केंद्र से राजस्थान को मिले 1500 वेंटिलेटर, 10 माह से ज्यादातर डिब्बों में बंद, 230 रखे-रखे खराब: अब 1000 नए की डिमांड

राजस्थान सरकार की बड़ी लापरवाही, केंद्र से मिले 1500 वेंटिलेटर में से ज्यादातर डिब्बों में बंद

कोरोना की दूसरी लहर देश में लोगों को तेजी से संक्रमित कर रही है। रोजाना कोरोना के नए मामले रिकॉर्ड तोड़ रहे हैं। इसके बावजूद राजस्थान सरकार आँखें मूँदकर बैठी है और अपनी नाकामियों के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहरा रही है।

कॉन्ग्रेस शासित राजस्थान को पीएम केयर फंड के तहत प्राप्त 1500 वेंटिलेटर में से ज्यादातर डिब्बों में बंद पड़े हैं। ये वेंटिलेटर राज्य सरकार को 10 महीने पहले मिले थे। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, इन 1,500 वेंटिलेटरों में से 230 खराब हैं। कोरोनो महामारी के बावजूद इनकी साल भर से ना तो रिपेयरिंग हुई है, ना ही इन्हें बदला गया है।

मालूम हो कि अब तक राजस्थान में 6,33,951 लोगों की कोविड-19 के लिए जाँच की जा चुकी है, जिसमें 1,89,178 एक्टिव मामले सामने आए हैं। वहीं अब तक कोरोना की वजह से राजस्थान में 4,558 लोग अपनी जान गँवा चुके हैं।

बताया जा रहा है कि जोधपुर में तो पीएम केयर फंड के 100 में से एक भी वेंटिलेटर को चालू नहीं किया गया है। इसके अलावा पहले से खरीदकर प्रदेश के अस्पतालों में लगाए गए 164 वेंटिलेटर भी काम नहीं कर रहे। वहीं, डॉक्टरों का कहना है कि मरीजों के हिसाब से अभी भी प्रदेश में 1000 और वेंटिलेटर्स की जरूरत है।

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इसी तरह जयपुर के एसएमएस मेडिकल कॉलेज में आईसीयू में इस साल फरवरी में 50 वेंटिलेटर लगाए गए थे। हालाँकि, इन्हें कुछ दिनों पहले ही पहली बार इस्तेमाल में लाया गया था। पिछले 6 महीनों से यहाँ 18 अन्य वेंटिलेटर काम नहीं कर रहे हैं। इसी तरह, अन्य मेडिकल कॉलेजों में भी वेंटिलेटर खराब हैं। जयपुरिया में एक साल से 7 वेंटिलेटर, कांवटिया में 2, गणगौरी में 6 वेंटिलेटर खराब हैं।

कोटा में मेडिकल कॉलेजों को 138 वेंटिलेटर दिए गए थे। इनमें से 65 या तो स्थापित नहीं थे या इनमें कमी बताकर इन्हें हटा दिया गया था। उदयपुर के आरएनटी मेडिकल कॉलेज को 95 वेंटिलेटर मिले थे, जो एक साल तक स्टोर हाउस में बंद रहे। इनमें से 22 को ईएसआईसी हॉस्पिटल में इंस्टॉल किया गया, लेकिन ये बार-बार बंद हो गए। अंत में 5 अप्रैल, 2021 के बाद 32 वेंटिलेटर अपडेट किए गए।

इसके अलावा, अजमेर में 300 और भरतपुर में 60 वेंटिलेटर हैं, ये भी अस्पताल में स्थापित किए जा चुके हैं। बांसवाड़ा में 22 वेंटिलेटर्स में से 5, नागौर में 52 में से 16 वेंटिलेटर ही स्थापित किए गए हैं।

बता दें कि राजस्थान से पहले कॉन्ग्रेस शासित पंजाब में भी इस तरह की लापरवाही का मामला सामने आ चुका है। पंजाब में 250 वेंटिलेटर एक साल से गोदाम में पड़े थे। द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल 20 मार्च को केंद्र सरकार ने राज्य में लगभग 30 करोड़ रुपए की लागत से 290 वेंटिलेटर भेजे थे। लेकिन राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने एक साल बाद भी इसका इस्तेमाल नहीं किया है। उसे गोदाम में बंदकर धूल जमने के लिए रखा गया।

इन वेंटिलेटर को मेडिकल कॉलेजों या अन्य कोविड सेंटर में भेजा जाना था, जहाँ पर L-3 केयर प्रदान किया जाता है। L-3 केयर उन मरीजों को दी जाती है, जिन्हें दो या दो से अधिक ऑर्गन सपोर्ट या मैकेनिकल वेंटिलेशन की आवश्यकता होती है। बताया गया कि मेडिकल कॉलेजों या कोविड सेंटरों से माँग इसलिए नहीं की गई, क्योंकि वेंटिलेटर पर मरीजों की देखभाल करने वाले कुशल मैन पावर की कमी थी।  

द ट्रिब्यून की रिपोर्ट में आगे कहा गया कि यह पहला मौका नहीं था जब राज्य के अस्पताल वेंटिलेटर का उपयोग करने में विफल रहे। पाँच साल पहले, 10 वेंटिलेटर सिविल अस्पताल, लुधियाना भेजे गए थे, लेकिन पाँच साल तक उनका इस्तेमाल नहीं किया गया था। बाद में विवाद होने और महामारी के बढ़ने पर एक स्थानीय निजी अस्पताल को वेंटिलेटर सौंपा गया। 

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया