रक्षा के आत्मनिर्भर मोर्चे पर ‘108 कदम’ और चली मोदी सरकार, UPA जमाने में गोला-बारूद का भी था टोटा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (फाइल फोटो, साभार: इंडिया टुडे)

पत्रकारिता की कक्षा का मशहूर जुमला है कि कुत्ता आदमी को काट ले, तो ख़बर नहीं, लेकिन आदमी कुत्ते को काट ले तो वह खबर है। यानी, नकारात्मकता को ही पत्रकारिता का मूल समझने की भूल हम सभी करते रहे हैं। हालाँकि, यह किसी समाज या देश के स्वास्थ्य के लिए तो कतई अच्छा नहीं है। हम भारतीय वैसे भी भूलने में माहिर हैं। हमने गजनी का खँजर भुला दिया, मुगलों का जजिया भुला दिया, गुरुओं के कटे सिर और बलिदानी बच्चे भुला दिए, पाकिस्तान का बनना भुला दिया, चीन का घात भुला दिया, सिखों का नरसंहार भुला दिया और सोनिया गाँधी के दस वर्षीय कुशासन को भी भुला दिया। लिहाजा हमें बार-बार याद दिलाना पड़ेगा कि इस देश में आखिर चल क्या रहा है?

रक्षा मंत्रालय की तरफ से 31 मई 2021 को एक प्रेस-रिलीज जारी हुई, छोटी सी। इस रिलीज में 108 उन सैन्य साजों-सामान की सूची थी, जो अब देश में ही बनाए जाएँगे। यह प्रेस रिलीज जाहिर तौर पर एक झन्नाटेदार तमाचा था, ‘जमानत पर चल रहे’ देश के चिर-अधेड़ युवा नेता राहुल गाँधी के लिए, जो कभी राफेल में भ्रष्टाचार तो कभी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) को पंगु बनाने का बाजा लेकर मैदान में उतर जाते हैं। दरअसल, राहुल वही सोचते हैं, जो वह जानते हैं, जो उन्होंने बचपन से देखा है- जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। जिस आदमी की माँ, जीजा सहित जो खुद जमानत पर चल रहा हो, सिर से पैर तक भ्रष्टाचार में सना हो, उसे भला यकीन कैसे हो सकता है कि कोई भी सौदा बिना कमीशनखोरी के हो सकता है। आखिर उनके मरहूम पापा राजीव गाँधी के समय के मशहूर बोफोर्स तोप-दलाली का भी मामला तो उनको गाहे-बगाहे याद आता ही होगा, परनाना नेहरू के समय का जीप-घोटाला भी उनको याद होगा ही।

लोगों को थोड़ा सा दिमाग पर जोर डालना होगा, फिर उन्हें याद आ जाएगा कि हरेक चुनाव के समय राहुल गाँधी कैसे तरह राफेल-राफेल चिल्लाने लगते थे। हालाँकि कोर्ट से फटकार के बाद इन्होंने माफी भी माँगी, लेकिन इनका राग राफेल बंद नहीं हुआ। ठीक उसी तरह, जैसे चीन से हमेशा फटकार खाई कॉन्ग्रेसी सरकारें चीन की सरकार के साथ अदृश्य और अबूझ समझौता करती रही। चीन को कश्मीर का बड़ा हिस्सा सौंपा नेहरू ने, लेकिन गलवान-घाटी की झड़प और उसके बाद चीन के वापस लौटने के बाद भी राहुल गाँधी का चीखना-चिल्लाना जारी रहा।

अस्तु, कल केंद्र द्वारा जारी यह सूची कुछ आस जगाती है। रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण को बढ़ावा देने के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए रक्षा मंत्रालय के सैन्य मामलों के विभाग की 108 सैन्य साजोसामानों की ‘दूसरी सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची’ को अधिसूचित करने वाले प्रस्ताव को मँजूरी दे दी गई है। रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डीएपी) 2020 में दिए गए प्रावधानों के अनुसार इन 108 वस्तुओं की खरीद स्वदेशी स्रोतों से की जाएगी।

यह सूची उन हथियारों/प्रणालियों पर विशेष ध्यान देती है जो वर्तमान में विकास/ परीक्षणों के अधीन हैं और जिनके भविष्य में पक्के आदेशों में परिणत होने की संभावना है। ध्यान रहे कि रक्षा मंत्रालय इससे पहले बीते साल भी एक सूची जारी कर चुका है और उसमें 101 वस्तुओं के आयात पर रक्षा मंत्रालय ने प्रतिबंध लगाया था।

‘दूसरी सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची’ में जटिल प्रणालियाँ, सेंसर, सिम्युलेटर, हथियार और गोला-बारूद जैसे हेलीकॉप्टर, नेक्स्ट जेनरेशन कॉर्वेट, एयर बोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल (एईडब्ल्यूएंडसी) सिस्टम, टैंक इंजन, पहाड़ों के लिए मीडियम पावर रडार, एमआरएसएएम हथियार प्रणालियाँ और भारतीय सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ऐसी अनेक और चीजें शामिल हैं।

यदि सब कुछ मौजूदा सरकार की योजना के मुताबिक चलता रहा तो 2025 तक देश रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की स्थिति आ जाएगी। अब, जरा इसकी तुलना राहुल गाँधी की माताजी के परोक्ष शासन काल से करें, जब रक्षामंत्री एके एंटनी ने खुलेआम कहा था कि भारत के पास असलहे खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। जब 10 वर्षों तक राफेल की खरीद को लटका कर रखा गया। जब हमारे सैनिकों के पास बुलटेप्रूफ जैकेट तक नहीं थे। जब वन रैंक, वन पेंशन की बात भी गुनाह-ए-अज़ीम समझी जाती थी। जब देश के महान अर्थशास्त्री और नाममात्र के प्रधानमंत्री यह ज्ञान देते थे कि- पैसे पेड़ पर नहीं उगते हैं।

देश दो वर्षों से महामारी की चपेट में है और यह सोचकर ही सिहरन हो जाती है कि अगर गलती से कॉन्ग्रेस और उसके लगुए-भगुए शासन में रहते तो क्या होता? याद कीजिए जब उत्तराखंड में राहत-सामग्री केवल इसलिए नहीं दी गई, क्योंकि राहुल-सोनिया को उसे हरी झंडी दिखानी थी। जब राहत-सामग्रियों से भरे ट्रक इधऱ-उधर रह गए, क्योंकि उनको पेट्रोल का पैसा नहीं मिला था।

एक के बाद एक आपदाएँ आ रही हैं, पर नरेंद्र मोदी की सरकार उनका डटकर सामना कर रही है। साथ ही रक्षा क्षेत्र में जो यह आत्मनिर्भरता हम हासिल करने वाले हैं, इसके लिए एक ही बात कही जा सकती है- देर आएद, दुरुस्त आएद।

Vyalok: स्वतंत्र पत्रकार || दरभंगा, बिहार