मुलायम का प्यारा ‘राक्षस’ जिससे डरते थे जेल और जज भी, कहानी ‘188 केस वाले’ अतीक अहमद की

अतीक अहमद (फाइल फोटो)

उत्तर प्रदेश एक ऐसा राज्य रहा है, जहाँ मुख़्तार अंसारी, राजा भैया, अमरमणि त्रिपाठी जैसे कई ऐसे ‘गुंडे’ हुए हैं जिन्हें बाहुबली का नाम देकर न सिर्फ़ मीडिया बल्कि राजनीति के एक धड़े ने भी इनका महिमामंडन किया। ऐसा ही एक नाम है अतीक अहमद का। अतीक अहमद मुलायम सिंह यादव के ज़माने में उनके ख़ास रहे थे। जब यूपी में मुलायम-माया मुख्यमंत्री बना करते थे, तो उसके पीछे ऐसे कई आपराधिक पृष्ठभूमि से आने वाले नेताओं का हाथ होता था। इन्हें पार्टी में न सिर्फ़ रखा जाता था बल्कि प्रशासन को भी इन पर कार्रवाई करने से रोक दिया जाता था। ये अपराधी बनते, उसके बाद नेता बनते और फिर सरकार में भी शामिल होते। योगी आदित्यनाथ की सरकार आने के बाद यूपी के अपराधियों में जो ख़ौफ़ है, ऐसा वहाँ पहली बार हो रहा है। सपा-बसपा द्वारा लगातार गुंडों को संरक्षण दिए जाने के कारण तंग जनता ने योगी सरकार के आने के बाद हुए चुनाव में अतीक अहमद को ऐसा मज़ा चखाया कि उसके सारे स्वप्न टूट गए।

अतीक अहमद देखने से ही खूँखार लगता है। जिस भी जेल में जाता है, वो जेल उसे रखना नहीं चाहता। वो जेल से ही आपराधिक धंधे शुरू कर देता है। उसके गुर्गे कभी भी, कहीं भी कोहराम मचाने के लिए तैयार रहते हैं। वो जेल में हो या बाहर, उसका सन्देश उसके गुर्गों तक पहुँच ही जाता है। उस पर नज़र रखने वाले पुलिसकर्मी कहते हैं कि उसका भयावह चेहरा, क़द-काठी और अंदाज़ ऐसा है कि किसी को भी असहज महसूस होने लगे। उसकी आँखें ऐसी हैं कि शायद ही कोई उससे नज़रें मिला कर बात करता हो। वह ख़ुद को मुस्लिमों का रहनुमा मानता है। देवरिया जेल में जब उसे संभालना मुश्किल हो गया तब उसे बरेली स्थित जेल में भेज दिया गया। वहाँ इसके पहुँचते ही अतिरिक्त सुरक्षा की व्यवस्था की गई और पुलिसकर्मियों की संख्या भी बढ़ा दी गई। लेकिन सब बेकार। अब आपको बताते हैं कि उसके बरेली जेल में शिफ्ट होने से पहले क्या हुआ था?

सपा मुखिया रहे मुलायम सिंह यादव के साथ अतीक अहमद

बरेली के व्यापारी मोहित जायसवाल ने कृष्णा नगर पुलिस स्टेशन में एक एफआईआर दर्ज कराई। इसमें उन्होंने अपने साथ हुए अन्याय का ज़िक्र किया। मोहित ने बताया कि उन्हें अतीक अहमद के गुर्गे टांग कर ले गए और पिटाई की। अतीक अहमद और उसके बेटे उमर अहमद के सामने उन्हें मारा-पीटा गया। ये सब और कहीं नहीं बल्कि देवरिया जेल के भीतर हुआ। अहमद ने मोहित के पाँच व्यापार जबरन अपने नाम करा लिए। इसकी क़ीमत 45 करोड़ रुपए आँकी गई है। अगर जेल में रहने वाले अतीक से जब एक करोड़पति व्यापारी सुरक्षित नहीं है सोचिए उसके चरम दिनों में आम जनता की क्या हालत होती होगी? इतना ही नहीं, मोहित के फॉर्च्यूनर कार को भी लूट लिया गया। अतीक ने मोहित से 2 वर्ष पहले भी कई लाख रुपए जबरन वसूले थे। वो पिछले 4 महीनों से उनसे और रुपयों की माँग कर रहा था। उसने जेल में ही क़ानून को धता बताते हुए मोहित के दाहिने हाथ की दो उँगलियाँ तुड़वा डाली थीं।

मोहित के अलावा एक अन्य व्यापारी ने भी उस पर प्रताड़ना का आरोप लगाया था। प्रयागराज के व्यापारी मोहम्मद ज़ाएद ख़ालिद ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पुलिस प्रशासन को पत्र लिखकर बताया कि उसे अतीक अहमद के दर्जन भर गुंडे जबरन टांग कर देवरिया जेल ले गए। वहाँ अतीक ने उससे गाली-गलौज किया और विष्णुपुर में उसके किसी ज़मीन को अपने आदमी के नाम ट्रांसफर करने को कहा। जब ये सब किया जा रहा था तब जाएद की मदद के लिए जेल का कोई भी अधिकारी या पुलिसकर्मी नहीं आया। अब आप ज़रूर सोच रहे होंगे कि देवरिया जेल सचमुच में जेल है या फिर कोई कबाड़खाना जहाँ अतीक जब जिसे मन करे, किसी को भी उठवा कर मँगा लेता है। ऐसा आपने फ़िल्मों में देखा होगा जहाँ अपराधी-राजनीति का नेक्सस जो चाहे वो कर सकता है। अतीक अहमद का भी कुछ ऐसा ही मामला है। राजनीतिक गलियारों में उसकी पहुँच यूँ ही नहीं है। आइए उसके आपराधिक इतिहास से पहले उसके राजनीतिक इतिहास की बात करते हैं क्योंकि ऐसे लोगों को कौन संरक्षण देते हैं, ये जानना ज्यादा ज़रूरी है।

अतीक अहमद पहली बार इलाहाबाद पश्चिम से 1989 में जीत कर विधानसभा पहुँचा। उसे 25,000 (33%) से अधिक वोट मिले थे। 1991 में इलाहाबाद पश्चिम से अतीक अहमद ने अपना दूसरा चुनाव लड़ा। 51% मत पाकर उसने भारी जीत दर्ज की। उसे इस चुनाव में 36,000 से अधिक वोट मिले थे। 1993 के विधानसभा चुनाव में उसे 56,000 मत मिले और उसे मिला मत प्रतिशत 49% रहा। 1996 में न सिर्फ़ उसे मिलने वाले मतों की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ बल्कि मत प्रतिशत भी बढ़ गया। उसे कुल मतों का 53% यानी 73,000 के क़रीब वोट मिले। 2002 में उसे मिलने वाले मत और मत प्रतिशत में भारी कमी दर्ज की गई और ये उसके दूसरे चुनाव में मिले मतों के आसपास ही रहा लेकिन फिर भी वो जीत दर्ज करने में कामयाब रहा। इस तरह उसने इलाहबाद पश्चिम को पाँच बार जीता।

देखने से ही खूँखार लगता है अतीक अहमद

पहले तीन चुनाव उसने निर्दलीय लड़ा। 1996 में मुलायम सिंह यादव के क़रीब आने के बाद उसने सपा के टिकट पर चुनाव जीता था। इसी तरह 2002 में उसने अपना दल के संस्थापक सोनेलाल पटेल का विश्वस्त बन कर इसके टिकट पर चुनाव जीता। वो अपना दल का अध्यक्ष भी रहा। अब आपको राजू पाल के बारे में जानना ज़रूरी है। 2004 में अतीक अहमद के फूलपुर से सपा के टिकट पर सांसद बन जाने के बाद इलाहाबाद पश्चिम में हुए उपचुनाव में उन्होंने अतीक के भाई अशरफ को हरा दिया था।गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने जाते समय उनकी दिन-दहाड़े हत्या कर दी गई। हत्या का आरोप अतीक अहमद पर लगा। बाद में जब जब अतीक को सपा से निकाला गया तब बसपा ने उसे टिकट नहीं दिया क्योंकि मायावती अपने विधायक की हत्या वाली बात भूली नहीं थी। राजू पाल की हत्या के बाद हुए उपचुनाव में अतीक के भाई ने फिर से चुनाव लड़ा। 2004 में उसने समाजवादी पार्टी के टिकट पर ही फूलपुर से लोकसभा चुनाव जीता था।

अब बात करते हैं अतीक के आपराधिक इतिहास की। जब किसी पर कोई केस दर्ज होता है और उसे अदालतों, थानों व जेल के चक्कर लगाने पड़ते हैं तो यह उसके लिए परेशानी वाली बात होती है लेकिन अतीक अहमद के मामले में ऐसा नहीं है। उसे अपने ऊपर चल रहे मामलों पर गर्व है। वह इसके बारे में छाती चौड़ी कर ढोल पीटता है। 2014 में सपा उम्मीदवार के रूप में उसने दावा किया था कि उसके ऊपर 188 मामले चल रहे हैं और उसने अपनी आधी ज़िंदगी जेल में व्यतीत की है, जिस पर उसे गर्व है। सीना तान कर उसने कहा था कि वह अपने समर्थकों के लिए किसी भी हद तक जा सकता है, चाहे उसके जो भी परिणाम हों। ये सोचा जा सकता है कि जिस प्रदेश में नेताओं को अपने आपराधिक पृष्ठभूमि पर गर्व हो और 188 मामलों का आरोपित (उसी के शब्दों में) खुले साँढ़ की तरह घूमे, वहाँ क़ानून व्यवस्था की क्या हालत होगी? ये सपा-बसपा का उत्तर प्रदेश था।

अतीक अहमद पर तभी हत्या का आरोप लग गया था, जब वो सिर्फ़ 17 वर्षों का था। इसके बाद उसने अपराध की दुनिया में ऐसा नाम बनाया कि मुंबई के अंडरवर्ल्ड डॉन भी उसके सामने फीके पड़ जाएँ! 2016 में कृषि विश्वविद्यालय (SHUATS) के कर्मचारियों की उसने बुरी तरह पिटाई की थी। इस घटना के बाद अखिलेश सरकार की ख़ूब भद्द पिटी थी। कर्मचारियों को पीटते हुए उसका वीडियो भी वायरल हो गया था। अभी आपने देखा कि कैसे यूपी के जेल और अधिकारी उससे डरते हैं। जब किसी को न्याय चाहिए होता है तो अदालत उसके लिए आख़िरी दरवाजा होता है लेकिन ऐसे व्यक्ति का क्या किया जाए जिसका केस सुनने से अदालत भी इनकार कर देती है। जब उसने ज़मानत के लिए आवेदन दिया था तब एक-एक कर 10 जजों ने उसका केस सुनने से मना कर दिया था। 11वें जज ने आख़िर में उसका केस उठाया और उसे ज़मानत मिली

जिसे अपने ऊपर चले रहे मामलों पर गर्व हो, जिस व्यक्ति का केस हाईकोर्ट के जज भी सुनने से इनकार कर देते हों, जिसे सपा जैसी राजनीतिक पार्टी का संरक्षण प्राप्त हो (पूर्व में), जिस पर नज़र रखने वाले पुलिसकर्मी भी डर जाएँ और जिसे कोई जेल अपने परिसर में नहीं रखना चाहता हो, ऐसे व्यक्ति के लिए कौन सा विशेषण प्रयोग किया जा सकता है? जिस इलाहबाद कोर्ट ने कभी इंदिरा गाँधी तक की चुनावी जीत को रद्द कर दिया था, वही कोर्ट अतीक अहमद के मामले में नहीं पड़ना चाहता। इससे समझा जा सकता है कि अतीक का क्या प्रभाव है! आख़िरकार सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कड़ा रुख अपनाया है। सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने न सिर्फ़ उसे गुजरात के जेल में हस्तांतरित करने को कहा है बल्कि सीबीआई से जाँच कराने का भी निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद उसे गुजरात ले जाया जाएगा।

ये सोचने वाली बात है कि कारोबारियों को जेल बुला-बुला कर पीटा जाए, जेल में उसके बैरक में उसके गुर्गों सहित सगे-सम्बन्धी मौजूद हों और उसके मामलों में कोई अधिकारी दखल देने की भी हिम्मत न करे! इसमें जेल अधिकारियों की भी अच्छी-ख़ासी संलिप्तता सामने आई है और उन पर विभागीय कार्रवाई की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को उस पर चल रहे 26 मामलों के अलावा 80 अन्य मामलों में भी रिपोर्ट पेश करने का निर्देश कियाअदालत में इस बात का भी ज़िक्र किया गया कि उस पर 102 मामले अब तक दर्ज किए जा चुके हैं। अतीक अहमद के भाइयों पर भी कई मामले दर्ज हैं और उसके परिवार, गुर्गों व सगे-सम्बन्धियों पर चल रहे आपराधिक मामलों को मिला दें तो संभव है कि आपराधिक मामलों की संख्या उस आँकड़े को भी पार कर जाए, जैसा उसने दावा किया था।

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हमने यूपी-बिहार व अन्य राज्यों का ट्रेंड देखा है कि कैसे आपराधिक पृष्ठभूमि के लोग राजनीति में आने के बाद सार्वजनिक जीवन में स्वच्छ दिखने के लिए अपराध से दूरी बना लेते हैं। ऐसे कई राजनेता हुए हैं जिन पर कई मामले दर्ज थे लेकिन बाद में उन्होंने अपराध से किनारा कर लिया और नेतागिरी एवं उद्योगपति के रूप में उन्होंने कार्य करना शुरू कर दिया। अतीक अहमद के मामले में ऐसा नहीं है। उसने 6 बार चुनाव जीतने के बावजूद आपराधिक जगत में व्यक्तिगत रूप से दबदबा जारी रखा। वो चुनाव लड़ता गया, समय बदलता गया लेकिन उस पर दर्ज होनेवाले आपराधिक मामलों में कोई कमी नहीं आई। इसे लोकतंत्र की धज्जियाँ उड़ाना ही कहेंगे जहाँ एक व्यक्ति राजनीति में धमक रखता है, न्यायपालिका को मज़बूर कर देता है, अपराध की दुनिया में बादशाहत हासिल करता है, पुलिस प्रशासन उसे संभाल नहीं पाती और मीडिया उसके संरक्षकों से सवाल नहीं पूछती।

भारत में ऐसे लोग चुनाव भी काफ़ी आसानी से जीत जाते हैं और न सिर्फ़ जीतते हैं बल्कि वे अच्छे से जीतते हैं। एक अच्छी बात यह है कि 2004 में सांसद बनने के बाद उसने जो भी चुनाव लड़ा, उन सब में उसे हार मिली। 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में भी उसे हार मिली। जनता को भी इस बारे में सोचने की ज़रूरत है क्योंकि जनता के लिए स्थापित सारी संवैधानिक संस्थाएँ जनता के वोटों से ही जीतने वाले व्यक्तियों के समाने असहज और निःसहाय महसूस करती हैं। जब उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार में इस व्यक्ति का प्रभाव इतना है, तो जरा सोचिए कि उस दौरान क्या होता होगा, जब न सिर्फ़ यह सांसद था बल्कि जिस पार्टी का सांसद था, उसके लिए मुस्लिम वोट जुटाने का कार्य भी करता था। अब लगातार चुनावों में हुई उसकी हार के बाद साफ़ हो गया है कि लोग डर के मारे ही उसे वोट किया करते थे। तभी तो मुख़्तार अंसारी हो या अतीक अहमद, 2014 के बाद से इनका राजनीतिक करियर ढलान पर है।

अनुपम कुमार सिंह: चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.