एक बार अरुण जेटली ने संसद में कहा था कि ‘If Economy is Left to Left, then nothing is Left of Economy’. उनका अभिप्राय था कि यदि अर्थव्यवस्था को वामपंथियों के भरोसे छोड़ दिया जाए तो अर्थव्यवस्था का कुछ भी नहीं बचेगा। जेटली की यह उक्ति लोकतंत्र के महापर्व लोकसभा निर्वाचन 2019 में भी सटीक बैठ गई। चुनाव के नतीजे स्पष्ट होने के साथ ही पश्चिम बंगाल में वामदलों को बहुत बड़ा झटका लगा है। यहाँ सिर्फ़ माकपा के एक उम्मीदवार बिकास रंजन भट्टाचार्या ही अपनी जमानत बचाने लायक वोट हासिल कर पाए हैं जबकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के तो सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई।
गौरतलब है कि चुनावों में प्रत्येक उम्मीदवार को जमानत राशि बचाने के लिए कुल पड़े वोटों में से 16% मत प्राप्त करना अनिवार्य होता है। निर्वाचन आयोग के नियम के अनुसार सामान्य वर्ग के प्रत्याशी के लिए जमानत राशि 25,000 की तय है। वहीं अनुसूचित जाति के उम्मीदवार के लिए ये राशि 12,500 है और अनुसूचित जनजाति से आने वाले उम्मीदवार के लिए 5,000 रुपए तय हैं।
https://twitter.com/ZeeNewsHindi/status/1132137580202418176?ref_src=twsrc%5Etfwहैरान करने वाली बात ये है कि इन चुनावों में पश्चिम बंगाल में माकपा के वरिष्ठ नेता मोहम्मद सलीम भी अपनी जमानत बचाने में असफल हो गए। सलीम 34 साल सत्ता में रहे हैं और इस बार उन्हें सिर्फ़ 14.25% वोट मिले। जमानत गंवाने वालों में सलीम के अलावा मुर्शिदाबाद के मौजूदा सांसद बदरुद्दोजा खान, दमदम से नेपालदेब भट्टाचार्य और दक्षिणी कोलकाता से उम्मीदवार नंदिनी मुखर्जी शामिल हैं।
https://twitter.com/NavbharatTimes/status/1132162465423171584?ref_src=twsrc%5Etfwपिछले 6 दशकों में वाम दलों का ये चुनावी प्रदर्शन सबसे खराब रहा। माकपा और भाकपा ने मिलकर सिर्फ़ 5 सीटों पर जीत हासिल की। इनमें दोनों पार्टियों को तमिलनाडु में 2-2 सीटें मिली हैं, जबकि माकपा को केरल में भी 1 सीट मिली। बता दें 1952 के बाद यह पहला मौक़ा है जब लोकसभा चुनावों में वामदलों को इतनी कम संख्या पर सिमटना पड़ा। 2004 में वामदल का प्रदर्शन सबसे बेहतर था, उस दौरान उन्हें लोकसभा चुनाव में सर्वाधिक 59 सीट मिली थी और मौजूदा लोकसभा में उनके पास 12 सीट थी।
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