क्या डिंपल बाबा के चेहरे से नक़ाब उतर गया है? सोचिएगा ज़रूर!

राहुल गाँधी

अंग्रेजी फिल्म ‘प्राइमल फियर’ को थ्रिलर की श्रेणी में रखा जाता है और ये विलियम डैल के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित है। यह एक वकील की कहानी है जो हमेशा ऐसे मामले अपने हाथ में लेने के चक्कर में होता है, जिसमें उसे अपना ज्यादा से ज्यादा प्रचार मिल सके। शिकागो के इस वकील मार्टिन के हाथ एक आरोन स्टैम्पलर का मुकदमा आता है। एक लोकप्रिय आर्चबिशप के क़त्ल का इल्जाम उसी के चर्च में काम करने वाले आल्टर बॉय स्टैम्पलर पर आया हुआ होता है।

जब मार्टिन इस मुवक्किल स्टैम्पलर से मिलता है तो उसे लगता है ये उन्नीस साल का हकलाने वाला लड़का तो सीधा-सादा सा है! इससे भला किसी की ऐसी जघन्य हत्या कैसे होगी? मार्टिन इस चर्चित मुक़दमे को अपने हाथ में लेता है और स्टैम्पलर को बचाने की कोशिशों में जुट जाता है। मार्टिन की पूर्व प्रेमिका उसके खिलाफ लड़ने वाली वकील होती है और वो बताने की कोशिश करती है कि ये हकलाने वाला, निरीह सा दिखता लड़का ही असल में अपराधी है। मार्टिन से ये बात हजम नहीं होती और वो अपनी तहकीकात में जुटा रहता है।

थोड़े ही दिन में उसे पता चलता है कि आर्चबिशप ने हाल ही में ऐसे फैसले लिए थे जिससे शिकागो के कई बड़े लोगों को भारी आर्थिक नुकसान हुआ होगा। वो मान लेता है कि जरूर इन भ्रष्ट अधिकारियों ने नैतिकता दिखा रहे आर्चबिशप को मरवाया होगा। थोड़ी और तहकीकात में उसे एक विडियो मिलता है जिसमें दिखता है कि उसके मुवक्किल से जबरन किसी किशोरी से सम्भोग करवाया जा रहा है। बलात्कार जैसी स्थिति के इस सबूत के हाथ लगने पर वकील मार्टिन सोच में पड़ जाता है।

पहले तो स्टैम्पलर के पास हत्या की कोई वजह नहीं थी, लेकिन अगर वो ये सबूत अदालत में रखता तो साबित हो जाता कि स्टैम्पलर इस वजह से आर्चबिशप से दुश्मनी पाले बैठा था। वो इस सबूत के साथ जब स्टैम्पलर के पास पहुँचता है तो अचानक उसमें एक परिवर्तन होता है। सीधा-सादा हकलाता सा लड़का स्टैम्पलर अचानक बदल कर किसी और ही व्यक्तित्व में सामने आता है। वो खुद को ‘रॉय’ बुलाने लगता है और स्वीकारता है कि आर्चबिशप की नृशंस तरीके से हत्या उसी ने की है क्योंकि स्टैम्पलर तो सीधा सादा सा है!

अदालती कार्रवाई में ‘मल्टीप्ल पर्सनालिटी डिसऑर्डर’ नामक मनोरोग सिद्ध हो जाता है और स्टैम्पलर मनोरोगी होने के कारण सजा से बच जाता है। आखरी दृश्य में जब स्टैम्पलर पूछता है कि मिस वनाबेल का गला तो ठीक है न? तब मार्टिन को समझ आता है कि स्टैम्पलर तो कभी मनोरोगी था ही नहीं! उसने नाटक करके मार्टिन को बुरी तरह ठगा और खुद को हत्या की सजा से साफ़ बचा लिया था। मार्टिन पूछता है कि क्या कभी ‘रॉय’ जैसा कोई हत्यारा सचमुच था भी या स्टैम्पलर लगातार नाटक कर रहा था? स्टैम्पलर चिढ़ाते हुए कहता है, स्टैम्पलर जैसा कोई नहीं था, हमेशा से ‘रॉय’ ही था!

कांग्रेसी नेता अभिषेक मनु सिंघवी की कार में किसी महिला को जज बनाने के प्रस्ताव के बारे में एक दौर में काफी चर्चाएँ रही थीं। कांग्रेसी एन डी तिवारी के जिस सुपुत्र की हाल में ही हत्या हुई, उसने तो बरसों मुकदमा लड़कर अपने लिए पिता का नाम हासिल किया था। कांग्रेस के शशि थरूर पर भी ऐसे ही मामलों के मुक़दमे जारी हैं। कभी सोचा है कि ऐसे लोगों का सरगना कैसा होगा? क्या सच में वो स्वीट से डिंपल वाले गालों वाला मासूम लगता बच्चा सा ही कोई होगा? या फिर हकीकत कुछ और है?

‘इंडिया टुडे’ ने जिस इंटरव्यू को प्रसारित नहीं किया उसके बीच से ही शायद ये तस्वीरें निकल कर आई हैं। इनमें जो भंगिमा है वो किसी खलनायक के ‘आओ कभी हवेली पर’ वाले रूप की ही याद दिलाती हैं। सोचिये कि कभी कोई मासूम, क्यूट, थोड़े कम दुनियावी समझदारी वाले ‘डिम्पल बाबा’ थे भी, या असली विद्रूपता से सिर्फ नकाब उतर गया है? सोचियेगा जरूर, क्योंकि फ़िलहाल सोचने पर जीएसटी नहीं लगता।

Anand Kumar: Tread cautiously, here sentiments may get hurt!