पत्नी को भी नहीं जिता पाए ‘टोंटी-चोर’, UP में बुआ-बबुआ का गठबंधन टूटा, अकेले लड़ेगी BSP

अखिलेश-मायावती और डिंपल यादव (फाइल फोटो)

लोकसभा चुनाव 2019 में सपा के साथ गठबंधन के बावजूद उम्‍मीद के अनुसार नतीजे न आने से नाखुश बसपा सुप्रीमो मायावती ने पार्टी की समीक्षा बैठक में कहा है कि यूपी के 11 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में उनकी पार्टी अकेले लड़ेगी। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में हुई समीक्षा बैठक में मायावती गठबंधन से दुखी नज़र आईं। मायावती का कहना है कि गठबंधन से पार्टी को फायदा नहीं हुआ है। क्योंकि यादवों का वोट हमारी पार्टी को ट्रांसफर नहीं हुआ जिससे हार का सामना करना पड़ा।

जातिगत समीकरण साधने के लिए बनाया गया गठबंधन यहाँ आकर फँस गया चूँकि यादव वोट बसपा को ट्रांसफर नहीं हो पाया। इसलिए मायावती ने अब गठबंधन की समीक्षा का संकेत दिया है। जबकि उनके अकेले चुनाव लड़ने के फैसले ने पहले ही तस्वीरें साफ कर दी हैं। फिर भी अभी गठबंधन की समाप्ति की बस औपचारिक घोषणा ही बाकि रह गई है। वैसे आजतक की रिपोर्ट के अनुसार, मायावती ने यहाँ तक कह दिया कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव अपनी पत्नी और भाई को भी चुनाव नहीं जिता पाए हैं। उनका यह तंज गठबंधन की गाँठ पहले ही खोल चुका है।

बीएसपी प्रमुख मायावती ने 2019 लोकसभा चुनाव में पार्टी को संतोषजनक सीटें न मिलने और कुछ प्रदेशों में करारी हार को लेकर चिंता ज़ाहिर की। यूपी के सभी बसपा सांसदों और जिलाध्यक्षों के साथ बैठक में मायावती ने कहा कि पार्टी सभी विधानसभा उपचुनाव में लड़ेगी और अब 50% वोट का लक्ष्य लेकर चुनाव में अपने दम पर उतरेगी। वैसे शायद यह पहली बार है जब मायावती उपचुनाव में अपने उम्मीदवार उतारने जा रही हैं।

जातिगत समीकरण के नकारे जाने के बाद भी मायावती सीख लेतीं नज़र नहीं आ रहीं। यहाँ तक की समीक्षा बैठक में भी उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती से नवनिर्वाचित बसपा सांसद राम शिरोमणि वर्मा ने ईवीएम घोटाले का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “हम लोग पहले से कह रहे हैं कि बैलेट पेपर से चुनाव होना चाहिए, जिसे ना तो चुनाव आयोग मान रहा है, ना सरकार मान रही है। हम चाहते हैं कि बैलेट पेपर से चुनाव कराया जाए, जो निष्पक्ष हो।” जबकि चुनाव आयोग ऐसे आरोपों को पूरी तरह से ख़ारिज कर दिया है। लेकिन अभी भी कुछ पार्टियाँ देश की जनता द्वारा नकारे जाने को अनर्गल आरोपों की आड़ में छिपाना चाहती हैं।

बता दें कि लोकसभा चुनाव में बीएसपी के 11 प्रत्‍याशी सांसद बन चुके हैं, जिसके बाद उनकी खाली हुई सीटों पर छह महीने के भीतर दोबारा चुनाव होने हैं।

शायद किसी ने नहीं सोचा होगा कि इतनी जल्दी बुआ-बबुआ का गठबंधन दम तोड़ देगी। हालाँकि, विश्लेषक पहले ही इस गठबंधन के लम्बा न चलने का कयास लगा रहे थे। वैसे चुनाव से पहले तो दावा था कि सपा-बसपा ने जो जातीय समीकरण फिट किया है वह भाजपा के लिए नुकसानदायक होगा लेकिन चुनाव नतीजों में साफ हो गया कि बसपा का वोट प्रतिशत तो किसी तरह बना रहा लेकिन समाजवादी पार्टी का वोट प्रतिशत भी गिर गया।

नतीजों से साफ हुआ कि जो जाति गणित का फॉर्मूला लगाया गया वो फिट नहीं हुआ और भारतीय जनता पार्टी को जातिवादी समीकरण से अलग हटकर पर्याप्त वोट मिला। यही कारण रहा है कि बीजेपी अपने दम पर पूरे यूपी में 50% के करीब वोट और 64 सीटों पर जीत हासिल की तो वहीं सपा-बसपा मिलकर 15 सीटें और 40 फीसदी के आसपास वोट शेयर हासिल कर पाई। देखा जाए तो कुल मिलाकर पूरी तरह फेल हो गया उनका जातीय समीकरण। यही कारण है कि अब गठबंधन में टूट बन कर उभरा है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया