स्वतंत्रता के 75वें साल में भी वही मजहबी खतरे, किस ‘अवतार’ की प्रतीक्षा में हैं हिंदू: आखिर कब तक सरकार से सवाल को ही मानते रहेंगे ‘कर्म’

अवतार की प्रतीक्षा में कब तक बैठे रहेंगे हिंदू (फोटो साभारः HAF)

2022। भारत की स्वतंत्रता का 75वाँ साल। अमृत महोत्सव का साल। हर घर तिरंगा अभियान का साल। श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा रैली का साल.. पर जरा थमिए, क्योंकि फिर से मजहबी खतरा उसी तरह आ खड़ा हुआ है, जिसने 1947 में स्वतंत्रता से पहले इस देश के टुकड़े करवाए।

इस्लामी आतंकवाद, इस्लामी कट्टरपंथ, इस्लामी घुसपैठ इन सबसे जूझते जब हम स्वतंत्रता के 75वें साल में हैं तो देश के भीतर मुस्लिम गलियारा बनाने की साजिशों का असर भी दिखने लगा है। हाल में सामने आए कुछ रिपोर्ट बताते हैं कि उत्तर प्रदेश के जो 5 जिले नेपाल से लगते हैं, उनके 116 गाँव में मुस्लिम आबादी 50 फीसदी से ज्यादा हो गई है। 303 गाँव में वे 30 से 50 फीसदी के बीच हैं। इसी तरह असम के जो जिले बांग्लादेश की सीमा से लगे हुए हैं, वहॉं मुस्लिमों की आबादी 32 फीसदी तक बढ़ गई है। बिहार, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, राजस्थान के सीमावर्ती जिलों का भी यही हाल है। इसी रफ्तार से इन इलाकों में मस्जिद-मदरसे भी बढ़े हैं। रिपोर्ट बताते हैं कि यूपी के सीमावर्ती जिलों में 4 साल में मस्जिद-मदरसों की संख्या में 25 फीसदी का उछाल देखा गया है। असम में तो 1000 ऐसे मदरसे सामने आए हैं जिनका संचालन निजी स्तर पर हो रहा था।

इसके अलावा भी देश के हर हिस्से में इन्होंने अपने ऐसे इलाके में बना रखे हैं, जहाँ पुलिस भी जाने से डरती है। हाल ही में वे रिपोर्ट सामने आई हैं जो बताती हैं कि किस तरह बिहार और झारखंड के मुस्लिम बहुल इलाकों के सरकारी स्कूलों तक में ‘शरिया शासन’ लागू कर दिया गया। रविवार की जगह स्कूलों की छुट्टी शुक्रवार को होने लगी। स्कूलों के नाम में उर्दू तक जोड़ दिए गए। ऐसे में एक खास पट्टी में इस तरह इनकी आबादी का बढ़ना, मस्जिदों-मदरसों का कुकुरमुत्ते की तरह उग आना एक बड़े खतरे का संकेत है।

यह बात सामने आ चुकी है कि एक मुस्लिम गलियारा बनाने की साजिशें चल रही है। बांग्लादेश से पाकिस्तान तक जाने वाले यह गलियारा बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, पंजाब होकर गुजरता है। इन राज्यों के सीमावर्ती इलाकों में बीते 10 साल के भीतर सुनियोजित तरीके से घुसपैठिए बसाए गए हैं। स्थानीय लोगों का पलायन हो रहा है और संसाधनों पर ये कब्जा करते जा रहे हैं। मजहबी शिक्षण संस्थान उन इलाकों में खोले जा रहे हैं जो सामरिक तौर पर ज्यादा महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इतना ही नहीं सीमा से सटे नेपाल के इलाकों में भी इसी तरह डेमोग्राफी बदली जा रही है।

इन सबके साथ भारत को 2047 तक इस्लामी मुल्क बनाने के लिए मुस्लिम युवाओं को हथियारों का प्रशिक्षण देने जैसे प्लान पर भी काम चल रहा है। कुल मिलाकर उसी तरह की स्थिति पैदा की जा रही है जो देश की स्वतंत्रता से पहले बनाया गया था। जिसकी वजह से पाकिस्तान की पैदाइश हुई। कन्हैया लाल हो या उमेश कोल्हे, हर्षा हो या प्रवीण नेट्टारू इन सबकी हत्या उन्हीं साजिशों का हिस्सा हैं। ऐसा लगता है जैसे डायरेक्ट एक्शन डे की तैयारियाँ हो।

ऐसे वक्त में इस देश का हिंदू क्या कर रहा है? वह एक ऐसी अंतहीन प्रतीक्षा में बैठा दिख रहा जब कोई ‘अवतार’ आएगा और एक साथ सारी आसुरी प्रवृत्तियों का संहार कर चला जाएगा। अवतार के आगमन तक उसने सरकार से सवाल को ही अपना कर्म मान लिया है। यदि इस देश को इस्लाम के नाम पर टूटने से बचाना है, काफिर कह कर काट डाले जाने से बचना है तो हमें इस तंद्रा को तोड़ना होगा।

यह सही है कि कुछ काम सरकार के होते हैं। उसकी एजेंसियों को ही उन्हें जमीन पर उतारना होगा। यकीनन सरकार और तंत्र का कार्य पूर्ण करने का बोझ भी हम अपने ऊपर नहीं ले सकते। हम उनकी तरह हथियार लेकर किसी का गला काटने भी नहीं निकल सकते। लेकिन इस देश का संविधान और कानून हमें आत्मरक्षा का अधिकार देता है, अफसोस हम ये भी भूल चुके हैं। हमें अपनी ही गलियों में उनकी घुसपैठ से फर्क नहीं पड़ता। अपने ही गाँव में अवैध मस्जिद-मदरसे खुलने से हमे खतरा नहीं लगता। हमारे ही हाथ गरम कर वे दस्तावेज बना ले जाते हैं और हमें वह अपना डेथ वारंट नहीं लगता। हमें तब भी फर्क नहीं पड़ता जब अपनी ही गली में बहुसंख्यक से अल्पसंख्यक होकर कोई हिंदू अपना ही घर छोड़ने को मजबूर हो जाता है।

यह सही है कि हम व्यक्ति के तौर पर इस इकोसिस्टम से नहीं लड़ सकते। लेकिन यह भी सत्य है कि जब तक हम खुद काफिर कह कर काटे नहीं जाते, तब तक हम ही यह भी कह रहे होते हैं कि ‘मेरा अब्दुल वैसा नहीं है’। यह भी सत्य है कि जब कश्मीर के हिंदू अपने घर से भगाए जा रहे थे तो देश के दूसरे हिस्से के हिंदुओं के लिए यह कोई मसला नहीं था। दूसरी तरफ वे हैं जो फलस्तीन पर इजरायल का हमला हो तो सड़क पर उतर हिंदुओं को डरा जाते हैं। फिर ‘डरा हुआ मुसलमान’ का नैरेटिव भी बना जाते हैं।

ऐसे में इस लड़ाई को किसी सरकार या किसी व्यक्ति विशेष के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। न अवतार के भरोसे टाला जा सकता है। यह लड़ाई हर गली में लड़नी होगी। हर गॉंव में इसका विरोध करना होगा। हर शहर में इसके खिलाफ सड़क पर उतरना होगा। यह केवल तभी संभव है, जब हिंदू समूह में खड़े होंगे। इसके लिए यह आवश्यक नहीं कि हिंदू किसी खास संगठन, दल के साथ खड़े हों। जरूरी है कि हिंदू के साथ हिंदू खड़े हों।

अजीत झा: देसिल बयना सब जन मिट्ठा