कब्र से निकाल कर फेंका नवजात बच्ची का शव, बांग्लादेश में अहमदियों को बताया ‘काफिर’

सफेद कपड़े में लिपटा बच्ची का शव (साभार: Dhaka Tribune))

बांग्लादेश में इस्लामिक कट्टरपंथियों का कहर केवल हिंदुओं पर नहीं बरसता बल्कि अन्य अल्पसंख्यक समुदाय भी वहाँ की बहुसंख्यक आबादी के अत्याचार का शिकार होते हैं। ताजा मामला अहमदी समुदाय से जुड़ा है। अहमदी समुदाय को बांग्लादेश के कट्टरपंथी काफिर ही मानते हैं। खबर है कि शनिवार को कट्टरपंथियों ने एक नवजात बच्ची के शव को कब्र से बाहर निकालकर सिर्फ़ इसलिए फेंक दिया क्योंकि वह अहमदी समुदाय की थी।

घटना ब्राह्मणबारिया जिले के सदर उपजिला के घाटुरा की है। यहाँ सरकारी कब्रिस्तान में एक नवजात को अहमदियों ने उसकी मृत्यु के बाद दफनाया था। लेकिन कुछ ही घंटों बाद कट्टरपंथियों ने उसकी कब्र को वापस खोदा और शव को रोड किनारे फेंक आए।

इस घटना का मालूम चलते ही अहमदी नेताओं में रोष व्याप्त हो गया। उन्होंने इस घटना के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करना शुरू कर दिया और माँग उठाई कि आरोपितों के ख़िलाफ़ सख्त से सख्त कार्रवाई हो।

रिपोर्ट्स के अनुसार, जिस शिशु के शव के साथ कट्टरपंथियों ने ये अमानवीयता की, उसे स्वप्न बेगम नाम की महिला ने गुरुवार को क्रिश्चियन मेमोरियल अस्पताल में सुबह 5:30 बजे जन्म दिया था। लेकिन, हालत नाजुक होने के कारण बच्ची को इनक्यूबेटर में रखा गया। हालाँकि बच्ची बच नहीं पाई और उसी दिन 7 बजे उसने दम तोड़ दिया। इसके बाद उसे सरकारी कब्रिस्तान में दफन किया गया। जिस पर कट्टरपंथियों ने ‘काफिर’ बच्ची को कब्रिस्तान में दफनाने पर आपत्ति जताई और कब्र खोदकर उसे रोड पर फेंक दिया।

मामले की सूचना पाते ही घटनास्थल पर पुलिस भी पहुँची और बच्ची के शव को वहाँ से 16 किमी दूर जाकर कांदिरपारा गाँव में 11:30 बजे दफनाया गया। इसके बाद ब्राह्मणबारिया जिले के ऑफिसर इंचार्ज मोहम्मद सलीम ने इस संबंध में जानकारी दी कि स्थानीयों से बात करने के बाद कांदिरपारा गाँव में अहमदिया समुदाय के कब्रिस्तान में शव को दफना दिया गया है। लेकिन उन्होंने ये नहीं बताया कि कट्टरपंथियों पर क्या कार्रवाई हुई है।

बच्ची के पिता सैफुल इस्लाम इस संबंध में कहते हैं कि वह उन लोगों को नहीं पहचान सकते, जिन्होंने उनकी बेटी की कब्र खोदकर उसे रोड पर फेंका। लेकिन अहमदिया जमात की स्थानीय इकाई अध्यक्ष एसएम इब्राहिम लगातार अलग-अलग मस्जिदों के मौलवियों को इसके लिए जिम्मेदार बता रहे हैं। उनका आरोप है कि ये मौलवी गैर-अहमदियों को भड़काते हैं।

जबकि, आरोपों के बाद एक मुनीर हुसैन नामक मौलवी का कहना है कि इलाके के दूसरे समुदाय वालों ने बच्ची के माता-पिता के फैसले पर आपत्ति जताई थी कि वह कब्रगाह में उसका शव न दफनाएँ। मौलवी के अनुसार, “ये शरिया के ख़िलाफ़ है कि कब्रगाह में कोई काफिर दफनाया जाए। गाँव में अभी तक कट्टरपंथियों ने ऐसा कभी नहीं होने दिया।”

यहाँ बता दें कि बांग्लादेश में अहमदियों का शोषण लंबे समय से चला आ रहा है। उनकी गलती बस ये है कि वह पैगंबर को अपने मजहब का संस्थापक मानते हैं। जिसके कारण बांग्लादेश में अभी तक करीब 1 लाख अहमदियों पर हमला हो चुका है।

हाल की बात है जब मजहबी उलेमाओं ने प्रशासन को इसलिए धमकाया था कि वे अहमदियों को दूसरे धर्म का घोषित करें। इसके अतिरिक्त साल 2015 में अहमदी के मस्जिदों पर हमला भी हुआ था। इससे पहले 1999 में भी अहमदियों के मस्जिद को निशाना बनाया गया था।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया