UPA सरकार ने राजीव गाँधी फाउंडेशन को एक नहीं, तीन-तीन बार PMNRF का पैसा दिया: पूरी रिपोर्ट

UPA सरकार ने राजीव गाँधी फाउंडेशन को एक नहीं, तीन-तीन बार PMNRF का पैसा दिया था

भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने शुक्रवार (जून 26, 2020) को आरोप लगाया कि यूपीए के वर्षों के दौरान प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष (पीएमएनआरएफ) राजीव गाँधी फाउंडेशन को पैसे दान कर रहा था और सार्वजनिक धन परिवार के खातों में डाइवर्ट कर दिया गया था। गौरतलब है कि राजीव गाँधी फाउंडेशन ने न केवल चीन के दूतावास से बल्कि चीन सरकार से भी एक बार नहीं बल्कि कम से कम तीन बार वर्ष 2005 और 2009 के बीच ‘वित्तीय सहायता’ प्राप्त की थी।

भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि सार्वजनिक धन को परिवार द्वारा चलाए जाने वाले संगठन के लिए इस्तेमाल किया गया और यह न केवल एक ‘धोखाधड़ी’ है, बल्कि भारत की जनता के साथ एक ‘बड़ा विश्वासघात’ भी है। यूपीए सरकार में लोग राजीव गाँधी फाउंडेशन में दान करते थे, जिसकी अध्यक्ष सोनिया गाँधी थीं।

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कॉन्ग्रेस पर हमला करते हुए भाजपा अध्‍यक्ष ने कहा कि PMNRF का पैसा संकट के समय लोगों की मदद के लिए होता है लेकिन यूपीए के दौर में राजीव गाँधी फाउंडेशन को पैसे दान कर रहा था। उन्होंने कहा – “PMNRF बोर्ड में कौन बैठा था? सोनिया गाँधी। RGF की अध्यक्षता कौन करता है? सोनिया गाँधी।”

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ट्वीट करते हुए जेपी नड्डा ने कहा कि यह पूरी तरह से निंदनीय है, इसमें नैतिकता की अवहेलना की गई और पारदर्शिता की परवाह तक नहीं की गई है। उन्होंने आगे कहा कि धन के लिए एक परिवार की भूख ने देश का बहुत खर्च किया है। इसके साथ ही उन्होंने कॉन्ग्रेस को अपने लाभ के लिए बेहिसाब लूट के लिए माफी माँगने को कहा है।

गौरतलब है कि UPA के दौरान राजीव गाँधी फाउंडेशन में चीन की सरकार द्वारा किए गए डोनेशन ऐसे समय में सामने आए हैं, जब कॉन्ग्रेस द्वारा केंद्र सरकार पर भारत की जमीन चीन को सौंपने का दुष्प्रचार किया जा रहा था।

राजीव गाँधी फाउंडेशन ने पीएमएनआरएफ से एक बार नहीं बल्कि तीन बार ‘डोनेशन’ हासिल किया था

ऑपइंडिया ने बताया था कि किस प्रकार राजीव गाँधी फाउंडेशन ने न केवल चीन के दूतावास से बल्कि चीन सरकार से भी एक बार नहीं बल्कि कम से कम तीन बार वर्ष 2005 और 2009 के बीच ‘वित्तीय सहायता’ प्राप्त की थी।

चीन की कम्युनिस्ट सरकार द्वारा किए गए इस पहली ‘सहायता’ में 10 लाख रुपए और दूसरी में 90 लाख रुपए दीए गए थे। रिपोर्ट के बाद कॉन्ग्रेस से सवाल उठाए गए थे और इसकी शुरुआत करते हुए, बीजेपी ने पूछा था कि कॉन्ग्रेस का चीन को लेकर हमेशा से ही लचीला रुख था और साथ ही गलवान घाटी में जारी गतिरोध के बीच चीन और कॉन्ग्रेस के बीच हुए ‘व्यापारिक समझौते’ के कारण ही इस प्रकार के बयान दे रही थी।

यह पता चला है, राजीव गाँधी फाउंडेशन की वार्षिक रिपोर्ट में चीन की सरकार से वित्तीय सहायता मिली थी, जिसकी अध्यक्षता सोनिया गाँधी ने की है और इसमें राहुल गाँधी, प्रियंका गाँधी वाड्रा, मनमोहन सिंह और चिदंबरम ट्रस्टी के रूप में सूचीबद्ध हैं। जैसा कि वार्षिक रिपोर्ट में बताया गया है, यूपीए के दौरान राजीव गाँधी फाउंडेशन को एक बार नहीं बल्कि कई बार प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष (PMNRF) से दान मिला था।

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वर्ष 2005-2006 में, वार्षिक रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है कि राजीव गाँधी फाउंडेशन को प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष से दान मिला। 2006-2007 की रिपोर्ट में भी यही खुलासा किया गया है। और इसके बाद 2007-2008 में भी पीएमएनआरएफ से फाउंडेशन को ‘दान’ मिला था।

हालाँकि, इस तरह के दान की राशि अभी तक स्पष्ट नहीं है, लेकिन यह निश्चित है कि वास्तव में दान किया गया था। प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष (PMNRF) वर्ष 1948 में स्थापित किया गया था। प्रारंभ में, निधि का उद्देश्य भारत के विभाजन के बाद और उसके ठीक बाद पाकिस्तान से विस्थापित लोगों को सहायता प्रदान करना था।

पीएमएनआरएफ के संसाधनों का उपयोग अब मुख्य रूप से बाढ़, चक्रवात और भूकंप आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं में मारे गए लोगों के परिवारों को और प्रमुख दुर्घटनाओं और दंगों के पीड़ितों को तत्काल राहत देने के लिए किया जाता है। इस फंड में पूरी तरह से सार्वजनिक योगदान होता है और इसे कोई बजटीय समर्थन नहीं मिलता है।

PMNRF और कॉन्ग्रेस की पारदर्शिता

इससे पहले, कॉन्ग्रेस अध्यक्ष के लिए पीएमएनआरएफ के बोर्ड में होना आवश्यक था। हालाँकि, बाद में इसे बदल दिया गया था और यह अनिवार्य किया गया था कि प्रधानमंत्री के विवेक पर पीएमएनआरएफ से फंड संवितरण किया जाएगा। इससे पीएमएनआरएफ से राजीव गाँधी फाउंडेशन को किया गया ‘दान’ और अधिक संदिग्ध हो जाता है।

यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि 2005 से 2008 तक, जिस अवधि में पीएमएनआरएफ से राजीव गाँधी फाउंडेशन को दान दिया गया था, तब भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे, जिनका सरकार पर थोड़ा बहुत ही नियंत्रण था। सोनिया गाँधी के पास ही उस दौरान सरकार का पूरा नियंत्रण था। वास्तव में, एनएसी फाइलों से पता चला था कि सोनिया गाँधी वास्तव में ‘सुपर पीएम’ थीं और मनमोहन सिंह द्वारा लिए गए निर्णयों पर उनका पूरा नियंत्रण था।

यहाँ पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि PMNRF में सभी धन भारत के नागरिकों द्वारा दिया गया योगदान होता है और इसका उपयोग राष्ट्रीय आपदाओं और आपदाओं के दौरान किया जाता है। इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि लोगों के धन का उपयोग राष्ट्रीय आपदाओं के दौरान लोगों को राहत देने के लिए किया जाना था, जिसे सोनिया गाँधी द्वारा निजी तौर पर नियंत्रित कोष (RGF) में बदल दिया गया था।

PMNRF बनाम PM CARES फंड

ये वही सोनिया गाँधी हैं, जिन्होंने कोरोना वायरस की महामारी के दौरान प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किए गए PM CARES (Prime Minister’s Citizen Assistance and Relief in Emergency Situations Fund) पर संदेह था और लगातार इसकी पारदर्शिता को लेकर सवाल करती देखी जा रहीं थीं। सोनिया गाँधी और यहाँ तक ​​कि राहुल गाँधी ने बार-बार जोर देकर कहा था कि पीएमएनआरएफ इस से कहीं अधिक पारदर्शी है और जब राष्ट्रीय आपात स्थितियों से लड़ने के लिए इस तरह के फंड मौजूद थे, तो ‘पीएम-केयर्स’ की आवश्यकता नहीं थी। पूरा ‘लिबरल’ वर्ग भी यह बताते नजर आया कि पीएम केयर्स फंड के तहत मिलने वाले फंड का इस्तेमाल विवेकपूर्ण और पारदर्शी तरीके से नहीं किया जाएगा।

दिलचस्प बात यह है कि पीएमएनआरएफ को ट्रस्ट मानने के बाद से पीएमएनआरएफ ‘पीएमकेयर्स’ के मुकाबले काफी कम पारदर्शी है। क्योंकि आज तक किसी को भी यह नहीं पता कि पीएमएनआरएफ को संचालित करने वाले दिशानिर्देश क्या हैं।

पीएमएनआरएफ के तहत निधियों के रोजगार में पारदर्शिता की कमी अब इस बात से स्पष्ट हो गई है कि सोनिया गाँधी द्वारा राजीव गाँधी फाउंडेशन में जनता के धन को कैसे डाइवर्ट कर दिया गया और कैसे हस्तांतरित किया गया, इसकी जानकारी किसी ‘खुलासे’ के जरिए ही सामने आ सकी है।

भाजपा ने साधा कॉन्ग्रेस पर निशाना

इससे पहले केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने आरोप लगाया था कि राजीव गाँधी फाउंडेशन को चीन ने पैसे दिए। उन्होंने पूछा था कि कॉन्ग्रेस ये बताए की ये प्रेम कैसे बढ़ गया। इनके कार्यकाल में चीन हमारी जमीन पर कब्जा कर लिया। कॉन्ग्रेस स्पष्ट करे कि इस डोनेशन के लिए क्या सरकार से मंजूरी ली गई थी?

वहीं ‘टाइम्स नाउ’ न्यूज़ चैनल की एक रिपोर्ट के अनुसार, UPA के दौरन फ्री ट्रेड के नाम पर किए गए चीन की सरकार और गाँधी परिवार के बीच अन्य गोपनीय समझौतों के साथ ही यह वित्तीय मदद करीब 300000 अमेरिकी डॉलर (उस समय के एक्सचेंज रेट के हिसाब से करीब 1.5 करोड़ रुपए) के आस-पास थी।

यह सब समझौते चीन के साथ खराब सम्बन्ध होने के बावजूद कॉन्ग्रेस ने गठबंधन सरकार में रहने के दौरान साइन किए थे और देश से समझौते का ब्योरा छुपाया गया। समझौते के ब्‍यौरे को सार्वजनिक नहीं किया गया।

2006 में चीन की सरकार द्वारा राजीव गाँधी फाउंडेशन में 10 लाख रूपए की वित्तीय मदद

एक और खुलासे में गाँधी परिवार के चीन के साथ अपने गोपनीय संबंधों के दावों को और मजबूती मिलती है। नए खुलासे से पता चलता है कि चीनी सरकार ने वर्ष 2006 में ‘राजीव गाँधी फाउंडेशन’ को ‘वित्तीय सहायता’ के लिए 10 लाख रुपए दान दिए थे।

चीनी दूतावास पर उपलब्ध एक दस्तावेज़ के अनुसार, भारत में तत्कालीन चीनी राजदूत सुन युक्सी (Sun Yuxi) ने राजीव गाँधी फाउंडेशन को 10 लाख रुपए दान दिए थे, जो कॉन्ग्रेस पार्टी से जुड़ा हुआ है और कॉन्ग्रेस नेताओं द्वारा चलाया जाता है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया