भीमा कोरेगाँव हिंसा मामले की जाँच में महाराष्ट्र सरकार के हस्तक्षेप से पुणे पुलिस नाख़ुश: रिपोर्ट

भीमा-कोरेगाँव हिंसा (प्रतीकात्मक तस्वीर)

भीमा कोरेगाँव हिंसा मामले की जॉंच कर रही पुणे पुलिस इस मामले में महाराष्ट्र सरकार के हस्तक्षेप से नाखुश है। रिपब्लिक टीवी की रिपोर्ट के अनुसार राज्य की महाविकास अघाड़ी सरकार जिस तरीके से जॉंच को लेकर सवाल खड़े कर रही है उससे पुलिस सहज नहीं है।

रिपोर्टों के अनुसार महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजित पवार और गृह मंत्री अनिल देशमुख ने गुरुवार की सुबह पुणे पुलिस के अधिकारियों के साथ बैठक की। इस दौरान 2018 के भीमा-कोरेगाँव हिंसा मामले से जुड़ी जॉंच की समीक्षा की।

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भीमा कोरेगाँव मामले पर डिप्टी सीएम अजीत पवार और गृह मंत्री अनिल देशमुख की समीक्षा बैठक में, जाँच के कई पहलुओं पर सवाल उठाए गए। इस दौरान, पुणे के संयुक्त आयुक्त और महाराष्ट्र के डीजीपी सुबोध जायसवाल ने उन्हें 30 मिनट तक जानकारी दी। महा विकास अघाड़ी सरकार द्वारा पुणे पुलिस पर अपनी जाँच के लिए आकांक्षाओं को बढ़ाने के बाद, पुलिस ने गृह मंत्री द्वारा माँगे गए दस्तावेज़ों को देने के लिए और समय माँगा है।

पुलिस सूत्रों के हवाले से मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि इस मामले में शामिल पुलिस अधिकारी महत्वपूर्ण मामले की जाँच में हस्तक्षेप से ख़ुश नहीं हैं। सूत्रों का कहना है कि महाराष्ट्र में सरकार बदलने के बाद जाँच में लगे अधिकारी हतोत्साहित महसूस कर रहे हैं।

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इससे पहले 21 दिसंबर को, एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने एल्गर परिषद (Elgar Parishad) मामले में कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ पुलिस कार्रवाई में एक विशेष जाँच दल (एसआईटी) की माँग की थी। भीमा-कोरेगाँव मामले में जाँच एजेंसियों की भूमिका पर शरद पवार ने कहा था, “हम सीएम उद्धव ठाकरे से इस मामले की जाँच के लिए एक विशेष जाँच दल बनाने के लिए कहेंगे।” इसी तरह एनसीपी विधायक जितेंद्र अव्हाड ने भीमा कोरेगाँव मामले के एक प्रमुख आरोपित सुधीर धवले के ख़िलाफ़ लगाए गए आरोपों को हटाने की माँग शिवसेना-एनसीपी-कॉन्ग्रेस सरकार से की थी।

18 दिसंबर को पुलिस ने 19 के ख़िलाफ़ आरोप तय किए थे। इनमें सुधीर धावले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गडलिंग, महेश राउत, शोमा सेन, अरुण फेरेरा, वर्नोन गोंजाल्वेस, सुधा भारद्वाज और वारवरा राव शामिल थे।

ख़बर के अनुसार, इस मामले को ‘पीएम नरेंद्र मोदी की हत्या की साज़िश’, ‘सरकार को उखाड़ फेंकना’, ‘भारत सरकार के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ना’ ग़ैर-क़ानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम (UPA) के तहत दर्ज किया गया था। दर्ज किए गए मामले में कहा गया था कि कुछ लोग प्रतिबंधित भाकपा-माओवादी पार्टी के सदस्य थे। अगर ‘भारत के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ने’ के तहत उन्हें दोषी पाया जाता है, तो उन्हें IPC धारा-121 के अनुसार मौत की सज़ा या आजीवन कारावास का सामना करना पड़ेगा।

चार्जशीट में, पुलिस ने खुलासा किया था कि सभी 19 आरोपित पूर्व पीएम राजीव गाँधी की हत्या के समान रोड शो के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी की हत्या की साज़िश रच रहे थे। इसके अलावा, चार्जशीट में कहा गया था कि एल्गर परिषद हिंसा आरोपितों द्वारा सरकार को उखाड़ फेंकने और भीम कोरेगाँव में झड़पों के माध्यम से लोगों को उकसाने, उपद्रव करने, भड़काने और आतंकवादी गतिविधियों के लिए कैडर की भर्ती करने समेत अवैध कार्य करना साज़िश का हिस्सा थे।

पुणे पुलिस के अनुसार, 31 दिसंबर, 2017 को शहर में आयोजित एल्गर परिषद कार्यक्रम को सीपीआई (माओवादी) द्वारा वित्त पोषित किया गया था, जो सामाजिक अशांति पैदा करने और सरकार को उखाड़ फेंकने की एक बड़ी साज़िश का हिस्सा थी। पुलिस का कहना है कि भड़काऊ बयानों के कारन 1 जनवरी, 2018 को भीमा कोरेगाँव में हिंसा भड़की थी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया