100 साल पहले देवी अन्नपूर्णा की जो अद्वितीय मूर्ति वाराणसी के मंदिर से चुराई गई थी, वो स्वदेश आने को तैयार

देवी अन्नपूर्णा की अद्वितीय मूर्ति (बाएँ) और जिस जगह यह चोरी करके रखी गई थी (दाएँ)

भारत से एक मूर्ति चोरी हुई थी। वो मूर्ति देवी अन्नपूर्णा की थी। यह प्राचीन मूर्ति चोरी होकर एक कैनेडियन विश्वविद्यालय पहुँच गई। लेकिन अब यह मूर्ति वापस भारत आएगी। कैनेडियन विश्वविद्यालय ने इस सांस्कृतिक चोरी को सुधारने का निर्णय किया है।

यह मूर्ति देवी अन्नपूर्णा की है, जो धान्य अर्थात अन्न की अधिष्ठात्री तथा वाराणसी की रानी हैं। इस मूर्ति के एक हाथ में चम्मच और दूसरे में खीर की कटोरी दिखाई गई है। रिपोर्टों के अनुसार, इस मूर्ति को करीब एक सदी पूर्व वाराणसी के एक मंदिर से चुराया गया था और तब से उसे ‘यूनिवर्सिटी ऑफ़ रिजायना’ के ‘मैकेंज़ी आर्ट गैलरी’ में रखा गया था।

एक बयान में यूनिवर्सिटी ने कहा कि इस मामले को उनकी नज़र में दिव्या मेहरा नाम की एक कलाकार ने लाया। दिव्या मेहरा को इसकी खबर पत्रकार और इतिहासकार रहे नॉर्मन मैकेंज़ी, जिनके नाम पर यह यूनिवर्सिटी है, के स्थाई संग्रह से मिली।

दरअसल दिव्या ने यह पाया कि मैकेंज़ी की नज़र इस मूर्ति पर उनके 1913 के भारत दौरे के वक़्त पड़ी। मैकेंज़ी की इस मूर्ति को पाने की इच्छा को जानकार एक व्यक्ति ने उसके इशारे पर, वाराणसी में गंगा किनारे बसे एक मंदिर से इसे चुरा लिया था। अब यूनिवर्सिटी ने इस सांस्कृतिक चोरी को सुधारने का निर्णय किया है।

यूनिवर्सिटी ने स्वेच्छा से मूर्ति वापस देने का किया निश्चय

19 नवम्बर को एक वर्चुअल समारोह के दौरान, यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर और इंटरिम प्रेसिडेंट डॉ थॉमस चेस कनाडा के भारतीय हाई कमिशनर अजय बिसारिया से मिले। यह इसलिए ताकि मूर्ति को आधिकारिक तौर पर स्वदेश भेजा जा सके। इस समारोह में कनाडा बॉर्डर सर्विसेज़ एजेंसी, मैकेंज़ी आर्ट गैलरी और ग्लोबल अफेयर्स कनाडा के कई प्रतिनिधि उपस्थित रहे।

अजय बिसारिया ने कहा, “हम खुश हैं कि अन्नपूर्णा की यह अद्वितीय मूर्ति अब अपने घर जाने को है। भारत की इस सांस्कृतिक प्रतिमा को वापस करने की और यूनिवर्सिटी ऑफ़ रिजायना के इस सक्रिय जुड़ाव के लिए मैं इनका आभारी हूँ। स्वेच्छा से इस सांस्कृतिक निधि को लौटाने का कदम परिपक्वता तथा भारत-कनाडा के गहरे सम्बन्ध को दर्शाता है।”

यूनिवर्सिटी ऑफिशल्स का आधिकारिक बयान

वाइस चांसलर चेस ने कहा, “विश्वविद्यालय होने के नाते, ऐतिहासिक गलतियों को यथासंभव सुधारना हमारा कर्त्तव्य है। इस मूर्ति का एक सदी पहले यहाँ आने में जो गलती हुई, उसका प्रायश्चित तो नहीं हो सकता, परन्तु यह किया जाना आज सटीक एवं महत्वपूर्ण है। इसे संभव बनाने में मैकेंज़ी आर्ट गैलरी, भारतीय उच्चायोग तथा कनाडा के विरासत विभाग की भूमिका का मैं शुक्रगुज़ार हूँ।”

यूनिवर्सिटी ऑफ़ रिजायना के प्रेसिडेंट्स आर्ट कलेक्शन के संग्रहाध्यक्ष ऐलेक्स किंग ने कहा, “मूर्ति अन्नपूर्णा का प्रत्यावर्तन लम्बे समय से बातचीत का हिस्सा है। सांस्कृतिक विरासतों के प्रबंधक होने के नाते, सम्मानपूर्वक और नैतिक रूप से कार्य करना हमारा मौलिक कर्त्तव्य है और इसी प्रकार हमारे अपने संस्थागत इतिहास को गंभीर रूप से देखने की इच्छा भी।”

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया