कल ही कराओ फ्लोर टेस्ट: सुप्रीम कोर्ट ने फडणवीस सरकार को सदन में बहुमत साबित करने का दिया आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने देवेंद्र फडणवीस की नई सरकार को लेकर सुनाया अहम फ़ैसला

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र मामले में बहुप्रतीक्षित फ़ैसला सुना दिया है। ये जजमेंट जस्टिस रमन्ना ने पढ़ा। उन्होंने कहा कि संवैधानिक संस्थाओं के बीच सौहार्द ज़रूरी है और इस मामले में न्यायपालिका के हस्तक्षेप को लेकर कुछ विवाद हैं। उन्होंने कहा कि सभी पक्ष संवैधानिक नैतिकता को कायम रखें। उन्होंने 27 नवंबर, 2019 को फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने सदन में वोटिंग की विडियोग्राफी कराने के भी आदेश दिए हैं। साथ ही कहा है वोटिंग ओपन बैलेट से होगा। इससे पहले प्रोटेम स्पीकर का चुनाव किया जाएगा। साथ ही पूरी प्रक्रिया का लाइव प्रसारण भी करने के निर्देश दिए हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि सदन के सबसे वरिष्ठ सदस्य को प्रोटेम स्पीकर बनाया जाए। साथ ही पूरी प्रक्रिया बुधवार शाम से पहले पूरी हो जानी चाहिए।

गौरतलब है कि महाराष्ट्र में शुक्रवार (नवंबर 22, 2019) की शाम एनसीपी, कॉन्ग्रेस और शिवसेना की बैठक हुई और मुख्यमंत्री के रूप में उद्धव ठाकरे के नाम पर सहमति बनी। लेकिन देर रात पासा तब पलट गया, जब एनसीपी विधायक दल के नेता अजित पवार विधायकों का समर्थन-पत्र लेकर राज्यपाल से मिले और भाजपा को समर्थन दे दिया। इसके बाद शनिवार की सुबह राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई। अजित पवार उप-मुख्यमंत्री बने। राज्यपाल के फ़ैसले को त्रुटिपूर्ण बता कर शिवसेना-कॉन्ग्रेस-एनसीपी ने संयुक्त याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की और शपथ ग्रहण को असंवैधानिक बताया।

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हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने रविवार की सुनवाई के दौरान तुरंत फ्लोर टेस्ट का आदेश नहीं दिया। सोमवार को हुई सुनवाई के बाद फ़ैसला सुरक्षित रख लिया गया था। सुनवाई के दौरान विपक्ष के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने 24 घंटे के भीतर फ्लोर टेस्ट कराने की माँग की थी। वहीं भाजपा की तरफ से पेश मुकुल रोहतगी ने कहा कि कोर्ट ऐसा आदेश नहीं दे सकता। रोहतगी ने जस्टिस एनवी रमन्ना, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ को बताया कि अजित पवार को हटा कर जयंत पाटिल को एनसीपी विधायक दल का नेता बनाने वाले पत्र में 12 विधायकों के हस्ताक्षर नहीं हैं, इसीलिए पार्टी का ये फ़ैसला वैध नहीं है।

अभिषेक मनु सिंघवी ने दावा किया कि राज्यपाल को सौंपा गया 54 एनसीपी विधायकों के हस्ताक्षर तो वैध हैं, लेकिन इसमें कहीं भी भाजपा को समर्थन किए जाने का जिक्र नहीं है। वहीं शिवसेना की तरफ़ से कपिल सिब्बल ने जिरह की। उन्होंने दलील पेश करते हुए कहा कि इतनी सुबह (5.47 बजे) राष्ट्रपति शासन हटाए जाने की जल्दी क्यों की गई? उन्होंने पूछा कि ऐसी भी क्या हड़बड़ी थी? सिब्बल ने दावा किया कि उद्धव ठाकरे का नाम भावी सीएम के रूप में तीनों दलों द्वारा मीडिया में घोषित किया जा चुका था, लेकिन राज्यपाल ने 24 घंटे भी इन्तजार नहीं किया।

सॉलिसिटर जनरल मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि राज्यपाल ने अपने समक्ष पेश किए गए दस्तावेजों के आधार पर अपने विवेक से निर्णय लिया और कोर्ट उनके विवेक पर सवाल नहीं उठा सकता।

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ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया