बंगाल: 2 सीटों पर राहुल गाँधी की रैली, दोनों जगह कॉन्ग्रेस उम्मीदवार की जमानत जब्त; साथी भी लाज नहीं बचा पाए

कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष का 'प्रदर्शन' बरकरार (साभार: न्यूइंडियन एक्सप्रेस)

292 सदस्यीय पश्चिम बंगाल विधानसभा की तस्वीर स्पष्ट हो चुकी है। 213 सीटों के साथ तृणमूल कॉन्ग्रेस लगातार तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है। 2016 में 3 सीटें पाने वाली बीजेपी ने 77 सीटें हासिल कर राज्य के मुख्य विपक्षी दल का तमगा हासिल कर लिया है। इस बार चुनाव में सबसे बुरी गत कॉन्ग्रेस और उसकी चुनावी साथी वाम दलों की हुई है।

दिलचस्प यह है कि कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ने जिन दो सीटों पर रैली की, वहाँ कॉन्ग्रेस उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। ये सीटें हैं मतिगारा-नक्सलबाड़ी और गोलपोखर। यहाँ 14 अप्रैल को राहुल की रैलियाँ हुई थी। मतिगारा-नक्सलबाड़ी सीट पर कॉन्ग्रेस का बीते एक दशक से कब्जा था। लेकिन इस बार उसके उम्मीदवार रहे निवर्तमान विधायक शंकर मालाकार 9% वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे। गोलपोखर में भी कॉन्ग्रेस उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहे और उन्हें महज 12% वोट मिले। 2006 और 2016 में इस सीट पर भी कॉन्ग्रेस को सफलता मिली थी।

मतिगारा-नक्सलबाड़ी में बीजेपी को मिली है जीत (साभार: चुनाव आयोग)

दो मई को आए नतीजों पर गौर करें तो पता चलता है कि कॉन्ग्रेस-वाम दलों के गठबंधन ने जिसमें इंडियन सेक्युलर फ्रंट (ISF) भी थी, के उम्मीदवार केवल 42 सीटों पर जमानत बचा पाए हैं। किसी भी उम्मीदवार की जमानत तब जब्त होती है जब वह कुल पड़े मतों का 16.5 फीसदी हासिल करने में असफल रहता है। चुनाव आयोग के आँकड़ों पर गौर करने पर पता चलता है कि इस गठबंधन के 85 फीसदी उम्मीदवारों की जमानत इस चुनाव में नहीं बची है।

गोलपोखर में भी कॉन्ग्रेस उम्मीदवार की नहीं बची जमानत (साभार: चुनाव आयोग)

कॉन्ग्रेस के 11, वाम दल के 21 और ISF के 10 उम्मीदवार ही जमानत बचा पाए। इन चुनावों में कॉन्ग्रेस और लेफ्ट दोनों का खाता नहीं खुल पाया। कॉन्ग्रेस को 2.94% तो वाम दलों को लगभग 5% वोट मिले हैं। वहीं ISF एक सीट जीतने में कामयाब रही है।

बंगाल में किसको कितनी सीटें (साभार: चुनाव आयोग)

आईएसएफ चार सीटों पर दूसरे नंबर पर भी रही। इससे बंगाल में फुरफुरा शरीफ के मौलवी अब्बास सिद्दीकी के प्रभाव का भी पता चलता है। वाम दल और कॉन्ग्रेस भी चार-चार सीटों पर दूसरे नंबर पर रही। लेकिन, गौर करने वाली बात यह है कि कॉन्ग्रेस 90 और वाम दल 170 सीटों पर लड़े थे, जबकि आईएसएफ ने 30 सीटों पर ही अपने प्रत्याशी उतारे थे।

गौरतलब है कि कॉन्ग्रेस ने बंगाल में न केवल उन वाम दलों से गठबंधन किया था, जिनसे वह केरल में मुकाबिल थी, बल्कि बंगाल चुनाव से उसके शीर्ष परिवार ने दूरी भी बना रखी थी। लेकिन, असम और केरल में भी राहुल और प्रियंका के जोर लगाने के बावजूद कॉन्ग्रेस अपनी किस्मत बदलने में कामयाब नहीं हो पाई है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया