनके बच्चे मार डाले… कोई भी कारण बच्चों की हत्या को जस्टिफाई नहीं कर सकता।

मगर सायमा और उनके जैसे लोग क्या कर रहे हैं? साजिद के अपराध, उसकी नफरत को कम दिखाने का प्रयास। सोशल मीडिया पर बाकायदा कमेंट हैं ऐसे कि वो लोग नहीं मान सकते कि रमजान में मुसलमान ऐसा कर सकता है। क्या सायमा को ऐसे लोगों की आँख खोलने की जरूरत नहीं है कि वो अपराधी का बचाव करने की बजाय अपराधी मानना सीखें, उलटा वो उन लोगों को नफरती बता रही हैं जो साजिद के अपराध की निंदा कर रहे हैं। क्या इससे ये नहीं लगता कि आरजे सायमा मजहब देखकर दूसरे की पीड़ा महसूस करती हैं।

इसी तरह अजीत अंजुम जो समाज में होने वाले हर घटना पर अपनी निष्पक्ष पत्रकारिता की दुहाई देते हैं वो भी बदायूँ कि घटना की तुलना प्रयागराज की घटना से कर रहे हैं। उनके मुताबिक हत्यारे का नाम साजिद है इसलिए सांप्रदायिक एंगल दिया जा रहा है और एक मजहब को टारगेट किया जा रहा है। उनके हिसाब से ऐसा चुनावी मौसम है इसलिए ये सब हो रहा है।

अब यही अजीत अंजुम जिन्हें इस बात से समस्या है कि हत्यारे का नाम साजिद इतना क्यों उजागर किया जा रहा है वही अजीत अंजुम जब कोई हिंदू आरोपित होता है तो उसका नाम, उसका जाति, उसका कुल, उसका गौत्र, जय श्रीराम का नारा, भगवा कपड़ा सब अपने ट्वीट और वीडियो में डालना बोता हैं।

वहीं अगर कोई इसका विरोध करता है तो वो उसे अंधभक्त करार दे देते हैं या उसे ट्रोल आर्मी कह देते हैं। मगर बात साजिद जैसों की आते ही उन्हें बचाव करना होता है तो उन्हें अपनी ही कही बातें याद नहीं रहतीं। वो खुलकर साजिद की मजहबी पहचान उजागर करने वालों का विरोध करते हैं। उन्हें लगता है शायद यही निष्पक्ष पत्रकारिता है, यही देश के लोकतंत्र को बचाने का तरीका है और इससे ही सेकुलरिज्म खतरे में जाने से रोका जा सकता है। लेकिन ऐसे सेकुलरों को तब वो घटनाएँ याद नहीं आती जब खुद ऐसे लोग लिबरलों को ‘काफिर’ कहकर खारिज करते हैं। वक्त आने पर उन्हें उनके मुद्दों से दूर रहने की चेतावनी देते हैं।

दोनों घटनाओं का कैसे होगा असर

प्रयागराज और बदायूँ कि घटना किसी कीमत पर जस्टिफाई नहीं की जा सकती। बावजूद इसके ये लिबरल और इस्लामी गिरोह के लोग साजिद और जावेद के बचाव में ऐसा कर रहे हैं। उनके हिसाब से इस मामले को कम्युनल एंगल नहीं दिया जाना चाहिए। लेकिन वो ये भी नहीं बता रहे कि वो माँ-पिता क्या करें जिन्होंने बिन किसी गलती के अपने बच्चे खो दिए।

प्रयागराज वाली घटना के बाद और बदायूँ वाली घटना के बाद हर माता-पिता बच्चों को लेकर और अधिक सतर्क होंगे। लेकिन, इसका असर कैसे होगा इसे समझिए। प्रयागराज की घटना के जानकर माता-पिता अपने बच्चों को ऐसे लोगों से दूर रखेंगे जिनकी उनसे न बनती हो या उनका झगड़ा हो। या उन्हें पता चलेगा कि कोई मानसिक रूप से परेशान है तो वो उसके पास डर से अपने बच्चे नहीं छोड़ेंगे। माता-पिता की इस सर्तकता पर कोई बाहर का व्यक्ति सवाल नहीं उठाएगा क्योंकि पता होगा कि न जाने कब किसमें पूजा जैसा हैवान जग जाए।

लेकिन, यही सब बिंदु बदायूँ वाले मामले में लागू नहीं होते क्योंकि ये मामला विशुद्ध घृणा का है। एक परिवार जो अपने पड़ोस में रहने वाले शख्स के दुख को समझ कर उसकी मदद करने चला, उसे चाय पिलाने के लिए घर में बैठाया, उसी शख्स ने उस परिवार के बच्चों की निर्ममता से हत्या की, छोटे-छोटे बच्चों का गला रेता। इस मामले में परिवार की कोई गलती भी नहीं है जो कोई सीख ले सिर्फ इसके कि वो हिंदू हैं।

अब अगर कोई माता-पिता या परिवार इस घटना से सीखकर अपने घर में ऐसे लोगों की एंट्री बंग करदे। अपनों के बचाव की सोचे तो उसे फौरन ये वामपंथियों और इस्लामियों का गिरोह इस्लामोफोबिक घोषित कर देगा और भारत में डर का माहौल चिल्लाकर रोना शुरू हो जाएगा। ऐसे लोग न खुद इनके विरोध में आएँगे और जो खड़ा होगा उसको नफरती बताकर नीचा दिखाने का प्रयास करेंगे। इनका मकसद हमेशा यही रहेगा कि साजिद जैसी घटनाएँ जब जब प्रकाश में आएँ उन्हें कोई पूजा का मामला मिल जाए जिससे वो ऐसे अपराधों को डिफेंड कर पाएँ।