प्रिय दिल्ली मुख्यमंत्री केजरीवाल जी,
14 जून को रात 9.25 पर एक लड़की हुडा सिटी सेंटर मेट्रो स्टेशन में बने स्टोर से निकल कर स्वचालित सीढ़ियों से नीचे उतर रही थी कि उसे ‘कुछ अजीब’ लगा। औरतों में सिक्स्थ सेन्स बहुत एक्टिव होता है, जिससे हम अमूमन खतरा भाँप ही लेतीं हैं। उस लड़की के ठीक पीछे एक लड़का हस्तमैथुन कर रहा था।
https://twitter.com/navneet97935900/status/1140533042261286912?ref_src=twsrc%5Etfwयह एक सार्वजनिक स्थान था- एक मेट्रो स्टेशन। वह समय देर रात का नहीं था (हालाँकि, रात होने से भी पुरुष शिकारियों को कोई छूट नहीं मिल जाती, लेकिन महिलाएँ जब यौन उत्पीड़न की शिकायत करतीं हैं तो अक्सर ऐसे बहाने दिए जाते हैं)। और यह ऐसे स्थान पर था जोकि सीसीटीवी की निगाह में था।
अपनी मानसिक पीड़ा सुनाते हुए वह लड़की बताती है कि कैसे वह आदमी एक बार फिर अपना गुप्तांग उसे दिखाकर भाग खड़ा हुआ। वह बयाँ करती है कि कैसे वह सन्न रह गई कि ऐसी घटना मेट्रो स्टेशन के अंदर भी हो सकती है, जो महिलाओं के लिए सार्वजनिक परिवहन के लिहाज से सबसे सुरक्षित माना जाता है और जिसका महिलाओं द्वारा इस्तेमाल बढ़ाने के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री औरतों को मुफ्त की मेट्रो यात्रा से लुभा रहे हैं।
https://twitter.com/navneet97935900/status/1140533049815257088?ref_src=twsrc%5Etfwइसके बाद वह लड़की वही कहती है, जो केजरीवाल के इस चुनावी लोकलुभावन योजना से ज़्यादा ज़रूरी है। लगभग हर महिला की पहली प्राथमिकता है- हमें मुफ्त यात्रा नहीं, सुरक्षा चाहिए।
https://twitter.com/navneet97935900/status/1140533070002417665?ref_src=twsrc%5Etfwआप शायद ‘सुरक्षा’ के नाम पर महिलाओं को बस और मेट्रो में मुफ्त यात्रा करा सकते हैं, लेकिन आप यह कैसे सुनिश्चित करेंगे कि महिलाएँ यहाँ सुरक्षित हैं? हो सकता है कि मेट्रो बाकी सार्वजनिक परिवहन के साधनों से अधिक सुरक्षित हो लेकिन मेट्रो से घरों की कनेक्टिविटी पर आप क्या करेंगे? स्ट्रीट लाइट अक्सर काम नहीं करतीं अँधेरी गलियों में, और चेन-छिनैती या लूटपाट की घटनाएँ हो जातीं हैं। आप यह क्यों नहीं करते कि बिजली कंपनियों को उनकी बकाया राशि चुका दीजिए ताकि वह अपनी चेतावनी के मुताबिक स्ट्रीटलाइटों को बंद न कर दें क्योंकि आप उन्हें उनके पैसे नहीं दे रहे?
आपका विचार न केवल आर्थिक रूप से अव्यवहारिक है, बल्कि इसे ‘महिला सुरक्षा’ का कदम बताना आपकी पार्टी के अस्तित्व से भी ज़्यादा हास्यास्पद है।
भवदीया,
दिल्ली की एक नागरिक
(OpIndia.com पर अंग्रेजी में प्रकशित मूल लेख का अनुवाद मृणाल प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव ने किया है)