बंगाल के एक छोटे से गाँव की तरह दिखने वाले, एक जगह पर ‘मानवतावादियों’ ने गरीबों के एक समूह को भोजन व राशन वितरित करने के लिए इकट्ठा किया। उसके बाद एक आदमी एक सूची से नाम पढ़ना शुरू करता है। एक-एक करके, गाँव के गरीब लोग उठते हैं और अपने नाम से दी गई अनाज की बोरी इकट्ठा करते हैं। ऐसे कठिन समय में लोगों का आगे बढ़कर गरीबों के प्रति संवेदना देख, ऐसा लगा कि इंसानियत अभी भी जिंदा है।
तभी से कुछ होता है। अचानक, सूची देखकर नाम पढ़ने वाला व्यक्ति रुक जाता है और देखता है कि कुछ व्यक्ति भोजन प्राप्त करने के लिए लाइन के पीछे शामिल हो गए हैं। उसके बाद वह चिल्लाते हुए कहता है, “तुम सब हिंदू हो, चले जाओ। यह तुम्हारे लिए नहीं है। अपने आप को इस सूची में शामिल न करो।”
आप सभी ने अक्सर सुना होगा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं है। लेकिन कुछ लोगों के लिए, भूख का निश्चित रूप से यह है। फिर से पीछे वाली घटना पर चलते हैं। थोड़ी देर के लिए, आपको यह जानकर राहत मिल सकता है कि यह पूर्वी बंगाल के किसी गाँव में हो रहा है, जिसे अब बांग्लादेश कहा जाता है। पश्चिम बंगाल से ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं आई है। कम से कम अभी तक तो नहीं ही।
पाकिस्तान बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति
सीमाओं का भी अजीब रूप है। खासकर प्राचीन भारत में मनमाने ढंग से खिंची गई रेखा, और फिर उसे टुकड़ों में बाँट दिया जाना। करने को हम सब दिखावा कर सकते हैं कि ऊपर वाली घटना का वीडियो हमारे लिए मायने नहीं रखता क्योंकि यह बंगलादेश का है और भारत के किसी हिस्से से ऐसी बात सामने नहीं आई है। हम अपनी आँखें भी बंद कर सकते हैं। या फिर हम इसे एक गम्भीर भविष्य की चेतावनी भी समझ सकते हैं, जिसको हमने इतिहास से नहीं सीखा।
कोरोना का इस्तेमाल कर हिन्दुओं का उत्पीड़न
भारत से नफ़रत करने वाली अरुण***ती रॉय जैसी भी है, लेकिन उसकी एक बात तो सही है। वो यह कि यह बीमारी (कोरोना) एक द्वार है। फर्क सिर्फ इतना है कि जिस रूप में वो हमें इसे समझाना चाहती है वैसे नहीं देखना है इस द्वार के पार। इस समय द्वार के माध्यम से हम देख सकते हैं कि असल भारत में “गंगा जमुनी तहज़ीब” की दूसरी तरफ का आइना क्या है।
पिछले दो महीनों से, दुनिया वुहान से फैली कोरोना वायरस की महामारी जूझ रही है। ऐसे में मानवता के खिलाफ़ एक घोर अपराध पर किसी का ध्यान ही नहीं गया है। पाकिस्तान और बांग्लादेश अपने हिंदू अल्पसंख्यकों को भूखा रखने के लिए इस महामारी का इस्तेमाल कर रहा है। एक पल के लिए भी विश्वास नहीं होता कि दुनिया केवल गरीब देशों की देखभाल और अन्य चीजों को देखने मे व्यस्त है।
यदि मीडिया के पास मूर्खतापूर्ण लेखों के लिए समय और स्थान है, जो यह कहता है कि “इंडिया” के बजाय “भारत” कहना दुनिया के खिलाफ एक साजिश हो सकती है, तो उनके पास निश्चित रूप से पाकिस्तान या बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ हो रहे अत्याचारों को कवर करने का समय भी है। पश्चिमी मीडिया में सिर्फ हिंदूफोबिया का जहर टपक रहा है और ऐसा लग रहा है, जैसे कुछ हुआ ही नहीं है। भारत के एक आम अस्पताल पर फर्ज़ी खबर चला कर, हिंदू बहुमत पर ‘असहिष्णुता’ का आरोप लगाया गया। भारत को टारगेट बनाया जाता है।
और फिर यह कहानी कुछ ही घंटों में दुनिया भर में छा जाती है। ये कोई अभी के दिनों की बात नही है। आम दिनों में भी पाकिस्तान या बांग्लादेश में रह रहे हिंदुओं की परवाह कौन सी दुनिया करती थी, यह सर्वविदित है। दुनिया जानबूझकर हिंदुओं की दुर्दशा को अनदेखा कर रही है।
दिलचस्प सवाल यह है कि भारत के हिन्दुओं को भी इस बात से कोई लेना-देना नहीं। सीमा पार की सारी बातों से वाकिफ होने के बाद भी उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। हिंदुओं की नैरेटिव यहीं मात खाती है। क्योंकि दूसरे नैरेटिव को देखें तो भारतीय लिबरल्स अच्छी तरह जानते हैं कि कोई भी नागरिक किसी भी भारतीय को धमकी नहीं दे सकता, चाहे सीएए के नाम पर या किसी और तरीके से। वो यह भी जानते हैं कि भारत ‘लिंचिस्तान नहीं है’। फिर भी वो कहानियाँ गढ़ते हैं, खबरें फैलाते हैं।
भारतीय लिबरलों के कान पर जूँ तक नहीं रेंगता
हाल ही में दिल्ली में हुए दंगों में ‘मजहब विशेष का नरसंहार’ नहीं हुआ था। फिर भारत के लिबरल्स क्यों हमेशा इन झूठों का सहारा लेते हैं? इसका एक सीधा मकसद है सिर्फ अपना मतलब निकलना। जितना हो सके भारत के बारे में गलत सोचना और ज़हर उगलना। जिस तरह भारत अन्य देशों की बराबरी कर आगे बढ़ रहा है, यह इनसे बर्दाश्त ही नहीं हो रहा। लेकिन इनका असली मकसद कुछ और ही हैं।
इनके झूठ का एक अलग ही उद्देश्य है। ये हमेशा हिंदुओं को अपने बचाव में रखते हैं। वास्तव में क्या हो रहा, ये बात ये देख ही नहीं पाते या देखना ही नहीं चाहते। इन्हें पाकिस्तान और बांग्लादेश की सीमाओं से आ रही हिंदुओं की चीखें सुनाई ही नहीं देतीं।
https://twitter.com/Ashwinkiing/status/1251779555611664385?ref_src=twsrc%5Etfwअसल में वो मृतको की चीखें हमें बुला नहीं रही होती हैं, बल्कि आज़ादी से साँस ले रही होती हैं। ये बता रही होती हैं कि मर तो हम पहले ही गए थे। अब इंसान बन रहे हैं। मगर इन लिबरल्स को दुख-दर्द तो सिर्फ कुछ ही लोगों के दिखाई देते हैं। इनके आँसू सिर्फ खास मकसद पर ही निकलते हैं। वो भी तब, जब इन्हें नफ़रत की आग लोगों के अंदर पैदा करनी होती है।
याद रखें, हर पल जब हम हनुमान स्टिकर, साड़ी या रसम पर इन लिबरल्स से बहस करते हैं, उस पल हम एक बड़े तस्वीर को नहीं देख पाते कि हमारे साथ क्या हो रहा है। लिबरल्स अच्छी तरह से जानते हैं कि साड़ियों का तथाकथित हिंदू राष्ट्रवाद से कोई लेना-देना नहीं है। वे सिर्फ हमें तंग कर रहे हैं, हमें चारों ओर से परेशान कर रहे हैं, हमें थका रहे हैं।
जब हम अपने दिमाग को छोटी चीजों पर केंद्रित करते हैं, तो हम बड़ी तस्वीर को याद नहीं करते हैं। यही उनकी असली रणनीति है। अगर भारत के एक अरब हिंदुओं ने एक स्वर में बात करनी शुरू कर दी कि पाकिस्तान में हिंदुओं के साथ क्या हो रहा है, तो क्या दुनिया तब भी इसे अनदेखा कर पाएगी? बिलकुल नहीं।
यही कारण है कि वे हमारे पैर खींचते हैं, हमें फासीवाद और असहिष्णुता के बेतुके आरोपों में व्यस्त रखते हैं। उदाहरण के लिए सीएए। वे हमारे सामने ऐसी चीजों को बार-बार दोहराते हैं। दरअसल वे हमारा समय बर्बाद करते हैं, हमें भटकाते हैं। हर गुजरते दिन के साथ, पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदू विलुप्त होने के करीब एक कदम बढ़ते जा रहे हैं। और हमें अहसास भी नहीं कि एक दिन हमारे साथ भी ऐसा हो सकता है!