‘कॉन्ग्रेस से ₹10 करोड़ लेकर किसान नेता ने की खट्टर सरकार गिराने की डील, टिकट भी माँगा’: संयुक्त मोर्चा की बैठक में हंगामा

गुरनाम सिंह चढूनी पर कार्रवाई कर सकता है संयुक्त किसान मोर्चा (फाइल फोटो)

केंद्र सरकार के तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ कई सप्ताह से विरोध प्रदर्शन कर आम लोगों के नाक में दम करने वाले किसान संगठनों के नेता अब आपस में ही सिर-फुटव्वल पर उतर आए हैं। रविवार (जनवरी 17, 2021) को संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में ये फूट तब सतह पर आ गई, जब भारतीय किसान यूनियन (हरियाणा) के अध्यक्ष गुरनाम चढूनी पर आंदोलन के नाम पर एक कॉन्ग्रेस नेता से 10 करोड़ रुपए लेने के आरोप लगे।

अन्य संगठनों ने आरोप लगाया कि गुरनाम चढूनी ने ‘किसान आंदोलन’ को राजनीति का अड्डा बना कर रख दिया है और इसमें कॉन्ग्रेस नेताओं को बुला रहे हैं। आरोप लगाया गया कि हरियाणा के कॉन्ग्रेस नेता से उन्होंने रुपए लिए और वो दिल्ली में सक्रिय हैं। आरोप लगा कि वो कॉन्ग्रेस के चुनावी टिकट के एवज में हरियाणा में भाजपा-जजपा की सरकार गिराने के लिए भी डील कर रहे हैं। हालाँकि, चढूनी ने इन आरोपों को ख़ारिज कर दिया है।

‘दैनिक भास्कर’ की खबर के अनुसार, ‘किसान आंदोलन’ के 54वें दिन सभी किसान संगठनों ने मिल कर ऐलान किया कि उनका कोई भी नेता NIA के समन का पालन नहीं करेगा और किसी भी जाँच एजेंसी के समक्ष पेश नहीं होगा। वहीं ‘ऑल इंडिया किसान सभा’ के नेता और 8 बार के सांसद हन्नान मुला ने खुद को सुप्रीम कोर्ट से की जा रही उस माँग से अलग कर लिया है, जिसमें बातचीत के लिए दोबारा समिति बनाने की बात कही जा रही है।

वहीं गुरनाम चढूनी से सारे किसान नेता चिढ़े हुए और आक्रोशित दिखे। उन्हें आंदोलन से निकाल बाहर किए जाने की माँग की गई। अंततः जाँच के लिए 3 सदस्यीय कमिटी बनाई गई, जिसे बुधवार तक मोर्चे के समक्ष रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया गया है। इससे 1 दिन पहले केंद्र सरकार के साथ बैठक भी है, ऐसे में वो उसमें शामिल होंगे या नहीं – ये स्पष्ट नहीं है। समिति की रिपोर्ट के आधार पर उन्हें मोर्चे में रखने या निकालने का निर्णय लिया जाएगा।

चढूनी पर आरोप है कि एक तो वो मोर्चे से अलग फंडिंग का जुगाड़ लगाते हैं, लेकिन इसका कोई हिसाब-किताब नहीं देते। हरियाणा के बड़े कॉन्ग्रेस नेता से धनराशि लेकर ये बात सबसे छिपाने के आरोप उन पर लगे हैं। साथ ही आंदोलन स्थल पर अपने टेंट में राजनेताओं को लाने के आरोप लगाए गए। कहा गया कि दिल्ली में ‘किसान संसद’ के नाम पर उन्होंने जनवरी में 10, 14 और 17 तारीख को कई राजनेताओं को बुलाया।

‘दैनिक भास्कर’ में प्रकाशित खबर (साभार)

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की कमिटी से किसान नेता भूपिंदर सिंह मान ने अपना नाम वापस ले लिया था। उन्होंने कहा कि उन्होंने सत्ता पक्ष, विदेशी संस्थाओं या किसी संगठन के दबाव के बिना ही ये फैसला लिया है और उन्हें मिल रही धमकियों की खबरें अफवाह मात्र हैं। उन्होंने पूछा कि जब किसान कमिटी से बात ही नहीं करना चाहते तो वो कैसे सदस्य बने रह सकते हैं? मान ने कहा कि वो कानूनों के पक्ष में नहीं हैं और किसानों की माँगें जायज हैं।

बलदेव सिंह सिरसा भी NIA के समक्ष समन मिलने के बावजूद पेश नहीं हुए। सिरसा ने दावा किया था कि केंद्र सरकार गणतंत्र दिवस के दिन प्रस्तावित किसानों की ट्रैक्टर रैली से डर गई है और इसीलिए वो ‘पंजाब के लोगों को डराने-धमकाने’ के लिए NIA के नोटिस का इस्तेमाल कर रही है। बकौल सिरसा, इस समन का एक ही उद्देश्य है – किसान आंदोलन को पटरी से उतारना। समन की खबर फैलते ही उनके समर्थक भी उग्र हो गए थे और अमृतसर के एक मॉल के बाहर जमा हो कर जम कर हंगामा किया था।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया