कॉन्ग्रेस ने जैसे-तैसे सजा ली कर्नाटक की मेज, पर सिद्धारमैया को छोड़ सबकी प्लेट रह गई खाली

खाने की मेज से एकजुटता का संदेश! (फोटो साभार: ANI)

तस्वीर 1

खाने की मेज। बैठे हैं कर्नाटक कॉन्ग्रेस अध्यक्ष डीके शिव कुमार। कर्नाटक के मुख्यमंत्री बनने जा रहे सिद्धारमैया। कर्नाटक कॉन्ग्रेस के प्रभारी रणदीप सुरजेवाला। कॉन्ग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल।

तस्वीर 2

बीच में कॉन्ग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे। उनकी बाईं ओर शिवकुमार। दाईं ओर सिद्धारमैया। दोनों का हाथ उठाए गंभीर खरगे। खिलखिलाते शिवकुमार। मंद मंद मुस्कुराते सिद्धारमैया।

सियासी तस्वीरों के भी अपने मायने होते हैं। 13 मई 2023 को कर्नाटक की जनता ने कॉन्ग्रेस को जनादेश दिया। पर मुख्यमंत्री का नाम तय होते-होते 18 मई आ गया। इस बीच इतनी बैठकें हुईं, इतने दावे हुए, इतनी बयानबाजी हुई, अपने नेता के समर्थन में प्रदर्शन हुए कि 224 सदस्यीय विधानसभा में 135 सीट पाने के जश्न पर पानी फिरने लगा। ऐसे में इन तस्वीरों का मीडिया में आना कॉन्ग्रेस के लिए जरूरी हो गया था। वैसे ही जैसे हिंदी फिल्मों की हैप्पी एंडिंग जरूरी है। इन तस्वीरों से बताने की कोशिश हो रही है कि कॉन्ग्रेस एकजुट है। सब कुछ आम सहमति से हुआ है। पर क्या सच में ऐसा ही है? इसका जवाब तलाशने से पहले कॉन्ग्रेस के आधिकारिक ऐलान पर लौटते हैं।

कॉन्ग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने बताया कि सिद्धारमैया कर्नाटक के मुख्यमंत्री होंगे। डीके शिवकुमार इकलौत डिप्टी सीम होंगे। शिवकुमार 2024 के लोकसभा चुनाव तक कर्नाटक कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष भी बने रहेंगे। साथ ही बताया कि कर्नाटक कैबिनेट का शपथ ग्रहण समारोह 20 मई को होगा। वैसे आधिकारिक ऐलान से पहले ही ये सब जानकारी मीडिया में आ चुकी थी। शिवकुमार के रेस में पिछड़ने के संकेत तो 17 मई को तभी मिल गए थे जब सिद्धारमैया का समर्थकों ने जश्न मनाना शुरू कर दिया था।

बयान 1

डीके शिवकुमार के भाई डीके सुरेश कर्नाटक से ही कॉन्ग्रेस के सांसद हैं। उन्होंने कहा है, “मुझे नहीं लगता है कि मैं पूरी तरह से खुश हूँ। मगर कर्नाटक के हित के लिए पार्टी और डीके शिवकुमार और सभी को ये स्वीकार करना होगा। हम कर्नाटक के हित में अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करना चाहते थे, इसलिए डीके शिवकुमार को यह स्वीकार करना पड़ा। भविष्य में हम देखेंगे, अभी एक लंबा रास्ता तय करना है। काश यह (डीके शिवकुमार के लिए सीएम पद) होता। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, हम इंतजार करेंगे और देखेंगे।”

बयान 2

कर्नाटक में कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता जी परमेश्वर ने कहा है, “राज्य में दलित सीएम की डिमांड काफी ज्यादा थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सिद्धारमैया के सीएम और शिवकुमार को डिप्टी सीएम बनाने के ऐलान से दलित समुदाय आहत हुआ है। मैं भी सरकार चला सकता था। अगर सीएम नहीं तो कम से कम मुझे डिप्टी सीएम तो बनाना चाहिए था।” सिद्धारमैया की पूर्व की सरकार में परमेश्वर डिप्टी सीएम रह चुके हैं।

कॉन्ग्रेस के भीतर से आलाकमान के फैसले पर असंतोष का भाव दिखाते ये दो बयान भी उसी समय आए हैं, जब कॉन्ग्रेस ने दो तस्वीरों के जरिए ‘ऑल इज वेल’ का संदेश देने की कोशिश की है। इनके अलावा कुछ डिमांड पहले से भी कॉन्ग्रेस नेतृत्व के पास हैं। मसलन, बेलगावी उत्तर के विधायक आसिफ सैत ने कर्नाटक कॉन्ग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष सतीश जारकीहोली को डिप्टी सीएम बनाने की माँग की थी। कर्नाटक रेड्डी जनसंघ अपने नेता रामलिंगा रेड्डी को डिप्टी सीएम देखना चाहते हैं। जमीर अहमद खान को डिप्टी सीएम बनाने के लिए कोप्पल जिले के गंगावती में मुस्लिमों का प्रदर्शन भी हो चुका है। कर्नाटक वक्फ बोर्ड के चेयरमैन शफी सादी भी उपमुख्यमंत्री पद पर मुस्लिम की दावेदारी जता चुके हैं। इतना ही नहीं वे गृह, राजस्व, स्वास्थ्य जैसे 5 खास विभाग के मंत्री भी मुस्लिम चाहते हैं।

विधानसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस की सफलता की एक बड़ी वजह जेडीएस के वोटरों का टूटना है। कर्नाटक में वोक्कालिगा (vokkaliga community) दूसरा सबसे प्रभावशाली समुदाय है। शिवकुमार भी इसी समुदाय से आते हैं। वैसे वोक्कालिगा परंपरागत तौर पर जेडीएस के समर्थक रहे हैं। लेकिन इस बार अपने समुदाय के शिवकुमार के मुख्यमंत्री बनने की संभावना देख वे कॉन्ग्रेस की तरफ मुड़ गए। ऐसे में जब शिवकुमार मुख्यमंत्री नहीं बनने जा रहे हैं, क्या यह समुदाय आने वाले चुनावों में भी कॉन्ग्रेस के साथ रहेगा? या फिर वह उधर मुड़ जाएगा जहाँ उसे सत्ता में वांछित हिस्सेदारी की उम्मीद दिखेगी?

कॉन्ग्रेस के लिए संकट केवल दलितों, मुस्लिमों और वोक्कालिगा को ही संतुष्ट करने का नहीं है। कर्नाटक के सबसे प्रभावशाली समुदाय लिंगायत ने भी सीएम पद पर दावेदारी जताई थी। अखिल भारतीय वीरशैव महासभा (All India Veerashaiva Mahasabha) ने कॉन्ग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को पत्र लिखकर ये माँग की थी। वीरशैव महासभा कलबुर्गी के अध्यक्ष अरुण कुमार पाटिल ने कहा था, “लिंगायत समुदाय की मदद से कॉन्ग्रेस जीती है। 39 विधायक लिंगायत हैं। लिंगायत समुदाय से आने वाले कई नेता मुख्यमंत्री पद के योग्य हैं। ऐसे में हमने अपने समुदाय के किसी नेता को मुख्यमंत्री बनाने का आग्रह किया है।”

कर्नाटक की राजनीति में येदियुरप्पा के उभार के बाद से लिंगायत बीजेपी समर्थक माने जाते थे। लेकिन इस बार लिंगायत प्रभाव वाली कुछ सीटों पर भी ​बीजेपी को पराजय मिली है। ऐसे में कॉन्ग्रेस सरकार में शीर्ष स्तर पर हिस्सेदारी पाने में नाकाम रही इस समुदाय को पार्टी कैसे संतुष्ट करेगी?

कॉन्ग्रेस की परिपाटी के अनुसार जब आप इन सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं तो आपको पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे हाल के कई उदाहरण मिलते हैं। इन राज्यों में भी कर्नाटक जैसा ही संकट था। भले शिवकुमार आज कह रहे हैं कि वे ब्लैकमेल नहीं करेंगे। पीठ में छूरा नहीं घोपेंगे। लेकिन हम जानते हैं कि नवजोत सिंह सिद्धू ने भी कुछ किए बिना ही पंजाब में कॉन्ग्रेस को साफ कर दिया था। राजस्थान में सचिन पायलट साफ कर रहे हैं।

अजीत झा: देसिल बयना सब जन मिट्ठा