योगी राज में विकास दुबे के पीछे पड़ी पुलिस, जंगलराज में खाकी पर गोलियाँ बरसा भी खुल्ला घूमता रहा शहाबुद्दीन

विकास दुबे और शहाबुद्दीन

कानपुर में खुद को पकड़ने आई पुलिस टीम के 8 लोगों की हत्या कर विकास दुबे का नाम गैंगस्टर चर्चा में है। सपा-बसपा के नेताओं का करीबी रहा विकास करीब 60 मामलों में वांछित है। इसमें 53 मामले हत्या और हत्या के प्रयास से जुड़े हैं। इसी तरह 90 के दशक में बिहार में बाहुबली से सांसद बने शहाबुद्दीन ने पुलिस पर हमला कर अपनी हनक कायम की थी।

सिवान से सांसद रह चुके मोहम्मद शहाबुद्दीन 40 से ज्यादा मामलों में आरोपित है। कभी उसका ऐसा दबदबा था कि सिवान में उसके शब्द को ही आखिरी कानून माना जाता था। जो इससे इनकार करते थे, उन्हें अंजाम भुगतना पड़ता था।

ये सिलसिला लंबे समय तक सिवान में चला। 1996 में संसदीय चुनाव के दौरान एक दिन ऐसा आया कि एसके सिंघल नाम के एसपी को शहाबुद्दीन और उसके गोलियाँ दागते हुए करीब आधे किलोमीटर तक खदेड़ा था। हालॉंकि सिंघल बाल-बाल बच गए थे। इस मामले में उसे बाद में 10 साल की सजा हुई।

1996 वही साल था जब शहाबुद्दीन को लालू ने लोकसभा का टिकट दिया और वह जीता भी। 1997 में राष्ट्रीय जनता दल के गठन और लालू प्रसाद की का एकछत्र राज कायम होने के बाद से उसकी ताकत में लगातार इजाफा होता गया।

2001 में राज्यों में सिविल लिबर्टीज के लिए पीपुल्स यूनियन की एक रिपोर्ट ने खुलासा किया था कि राजद सरकार कानूनी कार्रवाई के दौरान शहाबुद्दीन को संरक्षण दे रही थी। हालात ये हो चली थी कि लोग उसे कानून का पर्याय मानने लगे थे।

पुलिस भी उसकी आपराधिक गतिविधियों पर अपना आँख बंद करने लगी थी। उसका कहर इस तरह बढ़ रहा था कि लोगों में उसके ख़िलाफ़ गवाही देने की हिम्मत तक नहीं होती थी।

साल 2001 तक स्थिति ऐसी बन पड़ी कि मानो वो सिवान में कोई समानांतर सरकार चला रहा हो। साल 1996 की घटना के बाद यह दूसरा मौका था जब वह खाकी पर झपटा। उसने एक पुलिस अधिकारी को थप्पड़ मार दिया, और उसके लोगों ने पुलिसकर्मियों को बुरी तरह पीटा।

संजीव कुमार नाम के अधिकारी की गलती केवल इतनी थी कि वह राजद के स्थानीय अध्यक्ष मनोज कुमार पप्पू के खिलाफ एक वारंट तामील करने अपनी टीम के साथ पहुँचे थे। मगर, शहाबुद्दीन ने गिरफ्तारी के लिए पहुँचे संजीव कुमार को थप्पड़ मार दिया और अपने आदमियों की मदद से पुलिस वालों को जमकर पीटा।

इस प्रकरण के बाद पुलिस थोड़े सकते में आई और उसके ख़िलाफ़ एक्शन लेने की ठानी। शहाबुद्दीन पर कार्रवाई करना इतना आसान काम नहीं था। इसके लिए बिहार पुलिस की टुकड़ियों के अलावा उत्तर प्रदेश पुलिस की मदद भी ली गई थी।

एसपी बीएस मीणा की अगुवाई में पुलिस टीम ने उसके घर पर दबिश दी। लेकिन बावजूद इतनी तैयारियों के पुलिस को 6 घंटे तक फायरिंग का सामना करना पड़ा। कथित तौर पर शहाबुद्दीन खुद एके-47 से पुलिसकर्मियों पर फायरिंग कर रहा था। इस घटना में 14 लोग मारे गए, जिसमें से 2 पुलिसवाले भी थे।

शहाबुद्दीन के गुर्गों ने इस दौरान पुलिस के वाहनों को फूंक दिया। पुलिस ने शहाबुद्दीन के घर से एक AK-47 राइफल, दो ग्रेनेड, दो 9 mm पिस्टल आदि बरामद किए थे। लेकिन, लालू के संरक्षण में पलने वाले इस हिस्ट्रीशीटर को वह दबोच नहीं पाई। शहाबुद्दीन गोलियॉं बरसाकर मौके से निकल गया।

ये पहली बार था जब पुलिस प्रशासन ने सिवान के बाहुबली के ख़िलाफ़ कार्रवाई की थी। इस एक्शन ने न केवल स्थानीयों को चौंकाया था, बल्कि शहाबुद्दीन को देश के हर कोने की चर्चा में भी शामिल कर दिया था। लेकिन इससे शहाबुद्दीन को फर्क नहीं पड़ा। उसने इस कार्रवाई के बाद पुलिस को खुलेआम चुनौती देते हुए मीणा के लिए कहा था, “वह कहीं भी हो मैं उसे मार डालूॅंगा। उसे कोई नहीं बचा सकता।”

शहाबुद्दीन जैसों के कारनामों की वजह से ही बिहार में उस दौर को जंगलराज कहा जाता है। जब तक लालू की राजनीतिक हनक बनी रही, शहाबुद्दीन भी कानून की जकड़ में आने से बचता रहा। लेकिन लालू के अवसान के साथ ही उसका सितारा भी डूब गया।

साल 2004 के चुनाव के बाद से शहाबुद्दीन का बुरा वक्त शुरू हो गया था। इस दौरान शहाबुद्दीन के खिलाफ कई मामले दर्ज किए गए। साल 2009 में शहाबुद्दीन के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई और एक मामले में आजीवन कारावास की सजा हुई।

शहाबुद्दीन के सिवान और आज के उत्तर प्रदेश में भले ही आरोपित का बैकग्राउंड एक जैसा हो। लेकिन हालात बिलकुल अलग हैं। ये योगी का यूपी है। इसलिए विकास दुबे की तलाश में 7000 पुलिसकर्मी लगाए गए हैं।

खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि डीजीपी सहित शीर्ष अधिकारी कानपुर में कैंप कर रहे हैं। जब तक विकास दुबे पकड़ा नहीं जाता या फिर मुठभेड़ में मार नहीं गिराया जाता, शीर्ष अधिकारी यहॉं से लौटेंगे नहीं।