भगवान की मूर्तियाँ बनाने में PoP के इस्तेमाल पर जारी रहेगा प्रतिबंध, याचिका ख़ारिज: दलील में कहा था – बिना वैज्ञानिक परीक्षण के लगा बैन

बॉम्बे हाई कोर्ट ने पीओपी के प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की (फोटो साभार: पंजाब केसरी)

बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने सोमवार (27 जून 2022) को भगवान गणेश की मूर्तियाँ बनाने के लिए प्लास्टर ऑफ पेरिस (PoP) के इस्तेमाल पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया। चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एमएस कार्णिक की खंडपीठ ने कहा कि शीर्ष न्यायालय पहले ही प्रतिबंध को बरकरार रख चुका है इसलिए अदालत इस पर फिर से विचार नहीं कर सकती है।

लाइव लॉ के मुताबिक, याचिकाकर्ता अजय वैशम्पायन ने दावा किया कि बिना किसी वैज्ञानिक परीक्षण के पीओपी को प्रतिबंधित कर दिया गया है। उन्होंने आगे दावा किया कि वैकल्पिक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली शादु मिट्टी की मूर्तियाँ पर्यावरण के लिए अधिक हानिकारक हैं।

जनवरी 2021 में, मूर्तिकार संगठन के साथ याचिकाकर्ता ने 2020 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board) द्वारा जारी मूर्ति विसर्जन के लिए संशोधित दिशा निर्देशों को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें पीओपी पर प्रतिबंध भी शामिल था।

हाई कोर्ट ने उस वक्त उन्हें नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) का दरवाजा खटखटाने का निर्देश दिया था, जिसने उनकी याचिका खारिज कर दी थी। एनजीटी के आदेश को एक अन्य व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन शीर्ष अदालत ने नवंबर 2021 में याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया था और एनजीटी के आदेश को बरकरार रखा था।

इसके बाद याचिकाकर्ता अजय वैशम्पायन ने बॉम्बे हाई कोर्ट में मूर्ति विसर्जन के लिए संशोधित दिशा निर्देशों और पीओपी पर प्रतिबंध को फिर से चुनौती दी। उन्होंने दावा किया कि पीओपी का पीएच स्तर एक प्रयोगशाला परीक्षण के आधार पर पीने के पानी के समान है। उन्होंने आगे दावा किया कि शादु मिट्टी से बनी मूर्तियों का बड़े पैमाने पर उत्पादन संभव नहीं है, क्योंकि ये मिट्टी आसानी से उपलब्ध नहीं होती है। याचिका में आगे यह भी कहा गया है कि शादु मिट्टी की मूर्तियाँ लंबे समय तक नहीं रखी जा सकती हैं। उनके टूटने की ज्यादा संभावना होती है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया