असहिष्णुता के शिकार हो रहे हैं लोग: फारूक अबदुल्ला ने छेड़ा शाह फ़ैसल वाला राग

फारूक अब्दुल्ला (साभार गूगल)

नैशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी के अध्यक्ष फारूक अबदुल्ला ने एक फिर केंद्र सरकार को घेरते हुए ‘असहिष्णुता’ का राग अलापा। देश की जनता को भ्रमित करने की उनकी यह आदत एक बड़े विवाद का रूप ले लेती है। बीते रविवार (जनवरी 13, 2019) को उन्होंने कहा कि देश में बढ़ती असहिष्णुता मजहब के लोगों को बुरी तरह से प्रभावित कर रही है। बयान में उन्होंने अल्पसंख्यको के प्रति अपनी भ्रमित कर देनी वाली चिंता दर्शाने की पुरज़ोर कोशिश की, जिसका ना कोई पुख़्ता आधार है और ना ही कोई पुख़्ता कारण। हाल ही में पूर्व IAS अफ़सर शाह फ़ैसल ने भी ऐसे ही शब्दों को चुना था जब उन्होंने

केंद्र सरकार को टारगेट करके दिया गया बयान फारूक की कूटनीतिक विचारधारा को स्पष्ट करती है। केंद्र सरकार को दोषी करार देते हुए उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार भारत की धर्मनिरपेक्ष और उदार छवि को धूमिल करने का काम कर रही है।

तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं फारूक अबदुल्ला

बता दें कि फारूक अब्दुल्ला तीन बार जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। मुख्यमंत्री पद का भार संभालने के बावजूद वो यह समझने में असमर्थ रहे हैं कि देश की जनता को जातिगत या धार्मिक रूप से भ्रमित करना निंदनीय कार्य ही नहीं बल्कि लोकतंत्र के माथे पर कलंक भी है। फारूक के फ़र्ज़ी बयानों से ऐसा लगता है मानो, उनके तीखे बोल और हमलावर रुख़ हमेशा बीजेपी को आड़े हाथों लेने के सिवाय कोई दूसरा काम जानते ही न हो।

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब फारूक ने अपने बयानों से सुर्ख़ियाँ बटोरने का काम किया हो, पहले भी वो इस तरह की हरक़त कर चुके हैं जिसमें वो केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ ही नज़र आए हैं। ख़बरों के मुताबिक़ फारूक ने पड़ोसी देश के समर्थन में कहा था कि पाकिस्तान ने चूड़ियाँ नहीं पहन रखी हैं और ना ही वो इतना कमज़ोर है कि अपने क़ब्ज़े वाले कश्मीर पर भारत का कब्ज़ा होने देगा। हद तो तब हो गई जब फारूक ने अपने बयान के ज़रिए पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को पाकिस्तान का ही बता डाला था।

असहिष्णुता जैसे विवादित बयान देने वाले फारूक से अगर यह पूछा जाए कि क्या उन्हें वाक़ई देश की चिंता है, अगर है तो इस प्रकार के विवादित बयान देने के पीछे आख़िर उनका क्या मक़सद होता है?

पाकिस्तान के समर्थन में बोले फारूक

हाल ही में दिए अपने एक अन्य बयान में तो वो पूरी तरह से पाकिस्तान के समर्थन में दिखे और यहाँ तक कह गए कि यदि आज की तारीख़ में भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध हो जाए तो पीओके (पाक अधिकृत कश्मीर) पर पाकिस्तान का ही कब्ज़ा होगा। पाकिस्तान के समर्थन में उनके बोल अपने देश के प्रति उनकी झूठी चिंता का स्पष्ट प्रमाण है।

अपने असहिष्णुता वाले बयान से अल्पसंख्यकों के मसीहा बनने वाले फारूक की देशभक्ति का यह कौन-सा रूप है जो भारत में रहकर उन्हें भारत-विरोधी जैसा दिखाता है। फारूक अब्दुल्ला की खोखली चिंताओं में उन भारतीय शहीदों के लिए जगह नहीं होती जो सरहद पर अपने प्राण न्यौछावर कर देते हैं। पाकिस्तान की तरफ से हुई फ़ायरिंग में दोनों देशों के जवानों की शहादत पर फारूक ने कहा था कि दोनों तरफ से सीज़फ़ायर का उल्लंघन हो रहा है, दोनों ओर से गोलियाँ चल रही हैं। इस फ़ायरिंग में केवल भारत के जवान ही नहीं मर रहे हैं बल्कि पाकिस्तान के जवान भी मर रहे हैं। इस प्रकार के बयान से यह साफ़ झलकता है कि फारूक को भारतीय सेना के जवान से ज़्यादा पाकिस्तान के जवानों के मारे जाने की अधिक चिंता है।

भारतीय सैन्य क्षमता को पाकिस्तान से कम आँका

फारूक इतने पर ही नहीं रुके बल्कि यहाँ तक कह गए कि अगर हम (भारत) उनके (पाकिस्तान) 10 जवानों को मारेंगे तो वो हमारे 12 जवानों को मारेंगे। अपने इस विवादित बयान से क्या वो भारत की सैन्य क्षमता पर भी प्रश्नचिन्ह लगाने की कोशिश कर रहे हैं। निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है कि फारूक अब्दुल्ला को देश की चिंता तो रत्ती मात्र भी नहीं है, लेकिन मुद्दा चाहे किसी अन्य समस्या का हो वो केवल अपने विवादों के ज़रिए एक ऐसा माहौल बनाने का प्रयास करते रहते हैं जिससे केंद्र सरकार को बेवजह कटघरे में खड़ा किया जा सके।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया