भावी बजट रचेगा इतिहास: 8%+ विकास दर की रखेगा नींव, कुछ बड़े सुधारों की पहल

अगले दशक का पहला बजट ऐतिहासिक होने की उम्मीद है

सोमवार (जनवरी 20, 2020) को वित्त मंत्रालय में पारम्परिक ‘हलवा रस्म’ के साथ ही बजट की अंतिम तैयारियाँ शुरू हो गई। वर्षों से इसी रस्म के बाद बजट की छपाई का काम प्रारम्भ होता है। हमारी संस्कृति है कि कोई भी बड़ा या पवित्र कार्य शुरू करने से पहले कुछ मीठा खाया जाता है। ‘हलवा रस्म’ भी कुछ इसी तरह का है। हालाँकि, इसका कोई पुष्ट विवरण उपलब्ध नहीं है कि इस रस्म की शुरुआत कब से हुई, लेकिन इतना ज़रूर है कि ये लम्बे समय से चला आ रहा है। अब प्रश्न तो यही है कि भावी बजट कैसा होगा और ये हमारी उम्मीदों पर कितना खरा उतरेगा?

यहाँ एक बात गौर करने लायक है कि पहले बजट आने से पहले ही इस बात की सुगबुगाहट शुरू हो जाती थी कि कौन सी चीजें सस्ती हो जाएँगी और कौन सी चीजें महँगी। ऐसा जीएसटी के लागू होने से पहले हुआ करता था। जीएसटी के आने के बाद अब बजट का हमारे जीवन पर, हमारी ख़रीददारियों पर उतना असर नहीं पड़ता, जितना पहले हुआ करता था। यही कारण है कि अब बजट को लेकर आपको रोज बड़े-बड़े आर्टिकल्स पढ़ने को नहीं मिलते, जिनमें ताज़ा वित्तीय वर्ष में चीजों के सस्ते या महँगे होने की बातें होती है।

तो फिर हमारे जीवन पर बजट का क्या असर पड़ेगा? व्यक्तिगत इनकम टैक्स रेट्स और कस्टम ड्यूटीज- इन दो चीजों का एक उपभोक्ता पर सीधा प्रभाव पड़ता है। हालाँकि, बड़े स्तर पर देखें तो अर्थव्यवस्था के लिए बजट एक पॉलिसी दस्तावेज है, जिसका प्रभाव हम सब पर पड़ना लाजिमी है। वर्तमान वित्तीय वर्ष की दूसरी चौमाही में विकास दर 8% से घट कर 4.5% पर आ गया है, जो चिंता की बात है। इसमें कोई शक नहीं है कि गड़बड़ियाँ हुई हैं और इस पर लगातार चर्चा हो रही है कि क्या ग़लत हो गया? लेकिन, एक बात स्पष्ट है कि भावी बजट सारी समस्याओं के समाधान की दिशा में अहम साबित हो सकता है। ये एक मौक़ा है, एक बड़ा मौका- चीजों को ठीक करने का।

ऐसा नहीं है कि सरकार कुछ नहीं कर रही। केंद्र सरकार ने अगस्त 2019 से ही कई ऐसे क़दम उठाए हैं, जिनसे बाजार में सकारात्मकता आई है और उम्मीद बंधी है कि सत्ता अर्थव्यवस्था को ठीक करने की दिशा में पहल कर रही है। साफ़ है कि बजट इस क्रम में इन प्रयासों की अगली कड़ी होगा। ये सरकार की उन नीतियों को आगे लेकर जाएगा, जिन्हें सरकार ने गिरती आर्थिक विकास दर को संभालने के लिए आजमाया है।

प्रत्येक अर्थशास्त्री, नीति विशेषज्ञ और पब्लिक पॉलिसी पर नज़र रखने वाले लोगों ने बजट को लेकर अपनी-अपनी उम्मीदों की पोटली तैयार की है। चूँकि ये बजट गिरती आर्थिक विकास दर और डगमगाती अर्थव्यवस्था के बीच आ रहा है, कड़े निर्णय लेने का ये सबसे सही समय है क्योंकि सामान्य समय में ऐसे फ़ैसले लेना मुश्किल हो जाता है। पहला क़दम ये होना चाहिए कि ड्यूटीज को न बढ़ाया जाए ताकि घरेलू उद्योगों को आगे बढ़ने का मौक़ा मिले। 1991 से पहले इसे आजमाया गया था और देश ने देखा था कि कैसे ‘नेहरुवियन इम्पोर्ट सब्स्टीट्यूट पॉलिसी’ धड़ाम से गिरी थी।

1991 के बाद जिस तरह से भारत का आर्थिक विकास दर तेज़ी से बढ़ा, उसी रफ़्तार से ग़रीबी भी कम होती गई। हालाँकि, इम्पोर्ट को लेकर एक बात समझने की ज़रूरत है। भारत इम्पोर्ट इसीलिए करता है ताकि खपत हो। इम्पोर्ट्स बढ़ा देने का अर्थ ये नहीं हो जाता कि भारतीय प्रोडक्ट्स के दाम घट जाएँगे। उदाहरण के तौर पर कार इंडस्ट्री को लीजिए। अंतरराष्ट्रीय बाजार में ये एक प्रतिस्पर्धी इंडस्ट्री है। मान लीजिए, अगर स्टील और रबर पर टैरिफ को बढ़ा दिया जाता है तो क्या इससे ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में कम्पटीशन कम नहीं हो जाएगा? ऐसा नहीं किया जाना चाहिए।

सरकार को ट्रेड पॉलिसी को ठीक से देखना पड़ेगा और इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर को ठीक करना पड़ेगा। हमें ज़रूरत है विदेशी निवेशकों को ये समझाने की कि हम ग्लोबल सप्लाई चैन का सम्मान करते हुए वैल्यू चैन को आकर्षित करने में सक्षम हैं। कृषि क्षेत्र में सरप्लस लेबर है और हमें एक ऐसा क्षेत्र चाहिए, जहाँ उनका उपयोग किया जा सके।

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कर सुधार और डायरेक्ट टैक्स कोड की दिशा में एक और अहम क़दम ये है कि ‘Tax Regime’ को सिम्प्लीफाई किया जा सके। इसके लिए ‘लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स (LTCGT)’ को हटाना पड़ेगा। टैक्स रेट्स और टैक्स स्लैब्स का रेशनलाइजेशन करना होगा। काफ़ी लोग ये कहते हैं कि टैक्स दरों में कटौती से बेहतर है कि मनरेगा जैसी योजनाओं व इंफ्रास्ट्रक्चर कार्यक्रमों को बढ़ाया जाए। जहाँ एक तरफ टैक्स रेट्स में कटौती का भारत की जनसंख्या के एक छोटे हिस्से पर असर पड़ेगा, वहीं दूसरी तरफ़ ये भी ध्यान रखना होगा कि इस जनसंख्या की खपत का अनुपात बेमेल है।

अब बात उठती है राजस्व टारगेट की। क्या वो इस वित्त वर्ष में पूरा हो पाएगा, अगर हम उपर्युक्त सुधार करते हैं तो? देखा जाए तो वैसे भी किसी को उम्मीद नहीं है कि हम इस वित्तीय वर्ष अपने राजस्व लक्ष्य को प्राप्त करेंगे। कई विशेषज्ञों का जोर है कि अगले कुछ वर्षों में राजस्व लक्ष्य को उतनी महत्ता न देकर आर्थिक सुधारों पर जोर दिया जाए।

ये इस दशक का पहला बजट होगा और इस दशक में हमारा देश 8% की आर्थिक विकास दर को पार कर जाएगा, ये तय है। और हाँ, इसकी नींव आगामी बजट ही रखेगा- बजट 2020-21, जो आने ही वाला है। कुछ ही महीनों पहले सितम्बर 20, 2019 को वित्त मंत्री ने 21वीं सदी के सबसे बड़े कॉर्पोरेट टैक्स कट्स की ऐतिहासिक घोषणा कर के आर्थिक सुधारों की दिशा में बड़ा क़दम उठाया था।

Karan Bhasin:
Karan Bhasin is a political economist by training and has diversified research interests in the field of economics. He tweets @karanbhasin95.