डेरेक ‘नो ब्रेन’: न तो विधेयक पिज़्ज़ा है और न ही संसद चुंगी का अखाड़ा

संसद में कामकाज से दुखी हुए TMC नेता डेरेक ओ ब्रायन!

क्या भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने यह सोचा भी होगा कि संसद की त्वरित और जनता के मुद्दों के लिए समर्पित कार्यवाही भी एक दिन इसमें बैठे कुछ लोगों के लिए आपत्ति का विषय बन जाएगी? लेकिन ऐसा हो रहा है। देश के कुछ ऐसे नेता और सांसद, जिन्होंने वर्षों तक संसद को नारेबाजी और काम न होने का अड्डा बनाकर रखा था, अब इसकी प्रभावशाली कार्यप्रणाली से असहज नजर आने लगे हैं।

संसद में तेजी से पारित किए जा रहे विधेयकों को लेकर विपक्ष द्वारा आपत्‍ति जताई जा रही है। केंद्र सरकार के इस रवैये पर नाराजगी जताने वालों में से एक नाम तृणमूल कॉन्ग्रेस के सांसद Derek-No Brain डेरेक ओ ब्रायन का भी है। डेरेक ओ ब्रायन संसद की क्रियाविधि से इतने हैरान हैं कि उन्हें एक विधेयक पास होने और पिज्जा डिलीवरी में अंतर समझ नहीं आ रहा है।

विवादित बयान देकर सस्ती लोकप्रियता बटोरने से ज्यादा डेरेक ओ ब्रायन की शायद ही कोई विशेष पहचान है। डेरेक ने एक ट्वीट में केंद्र सरकार पर निशाना साधने की कोशिश जरूर की है लेकिन इससे सिर्फ यही तथ्य सामने आता है कि वो किस तरह के सिस्टम के अभ्यस्त हैं और उनकी आपत्ति क्या हो सकती है?

डेरेक ने ट्वीट करते हुए लिखा है, “संसद को विधेयकों की समीक्षा करानी चाहिए। हम पिज्‍जा डिलीवर कर रहे हैं या विधेयकों को पारित कर रहे हैं?”

https://twitter.com/derekobrienmp/status/1156416485239267328?ref_src=twsrc%5Etfw

जब सरकार संवैधानिक दायरे में रह कर, तय तरीके से, तय समय में, वोटिंग के जरिए बिल पास करा रही है तो एक हिस्से को इससे समस्या क्या है? डेरेक की आपत्ति का मूल बेहद खोखला है। उन्हें यह बताना चाहिए कि क्या किसी तरह का कोई गलत बिल पास हुआ है? क्या संसद में ऐसा कोई प्रावधान है कि निश्चित समय सीमा में ही कोई बिल पास हो? क्या सांसदों ने कुछ सवाल किए जिसका जवाब नहीं दिया गया? क्या विरोधी सांसद अपीजमेंट के चक्कर में बिलों को रोकना नहीं चाहते?

अगर सरकार तेज़ी से काम कर रही है तो उसका स्वागत होना चाहिए न कि फर्जी नैरेटिव तैयार करने के लिए सांसदों द्वारा अख़बारों में लेख लिख कर लोगों में भ्रम फैलाना चाहिए।

डेरेक ओ ब्रायन के बयान का सीधा सा मतलब यही है कि वे अब संसद की कार्यवाही पर ही सवाल उठा रहे हैं। पहले इन्होंने तरह-तरह के फर्जी घोटालों की ख़बरें उड़ाई, फिर सबूत माँगते रहे, आतंकियों को डिफेंड किया, मोदी फिर भी जीत गया तो अब ईवीएम पर रोने के बाद सीधे संसद पर ही सवाल उठा रहे हैं।

दरअसल, डेरेक का वास्तविक दर्द यह है कि उन्हें संसद की सामान्य प्रक्रियाओं की आदत ही नहीं है। जनता के पैसों पर संसद सत्र को बेवजह नारेबाजी का अखाड़ा और चुंगी में तब्दील करने वालों के लिए पिज्जा डिलीवर करने और एक विधेयक के पास होने में शायद ही कोई अंतर पता चल पाए।

इस विधेयक को समय से पास कर लेने से आम आदमी को तो यही सन्देश मिलता है कि यह सरकार वर्षों से शोषण का शिकार होती आ रही महिलाओं और आम आदमी के मुद्दों के प्रति कितनी संवेदनशील है। इसके लिए यदि सरकार को विधेयक पास करने के लिए ‘पिज्जा डिलीवरी’ स्पीड से भी काम करना पड़े तो इसमें कोई बुराई नहीं है। बुराई महत्वपूर्ण संस्थाओं के विरुद्ध फर्जी नैरेटिव तैयार कर उनकी छवि को जनता की नज़रों में खराब करने का प्रयास करना और अविश्वास पैदा करना है।

संसद चलाने का कुल बजट प्रतिवर्ष लगभग 600 करोड़ रुपए होता है, इसका मतलब यह है कि प्रतिदिन की कार्यवाही पर लगभग 6 करोड़ रुपए खर्च हो जाते हैं। सबसे साधारण शब्दों में इसका मतलब यह हुआ कि यदि भारत की संसद एक मिनट चले, तो जनता की कमाई का लगभग 2.5 लाख रुपया खर्च हो जाता है। इस तरह से हम जान सकते हैं कि जनता के पैसों का इस्तेमाल कुछ लोग सिर्फ सदन में बैठकर हो-हल्ला करने में व्यर्थ करना चाहते हैं और किसी विधेयक के पास हो जाने पर वे बौखला जाते हैं।

ब्रायन ने अपने बयान के बचाव में जिस तुलनात्मक ग्राफ को दिखाया है, वो बेहद फर्जी और अविश्वसनीय है जिसे एक मनगढंत तुलना से ज्यादा कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। इसमें प्रतिशत अंकों में दिखाया गया है कि अलग-अलग लोकसभा के दौरान कितने बिलों पर चर्चा की गई, लेकिन यह कहीं भी नहीं लिखा गया है कि यह तुलना किस आँकड़ें को किस संदर्भ में रखकर की गई है।

फिलहाल तो डेरेक ओ ब्रायन को यही सलाह दी जा सकती है कि वो पिज़्ज़ा-बर्गर-पॉपकॉर्न खाकर कुछ आत्मविश्लेषण कर लें। क्योंकि लगता नहीं है कि पूर्ववर्ती सरकारों की तरह ही यह सरकार भी उनके काम करने की शैली को जरा भी भाव देने वाली है। विशेषकर तब, जब आपकी संख्या मात्र 22 पर सिमट कर रह गई हो। शायद आरामपरस्ती का समय अब इतिहास बन गया है। डेरेक ओ ब्रायन को जय श्री राम।

आशीष नौटियाल: पहाड़ी By Birth, PUN-डित By choice