AIMIM न होती तो भी BJP ही जीतती: कॉन्ग्रेस के आरोप पर ‘वोट कटुओं’ का जवाब

असदुद्दीन ओवैसी/ राहुल गाँधी

बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन और महागठबंधन के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिला था। हालाँकि, इन चुनावों में भाजपा के शानदार प्रदर्शन से सूबे में एनडीए ने 125 सीटों से जीत हासिल की, जिससे न सिर्फ केंद्र सरकार के कामकाज पर मुहर लगी है बल्कि ‘मोदी मैजिक’ की थ्योरी को भी बरकरार रखा। बिहार में एनडीए की जीत ने कॉन्ग्रेस के सारे दाँव-पेंच को ठंडे बस्ते में दाल दिया। वहीं, निराश कॉन्ग्रेस ने अपनी कमियों को दरकिनार करते हुए हार दोष AIMIM के मत्थे मढ़ दिया और उसे ‘वोट कटुआ’ पार्टी ठहराया है।

कॉन्ग्रेस ने आरोप लगाया कि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM, जिसने बिहार चुनावों में 20 सीटों में से 5 सीटें हासिल की, ने ‘वोट कटुआ’ पार्टी के रूप में काम किया, जिसके वजह से चुनाव में कॉन्ग्रेस की हार हुई। वहीं, इन आरोपों का AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने विरोध करते हुए ट्विटर पर कॉन्ग्रेस को जमकर लताड़ा है। उन्होंने आरोप लगाया कि कॉन्ग्रेस AIMIM की सफलता को देखते हुए अपनी हार का जिम्मेदार उन्हें ठहरा रही हैं।

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ओवैसी ने ट्विटर पर उन 20 सीटों का आँकड़ा शेयर किया, जिन पर उनकी पार्टी के उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था। बता दें, AIMIM ने जिन 20 सीटों पर चुनाव लड़ा, उनमें मात्र 5 पर उन्हें जीत मिली, जबकि महागठबंधन को 9 सीटें मिलीं और बाकी 6 सीटों पर NDA ने जीत दर्ज की है।

6 सीटों पर एनडीए के उम्मीदवारों की जीत के मार्जिन का ब्योरा साझा करते हुए ओवैसी ने आरोप लगाया कि उन सीटों पर एआईएमआईएम उम्मीदवारों को मिला कुल वोट जीत के मार्जिन से भी कम था। इसका मतलब अगर AIMIM के वोट महागठबंधन को भी मिल जाते तो भी बीजेपी ही जीतती और महागठबंधन फिर भी हार जाता।

साहेबगंज सीट पर एनडीए गठबंधन के साथी वीआईपी के राजू कुमार सिंह ने 15,000 से अधिक मतों के अंतर से चुनाव जीता। इस निर्वाचन क्षेत्र में AIMIM के उम्मीदवार को केवल 4000 मत ही प्राप्त हुए। इसी तरह, छतरपुर के भाजपा उम्मीदवार ने 20,000 से अधिक मतों के अंतर से जीत हासिल की। वहीं एआईएमआईएम उम्मीदवार आलम को केवल 1,990 वोट मिले। बीजेपी के जय प्रकाश यादव ने नरपतगंज में 28,500 वोटों से जीत हासिल की, जबकि एआईएमआईएम उम्मीदवार को 5,495 वोट मिले।

यही हाल प्राणपुर, रानीगंज और बरारी निर्वाचन क्षेत्रों में भी था, जहाँ एनडीए के उम्मीदवारों ने एआईएमआईएम की तुलना में काफी अधिक संख्या में वोट हासिल किए थे। यह साबित करता है, ओवैसी की पार्टी के विपरीत अन्य कोई भी पार्टी होती तो एनडीए के समक्ष वह भी धराशाही हो जाती।

उल्लेखनीय है कि एआईएमआईएम ने कई सीटों जैसे फुलवारी, साहबपुर कमाल, मनिहारी, रानीगंज और बरारी में हिंदू उम्मीदवार खड़े किए थे। इसलिए अगर एआईएमआईएम ने उन सीटों पर चुनाव नहीं लड़ा होता तो हो सकता है उनमें से कुछ वोट महागठबंधन को जाते तो कुछ एनडीए को भी मिल जाते।

गौरतलब है कि वोटों को लेकर ओवैसी और कॉन्ग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा के बीच काफी विवाद हुआ। खेरा ने यह भी आरोप लगाया कि AIMIM ने चुनाव लड़कर एनडीए को जिताने में मदद की है। इन आरोपों का एआईएमआईएम प्रमुख ने जमकर विरोध किया था।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया