चीन के लिए बैटिंग या 4200 करोड़ रुपए पर ध्यान: CM ठाकरे क्यों चाहते हैं कोरोना घोषित हो प्राकृतिक आपदा?

CM ठाकरे की राजनीति किसके लिए? (फाइल फोटो)

कोरोना के लगातार बढ़ते संक्रमण के बीच महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में नागरिकों की सामान्य गतिविधियों पर एक मई तक प्रतिबंध लगा दिया। आदेश के अनुसार लोगों को बिना ठोस कारणों के सार्वजनिक स्थानों पर जाने पर प्रतिबंध रहेगा। आवश्यक सुविधाओं के अलावा लगभग सब कुछ बंद रहेगा। व्यावहारिकता की दृष्टि से ये प्रतिबंध भले ही कर्फ़्यू जैसे हैं पर सरकार इसे लॉकडाउन नहीं कहना चाहती।

सरकार ने केवल आवश्यक सुविधाओं को जारी रखने की अनुमति दी है। इसके अलावा धारा 144 का भी सहारा लिया है जिसे 15 अप्रैल की रात से लागू करके 1 मई तक रखा जाएगा। सरकार ने सार्वजनिक परिवहन के साधन जैसे रेल, बस के चलते रहने की घोषणा की पर साथ ही मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने लोगों से घर में रहकर काम करने की अपील की है। साथ ही मिल और फ़ैक्ट्रियों के लिए एक दिशा निर्देश भी जारी किया ताकि कोरोना संक्रमण पर क़ाबू करने में मदद मिले। इसके अलावा एक महत्वपूर्ण फ़ैसले में सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में संक्रमण से प्रभावित होने वाले नागरिकों के लिए 5476 करोड़ रुपए का एक राहत पैकेज की घोषणा की है।

राज्य सरकार के अचानक उठाए गए इन कदमों से लगा जैसे सरकार इस प्रतीक्षा में थी कि संक्रमण से आ रहे आँकड़े एक खास जगह तक चढ़ें तब वह जागे। इसके पहले इस महामारी को रोकने के सरकार के प्रयासों को पूरे भारत ने एक वर्ष तक देखा है। पिछले पूरे वर्ष भर कोरोना के रोज़ आने वाले नए केस में महाराष्ट्र का योगदान किसी से छिपा नहीं है। दूसरी लहर के शुरुआत में भी राज्य का योगदान प्रतिदिन आने वाले आँकड़ों में क़रीब 60% रहा। उसके अलावा महामारी की आड़ में खेली गई राजनीति और मुंबई पुलिस के कारनामे अब तक जग प्रसिद्ध हो चुके हैं। वैक्सीन की तथाकथित कमी की बात सरकार में शामिल दलों के नेताओं द्वारा सार्वजनिक तौर पर उठाई गई, ये बात अलग है कि केंद्र सरकार ने दो टूक जवाब दिया कि वैक्सीन की कोई कमी नहीं है।

पर इन सारी बातों के बीच जो सबसे महत्वपूर्ण बात सामने आई वह है मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की वह चिट्ठी जो उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखी है। लगभग 5500 करोड़ के इस राहत पैकेज की घोषणा के साथ ही उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री को लिखी अपनी चिट्ठी में उनसे अनुरोध किया कि केंद्र सरकार COVID19 को एक प्राकृतिक आपदा घोषित कर दे।

ऐसे किसी अनुरोध के पीछे उद्देश्य क्या हो सकता है? ऐसे अनुरोध के पीछे ऊपरी तौर पर तो एक ही उद्देश्य जान पड़ता है, और वो यह है कि यदि केंद्र सरकार COVID19 को प्राकृतिक आपदा घोषित कर दे तो राज्य सरकार के लिए एसडीआरएफ (स्टेट डिज़ैस्टर रिलीफ़ फंड) में इकट्ठा हुए क़रीब 4200 करोड़ रुपए को खर्च करने का रास्ता खुल जाएगा।

मुख्यमंत्री ठाकरे को पता है कि आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 (Disaster Management Act 2005) के अनुसार बनाए गए इस फंड में जमा हुए धन का इस्तेमाल केवल प्राकृतिक आपदा जैसे, बाढ़, सूखा, सुनामी, भूकंप, भूस्खलन, हिमस्खलन इत्यादि के समय ही किया जा सकता है। क़ानून के अनुसार इस फंड में केंद्र सरकार का योगदान 75% और राज्य सरकार का योगदान 25% रहता है। नियम के अनुसार जब तक केंद्र सरकार इस महामारी को प्राकृतिक आपदा नहीं बताएगी, तब तक राज्य सरकार फंड में जमा हुए राशि का इस्तेमाल नहीं कर सकेगी।

पर क्या यहाँ केवल फंड में रखे धन के उपयोग की बात है? प्रश्न यह है कि यदि केंद्र सरकार अपने किसी आदेश से COVID19 को एक प्राकृतिक आपदा घोषित कर दे तो उस अंतरराष्ट्रीय बयान पर क्या प्रभाव पड़ेगा जिसके तहत इस महामारी के लिए चीन को ज़िम्मेदारी ठहराया जाता रहा है? न केवल अमेरिका या यूरोपीय देश बल्कि तमाम एशियाई और अफ्रीकी देशों का मानना है कि इस महामारी के लिए चीन ज़िम्मेदार है। आस्ट्रेलियाई दृष्टिकोण भी जग ज़ाहिर है। दूसरी ओर भारत में भी इसे लेकर एक तीव्र धारणा रही है कि इसके पीछे चीन से निकले वाइरस का ही हाथ है। तमाम वैज्ञानिक, अंतरराष्ट्रीय मीडिया, बुद्धिजीवी और सरकारी प्रतिनिधि इस बात पर ज़ोर देते रहे हैं कि इसे वुहान वाइरस के नाम से ही जाना जाए।

ऐसे में क्या मुख्यमंत्री ठाकरे को अनुमान है कि उनकी बात मानकर यदि केंद्र सरकार इसे प्राकृतिक आपदा घोषित कर देती है तो उस अंतरराष्ट्रीय मान्यता को कितनी बड़ी ठेस लगेगी जो विश्व समुदाय ने पिछले एक वर्ष में स्थापित की है? न केवल भारतीयों को पर विश्व भर में रह रहे भारतीय मूल के लोगों के उस विश्वास का क्या होगा जिसे मन में लिए हुए वे रोज़ इस महामारी से लड़ रहे हैं? क्या ठाकरे की यह माँग उचित है जिसकी वजह से न केवल इतने बड़े अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बयान को ठेस पहुँचेगी बल्कि चीन उनकी इस बात को अपने प्रॉपगैंडा के लिए इस्तेमाल करेगा?

देश में राजनीतिक लड़ाई लड़ते हुए हम बार-बार क्यों भूल जाते हैं कि इन लड़ाई से उपजे बयानों का लाभ पाकिस्तान या चीन पहले भी उठाते रहे हैं? मुख्यमंत्री ठाकरे केंद्र सरकार से जो चाहते हैं, वह क्या केवल एक फंड में पड़े धन के इस्तेमाल की बात है या उससे आगे भी कुछ है? भारत की विदेश नीति पर उनकी इस माँग के असर का उन्हें रत्ती भर भी भान है? कहीं ऐसा तो नहीं कि उद्धव ठाकरे को अपनी इस माँग से न केवल उठने वाले प्रश्नों का पूर्वानुमान है बल्कि उसकी वजह से बनने वाले अंतरराष्ट्रीय बयान की भी समझ है और उनकी इस माँग के पीछे यही कारण है?

ऐसा क्यों है कि राज्य सरकारें पिछले पाँच वर्षों में केंद्र सरकार के प्रति ऐसा रवैया अपनाती रही हैं जिसके संभावित दूरगामी प्रभाव और परिणाम का उन्हें ज़रा भी भान नहीं रहता? जिसका हमारे संघीय ढाँचे पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है? वैसे तो ये वे साधारण प्रश्न हैं जिन्हें बीच-बीच में पूछा जाता रहा है पर उद्धव ठाकरे की इस चिट्ठी से जो प्रश्न उठता है वह गंभीर है और उसके संभावित गंभीर परिणामों पर बहस की आवश्यकता है।