नेपाल के गरीब किसान के बेटे की मदद को सामने आए भारतीय: IIM-अहमदाबाद में प्रवेश के लिए फीस भरने में आई कठिनाई

नेपाली आशिक जयसवाल की मदद को आगे आए भारतीय

नेपाल के एक गरीब शिक्षक और किसान के 24 वर्षीय बेटे आशिक जयसवाल (Aashik Jayswal) ने कठिनाइयों का सामना करते हुए भारत के एक प्रतिष्ठित इंस्टिट्यूट आईआईएम का एंट्रेंस पास किया। आईआईएम-अहमदाबाद का एंट्रेंस निकलने से आशिक का बरसों पुराना सपना सच हो गया। लेकिन आशिक को कहाँ पता था कि इस सपने में रुकावट अभी आनी बाकी है।

दरअसल, आशिक ने फूड एंड एग्री-बिजनेस मैनेजमेंट (PGPFABM) के जिस दो वर्षीय पोस्ट ग्रेजुएट प्रोग्राम में प्रवेश लेना चाहा है। जिसकी फीस बहुत ज्यादा है। कोर्स की इतनी ज्यादा फीस का पता लगते ही आशिक का सपना जैसे कहीं अटक गया।

जयसवाल अपने परिवार के साथ पूर्वी चंपारण में भारत-नेपाल सीमा से लगभग 20 किलोमीटर दूर रहते हैं। जहाँ हर कोई खेती कर अपनी जिंदगी का गुजर करता है। आशिक के पिता एक अस्थायी शिक्षक के रूप में काम करते है। इसके साथ वे खेती भी करते हैं। जयसवाल ने 10 वीं तक की शिक्षा अपने गाँव में पूरी की। जिसके बाद वह अपने बाकी स्कूल ग्रेजुएशन के लिए काठमांडू चले गए। आशिक को भारतीय दूतावास से छात्रवृत्ति प्राप्त हुआ था। ताकि वे प्रयागराज से कृषि में बीएससी की पढ़ाई कर सके।

प्रयागराज में पढ़ाई के दौरान, उन्हें आईआईएम में कृषि में दो वर्षीय पाठ्यक्रम का पता चला। जयसवाल का परिवार भी नेपाल में कृषि से जुड़ा हुआ है। जिसको ध्यान में रखते हुए उन्होंने अपने गाँव की खेती को आगे बढ़ाने का फैसला किया।

आशिक ने बताया, “अपने अंडरग्रेजुएशन के दौरान, मैंने अपने सीनियर्स को कैट के लिए प्रश्नपत्र को हल करने की कोशिश करते हुए देखा था। मुझे मैथ्स के सवाल बहुत पसंद थे। मैं उन्हें बहुत जल्दी हल कर लेता था। मेरे सीनियर्स ने मुझे बताया कि IIMA से कृषि में डिग्री मेरे लिए एमएससी से ज्यादा फायदेमंद होगी। इसलिए मैंने कैट की तैयारी शुरू कर दी।” आशिक ने कैट (कॉमन एडमिशन टेस्ट) की परीक्षा को पास कर लिया। लेकिन परीक्षा को पास करना ही बड़ी बात नहीं थी। असली कठिनाई तो अब शुरू हुई।

जयसवाल एक गरीब परिवार से हैं। उसके लिए आईआईएमए की मोटी फीस भर पाना बहुत बड़ी बात थी। ऑपइंडिया से बात करते हुए आशिका ने कहा, “मैं नेपाल में इमारत की सातवीं मंजिल पर था जब 2015 में आए भूकंप ने देश को तबाह कर दिया था। मैं बिना सैनिटाइजेशन के उपयोग के एक सप्ताह तक जीवित रहा। लेकिन मैंने वहाँ एक बड़ा सबक सीखा। मैंने सीखा कि मैं कठिन से कठिन दौर में भी जीवित रह सकता हूँ।”

जयसवाल ने कहा कि पहले, भारत में उसके रिश्तेदारों ने उसे पैसे की मदद करने का वादा किया था। हालाँकि, चीन से फैले कोरोना वायरस महामारी की वजह से वो लोग मुझे पैसे नहीं दे पाएँ। जयसवाल ने बैंकों से भी उधार लेने की कोशिश की। आशिक का परिवार 0.5 एकड़ आर्द्र भूमि और एक घर का मालिक है और उसके पिता की वार्षिक आय 3 लाख रुपए है।

नेपाल के बैंक आशिक को कोलैटरल के बिना फीस की रकम लोन देने की स्थिति में नहीं है। न ही वहाँ के बैंक उसे सिक्योर्ड लोन दे सकते है। भारतीय नागरिक को आईआईएमए में शिक्षा पूरी करने के लिए मदद की जाती है। लेकिन उसे यह मदद नहीं मिल सकती क्योंकि वह नेपाली है।

जयसवाल ने कहा, “मैं भारतीय बैंकों से ऋण नहीं ले सकता था क्योंकि मैं एक नेपाल नागरिक हूँ। एक गैर-भारतीय के रूप में मैं यहाँ ऋण के लिए पात्र नहीं था। मैं अपनी शिक्षा के लिए लोगों से क्राउडफंडिंग के रूप में पैसे नहीं इकट्ठा करना चाहता हूँ। मैं ऐसे कॉर्पोरेट्स से स्पांसरशिप लेना चाहूँगा, जो कृषि या ऋणों पर विश्वास करते हैं जिन्हें मैं बाद में लिए हुए पैसे लौटा दूँ। लोग दयालु हैं। वे मेरी मदद कर सकते हैं। लेकिन यह महामारी का समय सभी के लिए कठिन है। पैसों की अनिश्चितता बनी हुई है, तो वे जो पैसा आज मुझे दे सकते हैं वह कल उनके काम आ सकता है। इसलिए, मैं अपने मेरिट पर आगे बढ़ना चाहता हूँ। मेरी मदद को आगे आए लोगों की मैं सराहना करता हूँ। लेकिन मैं प्रत्येक व्यक्ति से मदद नहीं ले सकता हूँ।”

जयसवाल ने उन सभी से संपर्क किया है जो उनकी मदद कर सकता हो। जैसे कि- NBFCs, निजी निवेशक, SAARC के पूर्व छात्र । इसके अलावा IIMA के पूर्व छात्र भी उनकी मदद करने के लिए अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं।

नेपाली नागरिक की मदद के लिए जुटे भारतीय

इस बीच, कुछ मदद मिलनी शुरू हो गई है। अहमदाबाद स्थित एक एनजीओ ने उन्हें पहले सेमेस्टर की फीस देने में मदद की है। जो इस हफ्ते के अंत से शुरू होने वाला है। अहमदाबाद के उद्यमी पंकज मशरूवाला (जो कृषि व्यवसाय में काम करते हैं) वे भी उनकी मदद के लिए आगे आए हैं। मशरुवाला ने जयसवाल को बताया कि 40 साल पहले उनकी भी किसी ने फीस भरने में मदद की थी। उन्होंने वादा किया था कि समय आने पर वह इसका भुगतान करेंगे।

नागपुर के रहने वाले के एस चीमा ने भी बची हुई राशि के लिए जयसवाल को लोन देने की पेशकश की है। वहीं नेपाल के रहने वाले दिवेश बोथरा ने भी उनके साथ संपर्क किया है। जयसवाल की मदद के लिए दिवेश ने अपने नियोक्ताओं से भी बात की है।

गौरतलब है कि फीस की समस्या का आंशिक रूप से समाधान हो गया है। लेकिन जयसवाल को अभी भी दूसरे वर्ष की फीस की व्यवस्था करनी है। वह अभी भी व्यक्तियों, कॉर्पोरेटों और वित्तीय संस्थानों से बात कर रहे है जो उसकी मदद कर सकते हैं।

अगर आप भी इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आशिक जयसवाल की मदद करना चाहते हैं, तो आप उनके इस मेल आईडी aashikjayswal8@gmail.com के जरिए उनसे संपर्क बना सकते हैं।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया