जेएनयू की पूर्व छात्र नेता शेहला रशीद ने मुस्लिमों को एससी कैटेगरी के अंदर आरक्षण देने की माँग की है। शेहला ने सोशल मीडिया पर पूछा कि कौन लोग ऐसे हैं, जो मुस्लिमों का मित्र बनना चाहते हैं? इसके बाद उन्होंने शर्त रख दी। शेहला ने लिखा कि वो लोग ही मुस्लिमों के हितैषी हो सकते हैं, जो एससी कैटेगरी के अंदर दलित मुस्लिमों के लिए आरक्षण की माँग करें। शेहला ने कहा कि ये एक बेहतर शुरुआत होगी। शेहला का मानना है कि एससी वर्ग में मुस्लिमों को आरक्षण नहीं देना यह दिखाता है कि भारत मजहब के आधार पर भेदभाव कर रहा है। उन्हें लोगों ने जम कर जवाब दिया।
बता दें कि छात्र नेता रहीं शेहला रशीद ने जम्मू कश्मीर की राजनीति में क़दम रखा ही था कि उनकी पार्टी के संस्थापक शाह फैसल दिल्ली एयरपोर्ट पर तुर्की भागते हुए पकड़े गए। अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त कर दिया गया और उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा धरी की धरी रह गई। इसके बाद उन्होंने अल्लाह और इस्लाम की बातें करते हुए राजनीति से सन्यास ले लिया और ‘फ्रीलान्स प्रोटेस्टर’ बन गईं। जहाँ भी मोदी सरकार या भाजपा के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन होता है, शेहला या तो वहाँ पहुँचती हैं, या फिर सोशल मीडिया के माध्यम से समर्थन देती हैं।
दलित मुस्लिमों को एससी कैटेगरी के अंदर आरक्षण देने की शेहला की माँग का अर्थ क्या है? इसका मतलब ये होगा कि दलितों को मुस्लिमों के साथ एकता प्रदर्शित करने के लिए अपने हिस्से का आरक्षण और अन्य सरकारी सुविधाओं में मुस्लिमों को भी हिस्सा देना होगा। अगर मुस्लिमों को एससी कैटेगरी में आरक्षण X% मिलता है तो इसका अर्थ ये है कि उतनी ही संख्या में दलितों का हिस्सा कट जाएगा। क्या शेहला चाहती हैं कि दलितों को अगर मुस्लिमों के साथ रहना है तो उन्हें अपने हिस्से के आरक्षण की कुर्बानी देनी होगी?
https://twitter.com/Shehla_Rashid/status/1211628640527515649?ref_src=twsrc%5Etfwसवाल तो ये भी उठता है कि जात-पात वगैरह तो हिन्दू समाज की देन है न? दशकों से वामपंथी इतिहासकारों का यही नैरेटिव रहा है। तो फिर ये ‘दलित मुस्लिम’ क्या होता है? इसका अर्थ ये है कि मुस्लिमों में भी जाति-व्यवस्था जम कर घुसी हुई है। वैसे मोदी-शाह की जोड़ी जिस तरह से एक-एक कर तीन तलाक़, अनुच्छेद 370, राम मंदिर और सीएए जैसे वादे पूरे कर रही है, उससे शेहला और उनका गैंग पहले से ही चिढ़ा हुआ है।