मुस्लिम औरतों के लिए 3 महीने का ‘इद्दत’, सागरिका जी ने 3 साल का रखा, इसलिए TMC से जायज माना जाए राजदीप सरदेसाई की बीवी का ‘निकाह’

सागरिका घोष ने बताया TMC से उनका 'निकाह' क्यों जायज (फाइल फोटो, साभारः फ्री प्रेस जर्नल)

पत्रकारों का राजनीति में जाना नई बात नहीं है। लेकिन तृणमूल काॅन्ग्रेस (TMC) की राज्यसभा सांसदी कबूल करने के बाद सागरिका घोष की सोशल मीडिया में थू-थू हो रही है। इसकी वजह कभी सार्वजनिक तौर पर सागरिका का खुद को ‘नैतिक’ दिखाने के फेर में यह लिख देना है कि किसी सरकार में शामिल होने या किसी पार्टी की तरफ से राज्यसभा में जाने से बड़ी बात एक पत्रकार होना है। यह दूसरी बात है कि इस ‘नैतिक मूल्य’ के दर्शन न तो कभी उनकी पत्रकारिता और न कभी उनके पति राजदीप सरदेसाई की पत्रकारिता में हुए।

दरअसल सागरिका घोष ने मार्च 2018 के एक ट्वीट में कहा था, “हाहा! मैं कभी कोई मैं कभी कोई RS टिकट, PS टिकट या CS टिकट किसी भी राजनीतिक पार्टी से स्वीकार नहीं करूँगी सर।” उन्होंने अपने इस ट्वीट को सेव कर रखने की चुनौती देते हुए यह भी कहा था कि ऐसा वे लिखकर देने को भी तैयार हैं। ऐसे में जब टीएमसी ने उन्हें राज्यसभा के लिए उम्मीदवार बनाने की घोषणा की तो लोगों ने उन्हें उनके ही थूके (लिखे) की याद दिलाते हुए पूछा कि क्या अब उनकी राय बदल गई है?

अब सागरिका घोष ने सोशल मीडिया के जरिए ही इसका जवाब दिया है। उन्होंने लिखा है, “6 साल पहले 2018 का मेरा ट्वीट वायरल किया जा रहा है। उस समय मैं सक्रिय पत्रकार थी। उस समय रातों-रात दलगत राजनीति में चले जाना मेरे लिए अनुचित होता। 2020 से मैं पूर्णकालिक पत्रकार नहीं हूँ। बीते 3 साल से मैं विभिन्न समाचार-पत्रों के लिए बतौर स्वतंत्र स्तंभकार लिखती हूँ।”

आगे उन्होंने कहा है कि सार्वजनिक जीवन में आने से पहले सक्रिय पत्रकारिता से उन्होंने तीन साल तक दूरी बनाकर रखी थी। अधिनायकवाद के इस दौर में जब मोदी सरकार ने मीडिया पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया है, संवैधानिक लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्धता ने उन्हें तृणूमल काॅन्ग्रेस के जुड़कर संघर्ष के लिए प्रेरित किया है ताकि लोकतांत्रिक मूल्यों को बचाया जा सके।

जैसा कि मैंने ऊपर कहा है कि पत्रकारों के लिए राजनीति में आना नई बात नहीं है। वैसे ही पत्रकारों का ढीठ और निर्लज्ज होना भी सामान्य है। सागरिका इस मामले में आशुतोष से सीख सकती थीं। आशुतोष ने भी आम आदमी पार्टी (AAP) ज्वाइन करने के बाद डंके की चोट पर पत्रकारिता में नहीं लौटने का ऐलान किया था। लेकिन वे लौटे और आज भी टीवी चैनलों पर बैठ दूसरों के लिए ‘नैतिकता’ बाँच रहे हैं।

सागरिका चाहतीं तो अपने पति राजदीप सरदेसाई से भी सीख सकती थीं, जिनकी पहचान ही कुछ भी थूकने (बोलने/लिखने) और उससे पलट जाने की रही है। वैसे उनके पति कह भी चुके हैं कि राज्यसभा की सीट बिकती है, मोदी सरकार के जमाने में संसद की अहमियत नहीं रह गई है ब्ला ब्ला ब्ला

सीखने के लिए तो सागरिका के सामने रवीश कुमार का भी अप्रतिम उदाहरण था। दुनिया भर का ‘ज्ञान’ देने वाले रवीश कुमार ने आज तक अपने भाई को काॅन्ग्रेस टिकट मिलने की ‘काबिलियत’ का खुलासा नहीं किया है। बीजेपी के किसी सामान्य से कार्यकर्ता के दूर के रिश्तेदार की मामी के भांजे के पोते की करतूतों को सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सवाल पूछने का ‘साहस’ रखने वाले रवीश कुमार ने आज तक अपने भाई पर लगे यौन शोषण के आरोपों पर भी कुछ नहीं कहा है।

पर सागरिका घोष ने स्वघोषित अधिनायकवाद के इस दौर में निर्लज्जता से खुद के थूके (लिखे) को चाटने का विकल्प चुना है, क्यों ऐसा नहीं करने पर रवीश कुमार की भाषा में यह ‘साहस की मंदी’ कही जाती है। सागरिका जी बताना चाहती हैं कि जैसे शौहर की मौत अथवा तलाक के बाद इद्दत का समय पूरा कर मुस्लिम औरतें का दूसरा निकाह इस्लाम को कबूल है, वैसे ही उनका भी टीएमसी के साथ निकाह कबूल किया जाए। चूँकि वे सागरिका घोष हैं तो उन्होंने ‘इद्दत’ का मापदंड (3 साल) भी खुद के लिए ऊँचा रखा है।

अमूमन मुस्लिम औरतों के लिए इद्दत की अवधि तीन माह के करीब होती है, पर सागरिका बता रही हैं कि पत्रकारिता से तलाक लेकर सियासत से निकाह को उन्होंने तीन साल का ‘इद्दत’ पूरा किया है। वे चाहती हैं कि इन तीन साल के दौरान बतौर ‘स्वतंत्र पत्रकार’ उन्होंने विभिन्न समाचार-पत्रों में जो प्रोपेगेंडा परोसा, ‘पत्रकार’ होने के नाम पर मंचों से जो कुछ उगला है, उसे इद्दत की अवधि में प्रेमी के साथ छिप-छिप कर मिलना नहीं माना जाए। वे चाहती हैं कि भले इद्दत अवधि में इमरान खान और बुशरा बीवी का निकाह इस्लाम को कबूल न हो पर तीन साल के ‘इद्दत’ में भी चले उनके सियासी इश्क को कबूल किया जाए। कहा जाए वाह सागरिका जी आप पत्रकारिता और राजनीति में नैतिकता की मिसाल हैं!

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