काटेंगे-मारेंगे और दिखाएँगे भी… फिर करेंगे जिम्मेदारी की घोषणा: आखिर क्यों पाकिस्तानी कानून को दिल में बसा लिया निहंग सिखों ने?

हत्या आरोपित नारायण सिंह को रुपयों की माला पहनाई गई

सिंघु-कुंडली बॉर्डर पर पंजाब के दलित मजदूर लखबीर सिंह की जिस कारण और जिस तरह से हत्या की गई, वह सबने देखा। सब इसलिए देख पाए क्योंकि हत्या का न केवल वीडियो बनाया गया बल्कि उसे जारी भी किया गया। ऐसा करने का उद्देश्य चाहे जो हो पर इसका परिणाम यह हुआ कि हत्यारे जिस सोच को लेकर न्याय के लिए लड़ने का दावा कर रहे हैं, वह पूरी दुनिया के सामने है। लखबीर सिंह के मृत शरीर के पोस्टमॉर्टम से यह खुलासा हुआ कि उसके शरीर पर 37 घाव थे।

सवा लाख से एक लड़ाने का दावा करने वाले एक से अधिक लोगों ने गुरु ग्रन्थ साहिब की रक्षा के लिए एक कमजोर की निर्मम हत्या कर दी।

हत्या का वीडियो बनाना और उसे जारी करना क्या सामान्य घटना है? फिलहाल तो ऐसा नहीं दिखाई देता। इस घटना को अलग-अलग लोग अपने-अपने तरीके से पेश करेंगे। वीडियो बनाने और उसे जारी करने को लेकर कुछ कयास लगाए जाएँगे और कुछ कयासों के लगाए जाने का अभिनय किया जाएगा। इन कयासों में से कुछ का उद्देश्य अप्रत्यक्ष रूप से इस निर्मम हत्या को उचित ठहराने का या किए गए अपराध की भीषणता को कम करना होगा। दरअसल मीडिया की जानी पहचानी ‘प्रतिभाओं’ में से तमाम लोग इस काम पर लग भी गए हैं। निहंग कौन हैं जैसे विषय पर निबंध लिखा जा रहा है। पत्रकारों द्वारा महीनों तक जिन्हें किसान बताकर पेश किया गया, अब उन्हें किसानों से अलग और निर्दयी हत्यारा बताया जा रहा है।

इन सब के बीच जो प्रश्न अभी तक अनुत्तरित रह गया है वो यह है कि; धर्म की रक्षा के नाम पर किसी निरीह की हत्या करना और उसका वीडियो जारी करने की घटना ने देश में क्या नए ट्रेंड को जन्म नहीं दिया? अभी तक वीडियो जारी करने का यह काम इस्लामी आतंकी संगठन करते आए थे। पिछले कई वर्षों में ISIS जैसे संगठनों द्वारा ऐसा किया गया। तो क्या अब इसे भारत में भी सामान्य बनाने की प्रक्रिया की शुरुआत हो गई है?

दूसरा प्रश्न यह है कि क्या अब गैर-इस्लामी संगठन भी अपराध करके उसकी जिम्मेदारी की घोषणा करने लगेंगे? जिस तरह की घोषणाएँ ये निहंग सिख न केवल इस हत्या के पश्चात बल्कि पहले से करते रहे हैं, वे क्या दर्शाती हैं? इन्होंने बड़े साफ़ तौर पर कहा है कि धर्म का अपमान करने वालों की हत्या ये खुद करेंगे। यह घोषणा क्या राकेश टिकैत की उस बात का विस्तार नहीं है, जिसमें उन्होंने लखीमपुर खीरी में ‘किसानों’ द्वारा निहत्थे भाजपा कर्मियों को पीट-पीट कर मारे जाने को सही ठहराया था?

अमृतसर के एक गाँव में लखबीर सिंह की हत्या करने वालों में से एक निहंग नारायण सिंह को उसके गाँव वालों ने फूलों और रुपए की मालाएँ पहनाईं और उसके समर्थन में नारे लगाए। यह ट्रेंड क्या कहता है? ऐसा तो हम अभी तक पाकिस्तान में देखते आए थे। पत्रकार तवलीन सिंह के पूर्व पति और पाकिस्तानी पंजाब के पूर्व गवर्नर सलमान तासीर की हत्या करने वाले उनके बॉडीगार्ड मुमताज कादरी को लोगों का कुछ ऐसा ही समर्थन मिला था। कादरी ने तासीर की हत्या पाकिस्तान के ब्लासफेमी लॉ पर उनके विचारों की वजह से की थी। इसी तरह पाकिस्तान में ही एक सिक्यॉरिटी गार्ड द्वारा अपने बैंक मैनेजर की हत्या इसी ब्लासफेमी के लिए की गई तो उसे भी लोगों का समर्थन मिला था।

प्रश्न यह है कि नारायण सिंह को जिस तरह से समर्थन मिला है, वह क्या भारत में एक नए ट्रेंड की शुरुआत है? क्या कोई आज यह कह सकता है कि निकट भविष्य में यह दोहराया नहीं जाएगा? क्या यह महज संयोग है कि पाकिस्तान की तरह ‘किसान’ आंदोलन की जगह पर भी हुई हत्या का कारण तथाकथित तौर पर ईशनिंदा है?

क्या इनसे यह कहने वाला कोई नहीं कि इनके आराध्य को कुछ कह देना इतना बड़ा अपराध नहीं कि उस व्यक्ति की ऐसी निर्मम हत्या कर दी जाए? आपका भगवान इतना कमजोर नहीं कि कोई कुछ भी करके या कह के उनका अपमान कर सकता है जैसी बात कह कर हिंदुओं को अहिंसा की सीख देने वाले बड़ी आसानी से इन अपराधों के साथ जोड़ी गई तथाकथित ब्लासफेमी को सही ठहराने के लिए पाताल तक जाने के लिए तैयार मिलेंगे।

जल्दी-जल्दी में भारतीय किसान यूनियन ने जिस तरह से हत्या करने वाले इन निहंग सिखों से खुद को अलग किया है, वह देखने लायक है। किसान यूनियन द्वारा किए जा रहे तथाकथित आंदोलन से यही निहंग सिख अपने ढाई सौ घोड़ों के साथ दिसंबर 2020 में ही जुड़े थे और तब से साथ हैं पर आज किसान यूनियन को अचानक याद आया कि उसका इनसे कोई लेना-देना नहीं है। वर्षों से सार्वजनिक जीवन में रहने वाले योगेंद्र यादव जैसे नेता बड़ी आसानी से यूनियन को इन निहंग सिखों से अलग कर लेते हैं। वे ऐसा कर सकते हैं क्योंकि उनसे प्रश्न पूछने वाले को गोदी मीडिया या आईटी सेल वाला बताकर चुप करा दिया जाएगा। वे ऐसा इसलिए कर सकते हैं क्योंकि उनकी सहायता के लिए लोग आगे आ चुके हैं और इस हत्या के पीछे आसानी से किसी सरकारी साज़िश की बात करके सारा दोष सरकार पर मढ़ने की कोशिश शुरू कर चुके हैं।

किसी विपक्षी नेता के घर इनकम टैक्स का छापा हो, प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई हो, आर्यन खान की गिरफ्तारी हो, किसी बंदरगाह पर ड्रग का पकड़ा जाना हो या फिर ‘किसानों’ के आंदोलन में किसी निरीह की हत्या हो, इकोसिस्टम इन सब के पीछे साजिश की बात बड़ी आसानी से कर लेता है। पाकिस्तान में बात-बात पर इस्तेमाल किया जाने वाले शब्द साज़िश का अचानक भारत में इतना व्यापक इस्तेमाल क्या महज संयोग है? यदि ऐसा है तो कहना पड़ेगा कि अचानक संयोगों का मौसम आ गया है।

सरकार को भी स्वीकार करने की आवश्यकता है कि जिस विकास और अर्थव्यवस्था को आगे रखकर वो अभी तक इस ‘किसान’ आंदोलन के प्रति उदासीन रही है, उसी विकास और अर्थव्यवस्था को इस आंदोलन से बड़े स्तर पर हानि हो रही है और यह एक उद्योग, व्यापार और व्यवसाय चलाने वाले एक बड़े समुदाय के विरुद्ध कुछ लोगों द्वारा किया गया अन्याय है। सरकार आतंरिक सुरक्षा के तमाम पहलुओं को निश्चित तौर पर एक आम नागरिक से अधिक समझती है पर एक आम नागरिक यह भी चाहता है कि न्याय केवल होना नहीं चाहिए बल्कि होते हुए दिखना भी चाहिए। सरकार के विरुद्ध अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग फ्रंट खोल दिए गए हैं पर यह भी सच है कि सरकार का प्रभुत्व कायम रहे, यह सुनिश्चित करना भी सरकार का ही कर्तव्य है।