‘मुस्लिमो, दलितों के इस विरोध-प्रदर्शन से सीखो’ – रामभक्त रविदास के नाम पर हिंसा फैलाने वालो, उन्हें पढ़ो तो सही

संत रविदास (बाएँ) मंदिर के नाम पर दंगा फैलाने वाला चंद्रशेखर (दाएँ) गिरफ़्तार

संत रविदास का मंदिर ढहाए जाने को लेकर दिल्ली में दलितों ने ख़ूब विरोध प्रदर्शन किया। हालत इतने बिगड़ गए कि पुलिस को लाठियाँ भाँजनी पड़ी और आँसू गैस के गोले छोड़ने पड़े। झंडेवालान से लेकर रामलीला मैदान तक प्रदर्शनकारियों का जमावड़ा रहा। ताज़ा खबर के अनुसार, ‘भीम आर्मी’ संगठन प्रमुख चंद्रशेखर आजाद उर्फ़ रावण सहित 91 लोगों को गिरफ़्तार किया गया है। पुलिस ने इस आरोपितों के ख़िलाफ़ दंगा फैलाने और सरकारी संपत्ति को नुक़सान पहुँचाने का मामला दर्ज किया है। इस प्रदर्शन में चंद्रशेखर की उपस्थिति शक का कारण है।

सबसे पहले जानते हैं कि मामला शुरू कहाँ से हुआ? दरअसल, दिल्ली में डीडीए केंद्र सरकार के अधीन आती है लेकिन रविदास मंदिर को गिराने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया। इसके बाद इतना हंगामा खड़ा हो गया कि अदालत को इस पर टिप्पणी करनी पड़ी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसके आदेश का राजनीतिक इस्तेमाल किया जा रहा है और इस पूरे मामले को सियासी रंग दिया जा रहा है। कोर्ट ने पंजाब, दिल्ली व हरियाणा की सरकारों से दो टूक कहा कि सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए जाएँ।

उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने भी रविदास मंदिर गिराए जाने को लेकर कड़े तेवर दिखाए, जिसके बाद दिल्ली के सीएम अरविन्द केजरीवाल ने उन्हें भरोसा दिलाया कि इसमें दिल्ली सरकार शामिल नहीं है। ये वही नेतागण हैं, जिनकी राम मंदिर के मुद्दे पर घिग्घी बँध जाती है। तुगलकाबाद में रविदास मंदिर गिराया जाना ग़लत था या सही, इस पर बहस हो सकती है। अगर यह सुप्रीम कोर्ट का निर्णय नहीं होता तो इस पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर पहले से भी ज्यादा बढ़ गया होता। यह सही है कि रविदास मंदिर से आस्थाएँ जुड़ी हैं, लेकिन इसमें कुछ ऐसे लोग शामिल हो गए हैं जो अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं।

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चंद्रशेखर वही है जिसे सहारनपुर हिंसा मामले में नेशनल सिक्योरिटी एक्ट के तहत गिरफ़्तार किया गया था। यहाँ जानने लायक बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद हुई कार्रवाई से कुछ लोगों के विरोध प्रदर्शन को अब ग़लत रंग देने का कार्य शुरू हो गया है। शेखर गुप्ता के कुख्यात न्यूज़ पोर्टल ‘द प्रिंट’ की पत्रकार ज़ैनब सिकंदर ने इसे ब्राह्मणवाद-विरोधी प्रदर्शन बता दिया। उन्होंने दावा किया कि प्रदर्शनकारियों की इस भीड़ में किसी से भी बात कर लीजिए, आपको एहसास हो जाएगा कि यह ब्राह्मणवाद-विरोधी प्रदर्शन है।

इसके बाद उन्होंने चंद्रशेखर का गुणगान शुरू कर दिया। बकौल ज़ैनब, चंद्रशेखर की उपस्थिति से पता चलता है कि दलित उसके पीछे चलना चाहते हैं और उसके नेतृत्व में काम करना चाहते हैं। ये वही गिरोह है जो किसी भी नए नेता को सिर्फ़ इसीलिए महिमामंडित करना चाहता है ताकि उसे राष्ट्रीय स्तर की मीडिया का लाडला बना कर जनता के सामने पेश किया जा सके। अरविन्द केजरीवाल से लेकर कन्हैया कुमार तक, हर एक छोटे-बड़े नेता को सीधा प्रधानमंत्री के सामने खड़े करने की कोशिश की गई और दावा किया गया कि जनता इन नेताओं के पीछे खड़ी है। आश्चर्य नहीं कि ये हर बार अपने अजेंडे में फेल हुए।

इसके बाद ज़ैनब ने जो लिखा, वह हिंसा भड़काने की श्रेणी में आ सकता है। उन्होंने मुस्लिमों से अपील करते हुए लिखा कि वो भी दलितों के इस विरोध-प्रदर्शन से सीख लें और ऐसा ही करें। ज़ैनब का दावा है कि इससे देश में साम्प्रदायिकता के ख़िलाफ़ लड़ाई को बल मिलेगा। संत रविदास मंदिर पर राजनीति कर रहा चंद्रशेखर वही व्यक्ति है, जिसने अयोध्या में राम मंदिर की जगह बुद्ध मंदिर की माँग की थी। “अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी” लिखने वाले संत रविदास अगर आज ज़िंदा होते तो उनके नाम पर राजनीति करने वाले और दलितों को ‘राम अमंदिर आंदोलन’ से दूर रहने की सलाह देने वाले चंद्रशेखर को अपना भक्त तो नहीं ही मानते।

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संत रविदास के सामने ब्राह्मण और सिख, सभी अपना सिर झुकाते थे। फिर उनको लेकर किया जा रहा विरोध-प्रदर्शन ब्राह्मणवाद-विरोधी कैसे हो सकता है? राम नाम का रट लगाने की बात करने वाले संत का भक्त होने का दावा करने वाला राम मंदिर का विरोध कैसे कर सकता है? जो भी लोग संत रविदास के नाम पर हिंसा फैला रहे हैं, उन्हें उनकी ये पंक्तियाँ ज़रूर पढ़नी चाहिए:

जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात,
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात

आगे बढ़ने से पहले इन पंक्तियों का अर्थ जानना ज़रूरी है। संत रविदास ने जातिवाद के अवगुण समझाने के लिए केले के पेड़ का उदाहरण लिया है। वो लिखते हैं कि जाति भी उसी प्रकार है, जैसे केले का पेड़। केले के पेड़ के तने को अगर आप छीलते जाएँ तो पत्ते के नीचे दूसरा पत्ता मिलते चला जाता है और अंत में कुछ भी नहीं निकलता और पूरा पेड़ ख़त्म हो जाता है। फिर रैदास कहते हैं कि जाति भी इसी प्रकार है, मनुष्य तक तक एक-दूसरे से नहीं जुड़ सकता, जब तक जाति न चली जाए। आज इन्हीं पक्तियों के रचयिता के नाम पर जातिवाद को हवा दी जा रही है।

बचपन में जानवरों की चमड़ी उतारने और बेचने का काम करने वाले रविदास के परिवार का यह पारम्परिक पेशा था लेकिन उनका मन भक्ति में ऐसा रमा कि मीराबाई जैसी भक्त भी उनसे प्रेरित हुईं। आज उनके नाम पर राजनीति चमकाने वाले तो कम से कम उनसे तो प्रेरणा नहीं ही ले रहे। जिसने भी जातिवाद हटाने की माँग की, उसे ब्राह्मणों का दुश्मन साबित कर दो – यह नया प्रचलन है क्योंकि वो व्यक्ति जवाब देने के लिए अभी मौजूद नहीं है और लोग तो उसका लिखा पढ़ेंगे ही नहीं। बस यहीं से बेवकूफ बनाने का सिलसिला शुरू हो जाता है।

दिल्ली सरकार के मंत्री राजेंद्र पाल गौतम ने कहा कि वह अपने समुदाय के प्रतिनिधि के रूप में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया कि आंबेडकर की मूर्तियाँ ढहाई जा रही हैं और दलित समुदाय के संत रविदास की मंदिर को गिरा दिया गया। संत रविदास ‘भक्ति आंदोलन’ के संतों में से एक थे, जिन्होंने राम और कृष्ण को भजा और दूसरों को भी उनकी भक्ति करने का सन्देश दिया। किसी को एक समुदाय के संत या नेता के रूप में बाँध कर राजनीति चमकाना कहाँ तक उचित है? हो सकता अभी इस पर और नए नाटक हों!

मामला भले ही कुछ और से जुड़ा हो, उसमें मनुवाद घुसेड़ दो। मामला भले ही कुछ भी हो, उसमें ब्राह्मणवाद का छौंक डाल दो। आश्चर्य नहीं होना चाहिए जब गिरोह विशेष के एक्टिविस्ट्स तख्ती लेकर ब्राह्मणवाद और मनुवाद का नाम लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के लिए मोदी को गाली दने निकल आएँ। और हाँ, महिला एक्टिविस्ट्स के पास तो असीमित तरीके हैं विरोध प्रदर्शन करने के। जैसा कि हम देखते आए हैं, उसी परंपरा को फॉलो करते हुए वे अपनी नंगी पीठ पर ब्राह्मणों के विरोध में गालियाँ लिख कर निकल सकती हैं!

अनुपम कुमार सिंह: चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.