‘विदेशी भाषा थोपना बंद हो’: PFI और कॉन्ग्रेस ने संस्कृत विश्वविद्यालय को बताया ‘बेकार’, खुद खुलवा रही थी ‘उर्दू यूनिवर्सिटी’

कर्नाटक में संस्कृत विश्वविद्यालय को कॉन्ग्रेस नेता नटराज गौड़ा ने बताया बेकार (फाइल फोटो)

कर्नाटक में संस्कृत विश्वविद्यालय खोलने का कॉन्ग्रेस पार्टी विरोध कर रही है। पार्टी के नेता नटराज गौड़ा ने संस्कृत यूनिवर्सिटी को ‘बेकार’ तक बता दिया। मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली राज्य की भाजपा सरकार ने संस्कृत विश्वविद्यालय के लिए 320 करोड़ रुपए का फंड जारी किया है। इसके लिए राज्य सरकार ने 100 एकड़ जमीन की व्यवस्था भी की है। हालाँकि, कई कट्टर कन्नड़ संगठन इसका विरोध कर रहे हैं और कॉन्ग्रेस पार्टी उनका साथ दे रही है।

इसके अलावा कट्टरवादी संगठन ‘पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI)’ ने भी इस कदम का विरोध किया है। कन्नड़ संगठनों ने संस्कृत को एक विदेशी भाषा तक बता दिया। कर्नाटक कॉन्ग्रेस के प्रवक्ता नटराज गौड़ा ने राज्य सरकार के इस फैसले का विरोध करते हुए कहा कि राज्य को इसकी ज़रूरत ही नहीं है। उन्होंने इसे ‘बेकार’ बताते हुए कहा कि कर्नाटक के बच्चों को संस्कृत पढ़ाना ‘धर्मांधता’ की साजिश का एक हिस्सा है। उन्होंने सरकार को इसके उलट पर्यटन को बढ़ावा देने की सलाह दी।

कर्नाटक के विपक्षी दलों और कट्टर क्षेत्रवादी संगठनों ने इसके बाद सोशल मीडिया पर ‘Say No To Sanskrit (संस्कृत को ‘ना’ कहो)’ ट्रेंड कराया। कॉन्ग्रेस ने दावा किया कि जब राज्य का पर्यटन क्षेत्र संघर्ष कर रहा है, सरकार इन सब में रुपए खर्च कर रही है। उन्होंने कहा कि हमें ‘स्किल यूनिवर्सिटी’ की जरूरत है, संस्कृत की नहीं। रमनगरा के मगदी में ये परिसर बन रहा है। क्षेत्रीय संगठन इसे जबरदस्ती हिंदी को थोपने की साजिश का एक हिस्सा बता रहे हैं।

PFI कर्नाटक के अध्यक्ष यासिर हसन ने कहा कि राज्य में किसी भी ‘विदेशी’ भाषा को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों ने इस भूमि पर कन्नड़ को बढ़ावा दिया है। उन्होंने इसे ‘हिंदी/संस्कृत थोपना’ बताते हुए कर्नाटक के लोगों को इसके खिलाफ आने की अपील की। सोशल मीडिया पर ट्रेंड करा कर कहा गया है कि सरकार इस फैसले को वापस ले। वहीं भाजपा ने इसे राज्य सरकार के खिलाफ लोगों को भड़काने की साजिश बताया है।

ये भी जानने लायक बात है कि कर्नाटक में कॉन्ग्रेस की पिछली सरकार अलग से ‘उर्दू यूनिवर्सिटी’ बनवाना चाहती थी। लेकिन, राज्य सरकार द्वारा संचालित विश्वविद्यालयों में उर्दू में छात्रों का कम नामांकन होने के कारण भाजपा ने सत्ता में आने के बाद इस प्रस्ताव को रद्द कर दिया। कलबुर्गी में इसे स्थापित कर के कर्नाटक और हैदराबाद के छात्रों को इसमें पढ़ाने की योजना थी। बेंगलुरु यूनिवर्सिटी में उस साल उर्दू में MA के लिए 54 में से 14 सीटें भी भर पाई थीं।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया