CAA के नियम बनाने को लेकर छठी बार बढ़ाई गई समय सीमा: बंगाल BJP के शरणार्थी प्रकोष्ठ ने जताई आपत्ति, मतुआ समुदाय भी नाराज़

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने CAA को लेकर नियम बनाने की बढ़ी समयसीमा (प्रतीकात्मक चित्र)

CAA को लेकर नियम बनाने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने फिर से समयसीमा बढ़ा दी है। इस कानून को बने 2 साल हो चुके हैं। इससे पहले पाँच बार CAA को लेकर नियम निर्धारित करने की समयसीमा बढ़ाई जा चुकी है। पहली बार जून 2020 में इसके लिए और समय बढ़ाने की बात कही गई थी। अब संसदीय समितियों से इसे लेकर फिर से और समय माँगा गया है। 11 दिसंबर, 2019 को संसद ने पारित किया था। अगले ही दिन इसे राष्ट्रपति ने भी मंजूरी दे दी थी।

उधर पश्चिम बंगाल में प्रदेश भाजपा के ‘शरणार्थी प्रकोष्ठ’ ने भी इस देरी को लेकर आपत्ति जताई है और पार्टी लेटरहेड पर ही पत्र जारी किया है। इसमें कहा गया है कि शरणार्थियों को कानूनी दाँवपेंच से जूझना पड़ रहा है, पुलिस उन्हें प्रताड़ित कर रही है और शिक्षा एवं नौकरी के अलावा विदेश यात्राओं में भी उन्हें परेशानी झेलनी पड़ रही है। सभी दलों से अपील की गई है कि वो CAA के रूल्स नोटिफाई करने के लिए दबाव बनाएँ। इस देरी से परेशानियों का जिक्र करते हुए तुरंत कदम उठाने की माँग की गई है।

इस बयान में कहा गया है कि ये न सिर्फ शरणार्थियों, बल्कि पूरे पश्चिम बंगाल के लिए महत्वपूर्ण है। प्रकोष्ठ के संयोजक मोहित रॉय ने भाजपा आलाकमान पर इसका दोष मढ़ा। उन्होंने कहा कि नियमों को तय करने में कुछ दिन से ज्यादा का समय नहीं लगता, इसीलिए वो पार्टी का सदस्य होने के बावजूद केंद्र सरकार पर आरोप लगा रहे। उन्होंने कहा कि उनके लिए शरणार्थियों का हित महत्वपूर्ण है और इससे 1972 के बाद पश्चिम बंगाल में आए 1 करोड़ शरणार्थियों पर असर पड़ेगा।

पश्चिम बंगाल में भाजपा का मतुआ समुदाय से भी मतभेद चल रहा है। मतुआ समुदाय के अधिकतर लोग बांग्लादेश से आए थे और वो पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में बसे हुए हैं। उनकी माँग है कि CAA के नियम तय कर के इसे जल्द से जल्द लागू किया जाए। साथ ही पार्टी की समितियों में भी प्रतिनिधित्व माँगा है। भाजपा ने 2021 विधानसभा चुनाव में भी CAA लागू करने का वादा किया था। खुद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कोविड-19 महामारी कम होने पर CAA के नियम तय करने का आश्वासन दिया था।

संसदीय कार्य सम्बंधित नियमावली कहती है कि राष्ट्रपति की विधेयक को सहमति मिलने के 6 महीने के भीतर नियम तय कर लिए जाने चाहिए। ऐसा न होने की स्थिति में लोकसभा और राज्यसभा की समितियों से समय में विस्तार की माँग की जाती है। अब फिर से सेवा विस्तार की माँग की गई है। इसकी अधिसूचना के बाद ही पात्र लाभार्थियों को नागरिकता मिल पाएगी। इस कानून से पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए प्रताड़ित हिन्दुओं, सिखों और ईसाईयों को भारतीय नागरिकता मिलेगी।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया