हाँ, नंदिता दो तरह का भारत है: एक जहाँ मजदूर रहते हैं, दूसरा जहाँ से तुम्हारे पिता निकाले गए थे

पिता जतिन दास के साथ नंदिता दास (फाइल फोटो)

कोरोना वायरस महामारी ने फुल टाइम प्रोटेस्ट में पारंगत एक्टिविस्ट जमात को ज्ञान बाँटने का बहुत सही मौका उपलब्ध कराया है। यह ब्रिगेड आजकल सिर्फ इतना ही बताने में व्यस्त है कि महामारी को रोकने के लिए सरकार को किस प्रकार के प्रयास करने थे और कौन सा कदम उठाने से बचना चाहिए था। इन एक्टिविस्ट्स का फोकस सिर्फ इस बात पर रहता है कि सरकार ने क्या-क्या गलतियाँ कीं, जो प्रधानमंत्री मोदी के प्रति इनकी निरंकुश घृणा से पैदा हुए ‘वर्ल्डव्यू’ पर आधारित होती है।

ठीक उसी समय ये तबलीगी जमात के ‘सुपर स्प्रेडर्स’ को बेशर्मी पूर्वक बचाते भी दिखते हैं। सिर्फ इसलिए कि उनका मजहब उन्हें ‘लॉकडाउन’ का उल्लंघन करने, थूकने और कॉरिडोर्स में मल-मूत्र त्यागने की इजाजत देता है। जब विश्व कोरोना महामारी से निपटने के लिए उठाए गए मोदी के कदमों की प्रशंसा करता है, ये स्टूडियोज में मौन व्रत धारण कर बैठ जाते हैं। ये एक्टिविस्ट्स जिनकी चिंता में दुबला होने का स्वांग रचते घूमते हैं इस आपदा के समय उनके लिए ऊँगली तक हिलाते नहीं दिखते। ऐसी ही एक फुल टाइम प्रोटेस्टर और पार्ट टाइम एक्ट्रेस हैं, नंदिता दास।

कोरोना लॉकडाउन किस तरह प्रवासी मजदूरों पर प्रभाव डाल रहा है, इस पर एनडीटीवी से चर्चा करते हुए हाल ही में नंदिता दास ने टिप्पणी की थी कि यहाँ दो तरह के भारत मौजूद हैं। पहला, वह जो घर जाने और खाने के लिए मीलों पैदल चलता है। दूसरा, वह जो अपने वाइन के इंतजाम के लिए परेशान है।

नंदिता दस का स्टेटमेंट ( source : NDTV )

नंदिता दास का यह बयान अपने आप में गलत नहीं है, क्योंकि सच में भारत में एक महान विभाजन मौजूद है। लेकिन जब आप सोचते हैं कि यह बयान किसी तरफ से आया है तो मुँह दबा कर हँसते हुए यह सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि आखिर कोई खुलेआम इतना दोमुँहा बर्ताव कैसे कर लेता है।

वैसे तो नंदिता दास खुद को एक मितव्ययी एक्टिविस्ट के रूप में पेश करने की शौक़ीन हैं। आम लोगों के साथ खुद को जोड़ कर देखना पसंद करतीं हैं। जबकि वास्तविकता में वह उन लोगों में से हैं जो अपने घर में आराम से वाइन पीते हुए गरीबों की चिंता जताने के आदी होते हैं, लेकिन उनके लिए करते कुछ भी नहीं।

नंदिता दास के पिता प्रसिद्ध पेंटर जतिन दास हैं। वे आर्थिक रूप से काफी संपन्न हैं। लेकिन एक सरकारी फ्लैट में तब तक कब्जा जमाए हुए बैठे रहे जब तक उनको वह जगह खाली करने का नोटिस नहीं भेजा गया। गरीबों, वंचितों की बात करने वाली नंदिता दास के पिता सालों से एक सरकारी रिहाइश में गैर क़ानूनी ढंग से कब्जा जमाए हुए बैठे थे।

जतिन दास एशियन गेम्स विलेज के एक फ्लैट में 26 सालों से रह रहे थे, जबकि वह उन्हें सिर्फ 3 साल के लिए दिया गया था। सच में देश में दो भारत हैं, लेकिन वाइन के लिए परेशान रहने वाली जमात कौन है यह न तो मीडिया पहचान पाती है और न ही नंदिता स्वीकार कर पाती हैं।

जहाँ एक तरफ वाइन पीते घर बैठकर गरीबों की रोटी की चिंता करती नंदिता दास हैं। वहीं दूसरी ओर आरएसएस जैसी वे संस्थाएँ हैं जो भूखों को भोजन उपलब्ध कराने में दिन-रात एक किए हुए हैं, जिन्हें ये लोग सुबह-शाम गाली देते घूमते हैं। आरएसएस की तरह ही उसका संबद्ध संगठन ‘सेवा भारती’ भी इस आपदा के दौरान वंचितों की मदद में अनथक परिश्रम में जुटा है।

‘सेवा भारती’ का मुख्यालय दिल्ली में है, जहाँ से सारे देश में सहायता कार्यक्रम चलाया जा रहा है। कोरोना महामारी के इस काल में भोजन के पैकेट से लेकर, मास्क बना कर उन्हें जरूरतमंदों तक पहुँचाने तक में ‘सेवा भारती’ का काडर युद्ध स्तर पर लगा हुआ है। ‘सेवा भारती’ का दो लाख से ज्यादा का काडर देश के दूरदराज के इलाकों में बेहद जरूरी सहायता सामग्री लेकर आज मौजूद दिखता है।

‘सेवा भारती’ के अखिल भारतीय महासचिव श्रवण कुमार ने बताया कि संगठन यह नहीं देखता कि वह किस राज्य में काम कर रहा है, या सहायता की जरूरत जिस व्यक्ति को है वह किस जाति-धर्म या पहचान से संबद्ध है। उन्होंने बताया कि मुख्यतः संगठन उन क्षेत्रों में काम कर रहा है जहाँ सरकार भी नहीं पहुँच पा रही। श्रवण कुमार ने बताया कि 26 लाख लोगों तक तो उनकी सीधी पहुँच है जिनको भोजन आदि सहायता पहुँचाई जा रही। आरएसएस भी कोरोना से लड़ाई में अपनी प्रत्यक्ष भूमिका निभा रहा है जो भोजन पैकेट्स और मस्के बाँटने से लेकर गंदे अस्पतालों की साफ़-सफ़ाई में अपना योगदान देता हुआ देश के साथ खड़ा नजर आता है।

नंदिता दास सच कह रहीं हैं, सच में यहाँ दो भारत हैं। और दो ही नहीं, तीन भारत कहे जाने चाहिए। पहला, जहाँ श्रमिक खुद के जीवन की मूलभूत समस्याओं को पूरा करने में संघर्ष करते दिखते हैं। दूसरा, वह जहाँ आरएसएस और सेवा भारती जैसे संगठनों के वालंटियर्स और वे देशवासी हैं जो इस संकट के समय वंचित वर्ग का मददगार बनने का भरसक प्रयत्न कर रहे हैं। और, तीसरा वह है जहाँ नंदिता और उनके पिता जैसे लोग हैं जो सरकारी पैसों पर बेजा आश्रित होते हुए भी गरबों और जरूरतमंदों की बात करते हैं।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया