‘हम, रउआ आ बउआ’: सिन्हा के परिवार के 3 सदस्यों ने 2 साल में 3 सीटों से हार कर रचा इतिहास

शत्रुघ्न सिन्हा के परिवार के 3 लोग 2 साल में 3 सीटों से हारे

अब जब बिहार विधानसभा चुनावों के रुझान पुष्ट होते जा रहे हैं, बिहार के एक परिवार के बारे में बात करना आवश्यक है। बिहार के ‘बिहारी बाबू’ का ये वो परिवार है, जिसके 3 लोग पिछले दो सालों में चुनाव हार कर अब घर में बैठेंगे। भाजपा में रहते पीएम मोदी को गाली देने से लेकर वहाँ से निकल कर कॉन्ग्रेस में जाने और अप्रासंगिक होने तक, शत्रुघ्न सिन्हा की कहानी ने पिछले दो सालों में कई मोड़ लिए हैं।

यहाँ आपके सामने हम सिर्फ आँकड़े पेश करेंगे, बाकी तथ्यों का अंदाज़ा आप खुद ही लगा सकते हैं। खबर लिखे जाने तक पटना के बाँकीपुर सीट से कॉन्ग्रेस पार्टी के उम्मीदवार लव सिन्हा भाजपा के नितिन नवीन से आधे से भी कम वोट ला सके हैं। सिटिंग विधायक नितिन नवीन के 19920 (65.1%) वोटों के मुकाबले उन्हें मात्र 7784 (25.44%) मत आए थे। इस तरह से वो 12136 (39.66%) के भारी अंतर से पीछे चल रहे हैं।

अब जरा पीछे चलते हैं 2019 के लोकसभा चुनाव की तरफ। उस चुनाव में जहाँ बॉलीवुड के वरिष्ठ अभिनेता रहे शत्रुघ्न सिन्हा पटना साहिब से ताल ठोक रहे थे और उनकी पत्नी पूनम सिन्हा लखनऊ से समाजवादी प्रत्याशी के रूप में उतरी थीं। दोनों ही सीटों पर भाजपा के केंद्रीय मंत्रियों रविशंकर प्रसाद और राजनाथ सिंह ने क्रमशः उन्हें हराया। जो शत्रुघ्न सिन्हा कॉन्ग्रेस से पटना साहिब में उतरे थे, उनकी पत्नी लखनऊ में कॉन्ग्रेस के खिलाफ लड़ रही थीं।

पटना साहिब में शत्रुघ्न सिन्हा को 3,22,849 (32.87%) मत मिले, जो रविशंकर प्रसाद को मिले 6,07,506 (61.85%) से काफी कम था। इसी तरह लखनऊ में पूनम सिन्हा को 2,85,724 (25.59) वोट मिले थे, जो उनके प्रतिद्वंद्वी राजनाथ सिंह को मिले 6,33,026 (56.70%) वोटों का आधा भी नहीं था। इस तरह से 2019 लोकसभा चुनाव से लेकर बिहार विधानसभा चुनाव तक परिवार के 3 लोग 3 अलग-अलग सीटों से चुनाव हार चुके हैं।

बाँकीपुर में चुनाव प्रचार के दौरान अपने बेटे और कॉन्ग्रेस उम्मीदवार लव सिन्हा के साथ शत्रुघ्न सिन्हा

2009-19 में सांसद रहे शत्रुघ्न सिन्हा कि सबसे बड़ी कमजोरी यह थी कि उन्होंने दो बार जीतने के बाद भी अपने संसदीय क्षेत्र की तरफ मुड़कर भी नहीं देखा। इससे जनता में यह संदेश गया कि वह अपने आप को किसी भी बड़े नेता से भी ऊपर समझते हैं। वो भाजपा की बैठकों में शामिल नहीं होते थे, कार्यकर्ताओं से मिलते-जुलते नहीं थे और सिर्फ़ पार्टी की बड़ी रैलियों में ही हिस्सा लेते थे। सिन्हा द्वारा इस तरह के सौतेले व्यवहार से भाजपा के कार्यकर्ताओं के भीतर ही उन्हें लेकर असंतोष फ़ैल गया।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया