यूक्रेन में सेना नहीं भेजेंगे, लेकिन रूस को उसके मन की नहीं करने देंगे… ये अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडेन हैं या मेरी सहेली डॉली!

यूक्रेन यूक्रेन के 'दोस्त' अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन (फाइल फोटो, साभार: ओपन डेमोक्रेसी)

हम रूस से लड़ने के लिए अपनी सेना यूक्रेन में नहीं भेजेंगे। लेकिन रूस को उसके मन की नहीं करने देंगे। रूस पर अमेरिका आर्थिक प्रतिबंध लगा रहा है। हमने रूस के झूठों का मुकाबला सच से किया है…

यूक्रेन और रूस के बीच जारी युद्ध (Russia Ukraine War) के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इसी तरह की बातें देश को संबोधित (State of the Union address) करते हुए कही। बाइडेन को सुनते हुए मुझे डॉली की बड़ी याद आ रही थी। डॉली का न तो यूक्रेन से लेना-देना है और न रूस से। वह न तो अमेरिका से नाता रखती और न यूक्रेन के उन कथित दोस्तों से जो युद्ध से पहले उसके साथ जीने-मरने की कसमें खा रहे थे।

डॉली मेरी स्कूल की सहेली है। डॉली और अमेरिका जैसी सहेली/दोस्त आप सब की जिंदगी में भी जरूर होंगे, भले उनका नाम कुछ और हो। ऐसे दोस्त आप में हवा खूब भरते हैं, पर जरूरत के वक्त कहीं नजर नही आते। अमेरिका-यूक्रेन की दोस्ती पर बात करने से पहले डॉली के साथ मेरे एक अनुभव के बारे में जान लीजिए।

मैं स्कूल में ही थी जब मैंने ये पहली बार ये अनुभव किया। तबीयत खराब होने के कारण मैं स्कूल की छुट्टी पर थी और मेरा नाम एक टॉपिक पर बोलने के लिए आगे दे दिया गया था, जिस पर मैं बिलकुल तैयार नहीं थी। तबीयत सुधरने के बाद जब क्लास मेरी एंट्री हुई तो मालूम चला कि मेरी ही सहेली ने उस प्रोजेक्ट में नाम दिया है जिसे प्रेजेंट भी करना है। मैंने सवाल किए तो सहेली ने जवाब दिया कि और लड़कियाँ भी होंगी, इतनी बड़ी कोई बात नहीं है। मैं बेचैन रही। फिर भी इस बात की तसल्ली थी कि और लोग भी साथ होंगे, वो संभाल लेंगे। टीचर आई और सबसे अलग-अलग सवाल शुरू हुए। मैं चुप। मेरी बारी आई तो टूटा-फूटा जितना आता था उसी में अपना जवाब दिया। ये जवाब पर्याप्त नहीं थे। मगर मैं क्या करती। ऐसी स्थिति में थी कि न उससे निकल सकती थी और न ही बिन तैयारी प्रेजेंट करने क्यों पहुँची इस पर जवाब दे सकती थी। जो मुझसे हुआ उस समय किया, मगर उसके बाद एक बात समझ गई कि किसी के उकसावे में आकर अपनी क्षमता का प्रदर्शन तब तक नहीं करना चाहिए जब तक आप पूरी तरह तैयार न हों, दूसरे का सहयोग एक अतिरिक्त सहायता या विकल्प होती है, उसके बल पर मैदान में नहीं कूदा जाता।

कुछ ऐसा ही हो रहा इस समय यूक्रेन के साथ। यूक्रेन, जिसे अमेरिका ने एक ऐसा दोस्त बनकर ठगा, जो सामान्य दिनों में तो कंधे पर हाथ रखक आपके लिए जान देने के दावे कर देता है, मुसीबत के समय कॉल करने की सलाह देता है, मगर जब आप उसपर विश्वास करके हकीकत में सहायता माँगते हैं,  तब वो उस वक्त तक घरघुसरा बन रहता है कि जब तक आपका सार्वजनिक तौर पर मजाक न उड़ जाए।

पिछले कुछ दिनों से यूक्रेन में जो कुछ भी हो रहा है उसे समझने का इससे बेहतर उदाहरण और कुछ नहीं है। मध्य फरवरी से शुरू हुई जुबानी जंग ने एक हफ्ता पहले जब यूक्रेन में सैन्य संघर्ष का रूप धारण किया तो अमेरिका भौचक्का रह गया। उसे शायद यकीन नहीं था कि यूक्रेनी सीमा पर खड़े 1 लाख सैनिक यूक्रेन के अंदर आकर न केवल यूक्रेन में कार्रवाई कर सकते हैं बल्कि अमेरिका का कद भी दुनिया के सामने बौना बना सकते हैं।

याद करिए आज से एक हफ्ते पहले अमेरिका के वो बयान जब वो लगातार यूक्रेन को आश्वासन दे रहा था कि अगर रूस ने ऐसा कुछ भी किया तो अमेरिका आगे आकर उनका साथ देगा। हालाँकि, जब हकीकत में ये हुआ तो अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडेन का सबसे पहले बयान आया कि रूस-यूक्रेन के बीच में उनके सैनिक नहीं भिड़ेंगे। अमेरिका का इस तरह सीधे हाथ पीछे करना यूक्रेन को छलने जैसा था क्योंकि इसी अमेरीका ने उन्हें नाटो सेना की मदद देने का विश्वास दिलाया जो रूस का विकराल रूप देखते ही पिछड़ गए।

यहाँ मालूम हो कि अमेरिक ने यूक्रेन को रूस के खिलाफ़ तब उकसाया जब वो अच्छे से जानता था कि सैन्य ताकत में रूस और अकेले यूक्रेन का कोई मुकाबला नहीं है। उनके पास न तो इतने हथियार थे और न ही इतने सैनिक कि वो अकले भिड़ें। मगर फिर भी अमेरिका का समर्थन पाकर यूक्रेन कभी भी युद्ध के नाम पर पीछे नहीं हटे। जब बात बिगड़ी तो मदद तो दूर की बात हैं अमेरिका ने यूक्रेनी राष्ट्रपति को देश छोड़ने का प्रस्ताव भेजा, जिस पर गुस्सा जाहिर करते हुए राष्ट्रपति जेलेंसकी ने कहा कि उन्हें हथियार चाहिए, न कि कोई सवारी। उन्होंने साफ कहा कि वो देश छोड़कर कहीं नहीं जाएँगे और यही रहेंगे। 

अमेरिका को हो रही अपने मजबूत होने की खुशी

मंगलवार को भी यूक्रेन के नाम पर खेली गई अमेरिका की चाल का खुलासा हुआ। जब बाइडेन ने खुद बताया कि कैसे वो इस युद्ध में इसलिए चुप हैं क्योंकि रूस को कमजोर होता देखना चाहते हैं। आज अमेरीकी राष्ट्रपति बाइडेन के शब्द पुतिन के लिए ये थे कि जब तक कोई तानाशाह अपने हमले की कीमत नहीं चुकाता तब तक वो अराजकता पैदा करता है जब इतिहास लिखा जाएगा तो यूक्रेन के ख़िलाफ़ पुतिन का युद्ध रू को और कमजोर और दुनिया को मजबूत करेगा।

हैरानी इस बात की है जब पूरी दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के खतरे को टालने की प्रार्थना कर रही है तब अमेरिका न केवल ये कामना कर रहे हैं कि रूस लड़ लड़ कर कमजोर हो जाएँ बल्कि इस वक्त वो अपने देश के भविष्य का रोडमैप दिखा रहे हैं। वे ये मानकर चल रहे हैं कि युक्रेन में जो तबाही मच रही है उसमें रूस कमजोर पड़ रहा है। बाइडेन को ये नहीं ध्यान कि इस हमले में कितने बेगुनाह मारे जा रहे हैं। वो अब भी सिर्फ इन ख्यालों में हैं अमेरीकी और यूरोप ने रूस को आर्थिक पीड़ा दी है वो सिर्फ रूस के नीचे होने की एक शुरुआत है।

आपको शायद ये बातें अजीब लगें कि जिस रूस-यूक्रेन युद्ध ने दुनिया को हिला दिया उसका बाइडेन पर इतना भी असर नहीं दिख रहा । वो तो इस युद्ध के परिणामों से खुश होते  और अपने देश की जनता को ये बताते नजर आए कैसे उन्होंने कि 6.5 मिलियन से अधिक रोजगार उन्होंने सृजित किए हैं। उनका झुकाव इस ओर ज्यादा है कि रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला किए जाने के बाद उसकी मद्रा रूबल औंधे मुँह गिरी और अमेरिकी डॉलर के 41 फीसद तक नीचे आ गया।

यूक्रेन-रूस जंग

यहाँ ये बात मालूम रहे कि अमेरिका जहाँ यूक्रेन को छलकर इस पूरे युद्ध संतुष्ट होते दिख रहे हैं। वहीं रूस का ध्यान अभी इस ओर है ही नहीं। उनका पक्ष शुरुआत से साफ था कि वो नहीं चाहते यूक्रेन नाटो का हिस्सा बने। जबकि अमेरिका के नेतृत्व में चल रहा नाटो लगातार यूक्रेन को समर्थन देने की बातें करता है। ऐसे में रूस भड़का और भारी सैन्य शक्ति के साथ बॉर्डर पर जा खड़ा हुआ। 24 फरवरी को उन्होंने यूक्रेन में घुसकर अपनी कार्रवाई शुरू की और सैन्य ठिकानों को निशाना बना शुरू किया। आज 7 वें दिन तक दोनों देशों के बीच ये जंग जारी है। बीच-बीच में वार्ता की खबरें आती हैं लेकिन वो बेनतीजा होती हैं। रूस जहाँ नाटो, क्रीमिया और सैन्य शक्ति को लेकर अपनी बात मनवाने का प्रयास करता है वही यूक्रेन भी अपनी जिद्द पर अड़ा हुआ है।

असल में ये डॉली और अमेरिका जैसे ही दोस्त होते हैं, जिनके साथ को ‘आई लव यू, बट ऐज ए फ्रेंड’ जैसा माना जाता है।