6 दिन में 5 BJP नेता का मर्डर: मध्य प्रदेश में राजनैतिक हत्याओं का दौर जारी

मृतक छतरपाल सिंह रावत

मध्य प्रदेश की कॉन्ग्रेस सरकार में राजनैतिक हत्याओं का दौर रुकने का नाम ही नहीं ले रहा। सोमवार (जनवरी 21, 2019) को ग्वालियर भाजपा के ग्रामीण जिला मंत्री नरेंद्र रावत के भाई छतरपाल सिंह रावत की लाश पार्वती नदी के पुल के पास मिली। प्रथम दृष्टया यह धारदार हथियार से गोदे जाने का मामला लगता है। छतर सिंह के शरीर पर ज़ख़्म के कई निशान भी मिले हैं।

मृतक छतरपाल सिंह रावत खुद भी भाजपा कार्यकर्ता थे। पुलिस ने फिलहाल इसे आपसी रंजिश बताया है और पंचनामे के बाद शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया है। ‘आपसी रंजिश’ शब्द को भी अगर अंतिम सत्य मान लिया जाए तो भी मुख्यमंत्री कमलनाथ के लिए कानून-व्यवस्था की लचर स्थिति पर खुद को पाक-साफ़ बताना बहुत मुश्किल होगा। चुनाव से पहले कमलनाथ ने ‘उन्हें देख लेंगे’ की धमकी भी दी थी।

मध्य प्रदेश में राजनैतिक हत्याओं की बात करें तो पिछले छह दिनों में अब तक पाँच भाजपा नेताओं/कार्यकर्ताओं की हत्या की जा चुकी है:

  • 16 जनवरी (बुधवार) – इंदौर में कारोबारी और भाजपा नेता संदीप अग्रवाल को सरेआम गोलियों से भून दिया गया था।
  • 17 जनवरी (गुरुवार) – मंदसौर नगर पालिका के दो बार अध्यक्ष रहे भाजपा नेता प्रहलाद बंधवार की सरे बाजार गोली मारकर हत्या कर दी गई।
  • 20 जनवरी (रव‍िवार) – गुना में परमाल कुशवाह को गोली मारी गई। परमाल भारतीय जनता पार्टी के पालक संयोजक शिवराम कुशवाह के रिश्तेदार थे और खुद भी भाजपा के कार्यकर्ता थे।
  • 20 जनवरी (रव‍िवार) – बड़वानी में भाजपा के मंडल अध्यक्ष मनोज ठाकरे को पत्थरों से कुचलकर बेरहमी से मार डाला गया।
  • 21 जनवरी (सोमवार) – ग्वालियर भाजपा के ग्रामीण जिला मंत्री नरेंद्र रावत के भाई छतरपाल सिंह रावत की लाश मिली। छतरपाल सिंह रावत खुद भी भाजपा कार्यकर्ता थे।

पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और कई भाजपा नेता ने मध्य प्रदेश में राजनैतिक हत्याओं पर चिन्ता जताते हुए ट्वीट भी किया।

https://twitter.com/ChouhanShivraj/status/1086858498342670338?ref_src=twsrc%5Etfw

आदर्श स्थिति में इंसानी जान की कीमत बराबर होनी चाहिए। हत्या पर समाज में रोष बराबर होना चाहिए। फिर चाहे उसका नाम गौरी लंकेश हो या छतरपाल सिंह रावत। लेकिन देश के लगभग सभी बड़े और स्थापित मीडिया हाउस ने जिस तरह से गौरी लंकेश (एक इंसान) की मौत पर कवरेज़ की थी, उन्हीं मीडिया मठाधीशों ने छह दिनों में पाँच हत्याओं पर सिंपल रिपोर्ट फाइल करने के अलावा न तो कवरेज़ किया, न रोष दिखाया!

कानून-व्यवस्था को लेकर सवाल मुख्यमंत्री कमलनाथ पर तो दागा ही जाना चाहिए। साथ ही यह भी ज़रूरी है कि मीडिया को भी उसके दायित्वों और सेलेक्टिव कवरेज़ के लिए घेरा जाए।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया